Edited By Lata,Updated: 27 Jan, 2019 11:35 AM
आज दिनांक 27 जनवरी को भोलेनाथ के क्रोध से पैदा हुए काल भैरव के रूप की पूजा की जाती है, जिसे कालाष्टमी कहा जाता है।
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आज दिनांक 27 जनवरी को भोलेनाथ के क्रोध से पैदा हुए काल भैरव के रूप की पूजा की जाती है, जिसे कालाष्टमी कहा जाता है। कहते हैं कि जो भी व्यक्ति इस दिन पूरी श्रृद्धाभावना से काल भैरव की पूजा और व्रत करता है उसके जीवन में हमेशा सुख-शांति बनी रहती है। शास्त्रों में आज के दिन रात में पूजन करना और जागरण करने का विधान बताया गया है। तो चलिए आज हम आपको इस व्रत की विधि और महत्व के बारे में बताएंगे।
पूजन विधि-
सबसे पहले घर की उत्तर-पश्चिम दिशा गुलाबी रंग के कपड़े पर भैरव का चित्र स्थापित करके विधिवत पूजन करें।
सुगंधित तेल का दीप करें, गुलाब की अगरबत्ती से धूप करें, गुलाबी फूल, अबीर, इत्र चढ़ाएं।
मीठे चावल बनाकर उसका भोग लगाएं।
कुत्ता भैरव की सवारी होती है इसलिए पूजन पूजन के बाद भोग एक काले कुत्ते को खिलाएं।
इस व्रत में रात्रि जागरण करने का विधान बताया गया है।
कहते है काल भैरव को पूजने वाले को वो परम वरदान का वर देते है, उसके मन की हर इच्छा पूरी करते है और जीवन में किसी तरह की परेशानी, डर, बीमारी, हर दर्द को काल भैरव दूर करते है।
नारद पुराण के अनुसार कालाष्टमी के दिन कालभैरव और मां दुर्गा की पूजा करनी चाहिए। इस रात देवी काली की उपासना करने वालों को आधी रात के बाद मां की उसी प्रकार से पूजा करनी चाहिए जिस प्रकार दुर्गा पूजा में सप्तमी तिथि को देवी कालरात्रि की पूजा का विधान है। इस दिन अपनी शक्ति के अनुसार रात को माता पार्वती और भगवान शिव की कथा सुनकर जागरण का आयोजन करना चाहिए। आज के दिन व्रत करने वाले को फलाहार ही करना चाहिए।
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