Edited By Sarita Thapa,Updated: 21 Dec, 2025 04:30 PM

दुनिया भर में जब 25 दिसंबर की तारीख आती है, तो जेहन में उत्सव, बर्फ और क्रिसमस का ख्याल आता है। लेकिन हाल के वर्षों में, भारत की धरती पर इस दिन एक नई और पवित्र सांस्कृतिक लहर उठी है तुलसी पूजन दिवस।
25 December Tulsi Diwas History : दुनिया भर में जब 25 दिसंबर की तारीख आती है, तो जेहन में उत्सव, बर्फ और क्रिसमस का ख्याल आता है। लेकिन हाल के वर्षों में, भारत की धरती पर इस दिन एक नई और पवित्र सांस्कृतिक लहर उठी है तुलसी पूजन दिवस। प्रकृति और परमात्मा के अनूठे संगम का यह दिन हमें आधुनिकता के शोर के बीच अपनी जड़ों की ओर लौटने का संदेश देता है। तुलसी, जिसे सनातन धर्म में केवल एक पौधा नहीं बल्कि साक्षात लक्ष्मी और आरोग्य की देवी माना गया है, उसकी पूजा के लिए 25 दिसंबर का चयन केवल एक संयोग नहीं है। इसके पीछे छिपे हैं सदियों पुराने पौराणिक विश्वास और वे वैज्ञानिक तथ्य, जो सिद्ध करते हैं कि तुलसी हमारे जीवन के लिए कितनी अनिवार्य है। आखिर क्यों कड़ाके की ठंड के इन दिनों में तुलसी की वंदना का विधान है। तो आइए जानते हैं 25 दिसंबर को तुलसी के आंगन में दीपक जलाने के पीछे के रहस्य के बारे में-
पौराणिक महत्व
शास्त्रों के अनुसार, मार्गशीर्ष और पौष मास के दिन आध्यात्मिक साधना के लिए अत्यंत पवित्र माने जाते हैं। तुलसी को विश्वपावनी कहा गया है, जिसका अर्थ है पूरे विश्व को पवित्र करने वाली। 25 दिसंबर का समय वह होता है जब सूर्य उत्तरायण की ओर बढ़ने की तैयारी में होता है। इस समय दिव्य शक्तियों का प्रभाव बढ़ता है। इस दिन तुलसी की पूजा करने से घर में नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है और सुख-समृद्धि का वास होता है।

वैज्ञानिक रहस्य
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें तो तुलसी एक अद्भुत ऑक्सीजन बैंक है। दिसंबर की कड़ाके की ठंड में सर्दी, खांसी और वायरल बीमारियां चरम पर होती हैं। तुलसी में एंटी-बैक्टीरियल और एंटी-वायरल गुण होते हैं। वैज्ञानिक शोध बताते हैं कि तुलसी के पास रहने या उसे जल अर्पित करने से मानसिक तनाव कम होता है। 25 दिसंबर के आसपास के दिनों में दिन छोटे और रातें लंबी होती हैं, जिससे कई लोग विंटर ब्लूज़ महसूस करते हैं। तुलसी की सुगंध और उसकी सेवा मन को प्रसन्न रखती है।
इसी दिन को क्यों चुना गया?
25 दिसंबर को तुलसी पूजन दिवस मनाने का एक बड़ा कारण सांस्कृतिक संरक्षण भी है। पश्चिमी संस्कृति के प्रभाव के बीच, भारतीय विद्वानों और संतों ने यह महसूस किया कि इस दिन बच्चों और युवाओं को प्रकृति (तुलसी) की पूजा से जोड़ा जाए, ताकि वे अपने गौरवशाली इतिहास और आयुर्वेद के महत्व को समझ सकें। जहां दुनिया उत्सव में डूबी होती है, भारत उस दिन जीवनदायिनी प्रकृति की वंदना कर यह संदेश देता है कि असली उत्सव प्रकृति के संरक्षण में है।
