Kochi City in Kerala: कई संस्कृतियों की विरासत समेटे है कोच्चि

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 19 Mar, 2023 10:18 AM

kochi city in kerala

जेटी से चली मोटरबोट या फेरी के दूसरे पड़ाव तक पहुंचने पर उसके कंडक्टर ने चिल्लाकर कहा- फोर्ट कोच्चि। वहां जेटी से बाहर निकलते ही मानो

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Kochi City in Kerala: जेटी से चली मोटरबोट या फेरी के दूसरे पड़ाव तक पहुंचने पर उसके कंडक्टर ने चिल्लाकर कहा- फोर्ट कोच्चि। वहां जेटी से बाहर निकलते ही मानो किसी अलग ही दुनिया में पहुंच गए हों। डच, पुर्तगाली और ब्रिटिश स्थापत्य कला समेटे मकान और सड़कों पर साइकिल से घूमते विदेशी युवक-युवतियां। फोर्ट कोच्चि की सड़कों पर घूमते हुए लगता है जैसे किसी यूरोपीय शहर में घूम रहे हों। देश के दक्षिणी छोर पर बसे केरल के इस तटवर्ती शहर को अरब सागर की रानी यूं ही नहीं कहा जाता। यहां पुर्तगाली, यहूदी, ब्रिटिश, फ्रैंच, डच और चीनी संस्कृति का मिला-जुला रूप देखने को मिलता है। इसे पूरब का वेनिस भी कहा जाता है। वजह-वेनिस की तरह ही यहां मोटर बोट भी आवाजाही के प्रमुख साधन हैं।

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एर्नाकुलम से फोर्ट कोच्चि तक जाने के 2 रास्ते हैं। सड़क मार्ग से भी वहां पहुंचा जा सकता है लेकिन कोच्चि बंदरगाह की खूबसूरती का लुत्फ उठाने के लिए हमने जल मार्ग से जाने का फैसला किया। एक ओर बंदरगाह और दूसरी ओर समुद्र के किनारे मरीन ड्राइव पर खड़ी गगनचुंबी इमारतों का नजारा देखते और तस्वीरें खींचते हुए हमारी बोट कब फोर्ट कोच्चि पहुंच गई, पता ही नहीं चला। तंद्रा तब टूटी जब कंडक्टर ने कहा-फोर्ट कोच्चि।

इस शहर का इतिहास जितना पुराना है, संस्कृति उतनी ही विविध। कोच्चि 14वीं सदी से ही देश के पश्चिमी तट पर मसालों के व्यापार का प्रमुख केंद्र रहा है। यह शहर देश की पहली यूरोपीय कालोनियों में शुमार है। वर्ष 1530 तक यह भारत में पुर्तगाली शासन का मुख्य उपनिवेश था। उसके बाद पुर्तगालियों ने इसके लिए गोवा को चुना। बाद में डच और ब्रिटिश शासकों ने इस पर कब्जा किया। प्राचीन यात्रियों और व्यापारियों ने अपने लेखन में कोच्चि का जिक्र कोसिम, कोचिम, कोचीन और कोची के तौर पर किया है। कोचीन का यहूदी समुदाय इसे कोगिन पुकारता था। सिनेगाग की मोहर पर अब भी यही नाम है।

इस शहर का नाम आखिर कोचीन कैसे पड़ा, इसे लेकर भी कई कथाएं प्रचलित हैं। एक तबके का मानना है कि यह मलयाली शब्द कोचू अझी से बना है जिसका अर्थ है छोटा द्वीप। एक अन्य धारणा के मुताबिक, यह कासी शब्द से बना है जिसका मतलब है बंदरगाह। 15वीं सदी में यहां पहुंचे इतालवी नाविक निकोलो दा कोंती और उसके बाद 17वीं सदी में आए फ्रा पाओलिन ने लिखा है कि समुद्र को बैकवाटर्स से जोड़ने वाली नदी के नाम पर इस शहर का नाम कोच्चि पड़ा। बहरहाल, पुर्तगालियों के यहां पहुंचने के बाद सरकारी कामकाज में कोचीन नाम का ही इस्तेमाल होने लगा। वर्ष 1996 में इसका नाम बदल कर पुराने मलयाली नाम से मिलता-जुलता कोच्चि रख दिया गया। हालांकि अदालती चुनौती के बाद सरकारी दस्तावेजों में अब भी इस शहर का नाम कोचीन ही है।

पुर्तगालियों के आगमन से पहले का कोच्चि का इतिहास काफी धुंधला है। इस शहर के इतिहास में पुर्तगालियों का आगमन एक अहम पड़ाव साबित हुआ। कोच्चि के राजाओं ने इन विदेशियों का स्वागत किया क्योंकि उन्हें कालीकट के जमोरिन के साथ दुश्मनी के चलते एक शक्तिशाली सहयोगी की तलाश थी। केशव राम वर्मा के शासनकाल में यहूदियों को भी राजकीय संरक्षण हासिल था। यह लोग मूल रूप से कोदनगलूर से व्यापार के मकसद से कोच्चि पहुंचे थे।

