Edited By Sarita Thapa,Updated: 13 Dec, 2025 01:14 PM

आरती करना हमारे पूजा-पाठ का एक महत्वपूर्ण अंग है, जिसमें हम श्रद्धा और प्रेम से भगवान की स्तुति करते हैं। दीपक को घुमाना इस विधि का केंद्र बिंदु है और इसे करने का एक विशेष नियम और क्रम होता है।
Proper Aarti Method: आरती करना हमारे पूजा-पाठ का एक महत्वपूर्ण अंग है, जिसमें हम श्रद्धा और प्रेम से भगवान की स्तुति करते हैं। दीपक को घुमाना इस विधि का केंद्र बिंदु है और इसे करने का एक विशेष नियम और क्रम होता है। आरती में दीपक को घुमाने का उद्देश्य यह है कि उसकी ऊष्मा और प्रकाश भगवान की मूर्ति या विग्रह के सभी अंगों तक पहुंचे। शास्त्रों के अनुसार, दीपक को भगवान के सामने कुल 4 बार घुमाया जाता है, लेकिन यह क्रिया अलग-अलग चरणों में पूरी होती है और कुल परिक्रमा की संख्या 7 तक हो सकती है। तो आइए जानते हैं आरती करने की सही और पूर्ण विधि के बारे में-
दीपक घुमाने का शास्त्रीय क्रम
आरती हमेशा भगवान के चरणों से शुरू होकर उनके मुखमंडल तक जाती है, जो यह दर्शाता है कि हमारी चेतना भौतिकता से आध्यात्मिकता की ओर बढ़ रही है।
मुख्य नियम: आरती में दीपक को घुमाने की कुल संख्या विषम होनी चाहिए, और 7 की संख्या को सबसे उत्तम माना गया है।
| भगवान का अंग |
संख्या |
उद्देश्य |
| चरण (पैर) |
4 बार |
चार वेदों (ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद) और चार पुरुषार्थों (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष) के प्रति समर्पण। |
| नाभि (मध्य भाग) |
2 बार |
सृष्टि की उत्पत्ति और स्थिति (पालन) शक्ति के प्रति सम्मान। |
| मुख (चेहरा) |
1 बार |
ईश्वर के निराकार, अनंत और परम ब्रह्म रूप के प्रति भक्ति। |
| सम्पूर्ण विग्रह/मूर्ति |
7 बार |
सिर से पैर तक भगवान की पूरी प्रतिमा की परिक्रमा करना, यानी पूरे ब्रह्मांड के स्वामी को प्रणाम करना। |

आरती शुरू करने से पहले की तैयारी
एक थाली में दीपक या कपूर रखें। साथ में फूल, अगरबत्ती और घंटी रखें।
भगवान की मूर्ति के सामने खड़े हों और मन को शांत रखें।
आरती शुरू करते समय घंटी बजाना आवश्यक है, ताकि नकारात्मक ऊर्जा दूर हो और सात्विक वातावरण बने।
आरती करने की सही विधि
चरणों की आरती (4 बार): सबसे पहले, दीपक को भगवान के चरणों के सामने नीचे से ऊपर की ओर गोलाकार गति में 4 बार घुमाएं।
नाभि की आरती (2 बार): इसके बाद, दीपक को उठाकर भगवान के नाभि स्थल के सामने 2 बार गोलाकार घुमाएं।
मुख की आरती (1 बार): अब, दीपक को मुखमंडल के सामने केवल 1 बार गोलाकार घुमाएं।
पूर्ण परिक्रमा (7 बार): उपरोक्त तीनों क्रियाएं पूरी होने के बाद, अंत में दीपक को पूरे विग्रह (सिर से पैर तक) के सामने 7 बार घुमाएं।
आरती समाप्ति के बाद का विधान
आरती समाप्त होने के बाद, दीपक को तुरंत जमीन पर न रखें। इसे थाली में रखें और आरती के चारों ओर तीन बार जल छिड़क कर उसे 'शांत' या शुद्ध करें।
अब जल जाने के कारण जो ऊष्मा दीपक से निकल रही है, उस पर अपने दोनों हाथों को फेरें और फिर उन हाथों को धीरे से अपनी आँखों और माथे पर लगाएं। यह माना जाता है कि ऐसा करने से भगवान का तेज और आशीर्वाद हमें प्राप्त होता है।
अंत में थाली को सभी भक्तों के बीच वितरित करें ताकि वे भी आशीर्वाद ग्रहण कर सकें।