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डच शासन के तहत कोचीन सबसे ज्यादा संपन्न रहा। कोच्चि की बंदरगाह 17वीं शताब्दी में डच के अधीन हो गई थी। यहां से मिर्च, इलायची, अन्य मसाले और औषधियों के साथ ही नारियल की जटा, नारियल और खोपरा निर्यात किए जाते थे। वर्ष 1500 में पुर्तगाली नाविक पेड्रो अल्वारेस कैब्रल ने यहां भारतीय भूमि पर पहली यूरोपीय बस्ती की स्थापना की। भारत के समुद्री मार्ग को खोजने वाले वास्कोडिगामा ने वर्ष 1502 में पहले पुर्तगाली व्यापार केंद्र की स्थापना की और पुर्तगाली वायसराय अलफांसो-द-अल्बुकर्क ने यहां वर्ष 1503 में पहला पुर्तगाली किला बनवाया। वर्ष 1663 में डचों के यहां पहुंचने तक यह शहर पुर्तगाली मालिकाना में रहा। शहर में अब भी पुर्तगाली स्थापत्य कला की बहुतायत देखने को मिलती है। अरब सागर के किनारे गांधी बीच के पास ही वास्कोडिगामा स्क्वायर भी है।

सबसे पहले हम अरब सागर में लगे विशालकाय चाइनीज फिशिंग नैट देखने गए, जो यहां की दर्शनीय चीजों में शुमार है। एक कतार में लगे इन विशालकाय जालों को एक साथ पानी के भीतर जाते और हजारों मछलियों के साथ बाहर निकलते देखना अपने आप में एक अनूठा अनुभव है। चीनी जाल केरल के मछुआरों की रोजी-रोटी का मुख्य साधन है। ये जाल काफी पुराने और तकनीकी है। माना जाता है कि चीन के शासक कुबलई खान के दरबार से झेंग ही नामक एक चीनी यात्री इनको लेकर कोच्चि आया था। चीन के अलावा पूरी दुनिया में सिर्फ यहीं इस जाल का इस्तेमाल होता है।

20वीं सदी की शुरूआत में कारोबार बढ़ने की वजह से कोच्चि बंदरगाह को विकसित करने के लिए मद्रास के तत्कालीन गवर्नर लार्ड विलिंग्डन ने हार्बर इंजीनियर राबर्ट ब्रिस्टोव को वर्ष 1920 में कोचीन भेजा। ब्रिसोटव ने 21 वर्षों की अथक मेहनत के बाद कोचीन को देश के सबसे प्रमुख बंदरगाहों की कतार में खड़ा कर दिया।

कोच्चि में पर्यटन एक प्रमुख व्यवसाय है। देशी-विदेशी पर्यटकों की आवक के मामले में कोच्चि केरल में पहले स्थान पर है। यह शहर दक्षिणी नेवल कमांड का मुख्यालय और भारतीय कोस्ट गार्ड का प्रदेश मुख्यालय भी है।      

कोच्चि में हैं कई प्रसिद्ध धार्मिक स्थल
फोर्ट कोच्चि में पुर्तगालियों की ओर से वर्ष 1503 में बनाया गया सेंट फ्रांसिस चर्च भारत में पहला यूरोपीय चर्च होने के कारण प्रसिद्ध है। यहां कुछ समय के लिए वास्कोडिगामा को दफनाया गया था। बाद में उनके पार्थिव अवशेष पुर्तगाल ले जाए गए। लेकिन उस कब्र के पत्थर को आज भी देखा जा सकता है। चर्च के बाहर तरह-तरह की कलाकृतियां और पत्थर बिकते हैं। आम पर्यटक चर्च की भीतर जाकर भी तस्वीरें खींच-खिंचवा रहे थे।

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अन्य गिरजाघरों के साथ ही यहां हिन्दू मंदिर, मस्जिदें और मत्तनचेरी का ऐतिहासिक सिनेगाग (यहूदी उपासना गृह) मौजूद हैं। चौथी शताब्दी में बसा कोच्चि का यहूदी समुदाय भारत में सबसे पुराना था। हालांकि हजारों सदस्यों में से अधिकांश 20वीं शताब्दी के उत्तराद्र्ध तक इसराईल चले गए थे।

बोलघट्टी महल जिसे अब लग्जरी होटल में तबदील कर दिया गया है
बोलघट्टी महल को देखने के लिए रोजाना काफी तादाद में पर्यटक यहां आते हैं। डच व्यापारियों ने बोलघट्टी द्वीप पर यह बोलगाट्टी पैलेस बनवाया था जो हालैंड के बाहर आज भी सबसे पुराना डच पैलेस है। इस महल को अब एक लग्जरी होटल में तब्दील कर दिया गया है। बोलघट्टी में एक गोल्फ कोर्स भी है। यहां पर लोग पिकनिक मनाने भी आते हैं।

यह शहर बरसों तक मसालों के कारोबार का प्रमुख केंद्र रहा। वर्ष 1341 में पेरियार नदी में आई भयावह बाढ़ में कोडनगलूर के पास बने पोर्ट मुजिरिस के नष्ट होने के बाद कोच्चि की अहमियत बढ़ी। 15वीं सदी में एडमिरल झेंग ही के जहाजों के काफिले के साथ यहां पहुंचे चीनी यात्री मा हुआन की लेखनी में कोच्चि का जिक्र मिलता है। उसके बाद 1440 में आने वाले इतालवी यात्री निकोलो दा कोंती ने भी इस शहर के बारे में लिखा है। आजादी के समय कोचीन देश का पहला राज्य था जिसने अपनी मर्जी से भारतीय संघ में शामिल होने पर सहमति दी थी।

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