Edited By Niyati Bhandari,Updated: 16 Aug, 2025 06:45 AM

Krishna Janmashtami 2025 Katha: जन्माष्टमी एक हिंदू पर्व है जो भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। यह भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को आता है, आमतौर पर अगस्त या सितंबर माह में आता है। इस दिन भक्त उपवास रखते हैं,...
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Krishna Janmashtami 2025 Katha: जन्माष्टमी एक हिंदू पर्व है जो भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। यह भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को आता है, आमतौर पर अगस्त या सितंबर माह में आता है। इस दिन भक्त उपवास रखते हैं, भजन-कीर्तन करते हैं और मध्यरात्रि को श्रीकृष्ण के जन्म का उत्सव मनाते हैं क्योंकि मान्यता है कि उनका जन्म रात 12 बजे हुआ था। श्रीकृष्ण, भगवान विष्णु के आठवें अवतार माने जाते हैं, जिन्होंने मथुरा में कंस के अत्याचारों से लोगों को मुक्त कराया और धर्म, प्रेम तथा न्याय की स्थापना की। जन्माष्टमी का पर्व भक्ति, संयम और सेवा भाव का प्रतीक है। इसे घरों और मंदिरों में झूला सजाकर, दही-हांडी जैसे आयोजन कर और कथा-पूजन के साथ बड़े हर्षोल्लास से मनाया जाता है, जिससे जीवन में सकारात्मकता, सुख और शांति का संचार होता है।
भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र में अखिल ब्रह्मडों के स्वामी भगवान श्री कृष्ण कंस के कारागार में माता देवकी तथा पिता वासुदेव के यहां प्रकट हुए। श्रीमद् भागवत महापुराण के दसवें स्कंध में श्री कृष्ण जन्म का बहुत ही सुंदर वृत्तांत प्राप्त होता है। पिता वासुदेव जी भगवान श्री कृष्ण जी को उनके जन्म की रात को नंद भवन में यशोदा मैया के पास छोड़ आए तथा पुत्री रूप में जन्मी साक्षात् मां आदिशक्ति को ले आए। गोकुल और नंद गांव में भगवान की लीलाएं, भवसागर से पार करवाने वाली हैं।

जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्वत:। त्यक्तवा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोडर्जुन॥’’
भगवान श्री कृष्ण अर्जुन के प्रति श्री गीता जी में कहते हैं कि मेरे जन्म और कर्म दिव्य अर्थात आलौकिक और निर्मल हैं , इस प्रकार जो मनुष्य तत्व से जान लेता है, वह शरीर को त्याग कर फिर पुनर्जन्म को प्राप्त नहीं होता अपितु मुझे ही प्राप्त होता है। भगवान के जन्म तथा कर्म को तत्व से जानने का अभिप्राय है कि भगवान प्रकृति को अपने अधीन करके अपनी योगमाया से प्रकट होते हैं। सर्वभूतों के परमगति तथा परम आश्रय भगवान श्री कृष्ण धर्म की स्थापना तथा संसार का उद्धार करने के प्रायोजन से ही प्रकट होते हैं।

जब सम्पूर्ण पृथ्वी दुष्टों एवं पतितों के भार से पीड़ित थी तथा पापियों के बोझ से पूर्णत: दब चुकी थी, तब पृथ्वी तथा सम्पूर्ण देवताओं द्वारा मानवता को बचाने के लिए भगवान वासुदेव से पृथ्वी को अधर्मी लोगों से मुक्त करवाने हेतु प्रार्थना की गई। भगवान का शिशु चरित्र गोकुल में तथा बाल चरित्र वृंदावन में होने का वृतांत हमें प्राप्त होता है। गोकुल में पूतना वध, शकट भंजन, तृनावर्त वध तथा वृंदावन में बकासुर, अघासुर तथा धेनुकासुर इत्यादि असुरों के अंत का वर्णन हमें श्रीमद् भागवत से प्राप्त होता है।

इसके अतिरिक्त कालिय नाग का मान मर्दन तथा गोवर्धन पूजा का आरंभ कर इंद्र के अहंकार को मिटाने की लीलाएं भी वृंदावन में सम्पन्न हुईं। यहीं पर ब्रह्मा जी को भी बाल कृष्ण भगवान के परात्पर ब्रह्म होने का ज्ञान मिला। तब मथुरा से कंस का षड्यंत्र पूर्वक निमंत्रण प्राप्त होने पर भगवान वहां पहुंच कर न केवल अत्याचारी कंस का वध करते हैं अपितु अपने माता-पिता को बंदीगृह से मुक्त करवाते हैं, तदोपरांत द्वारिका में अपने राज्य की स्थापना कर द्वारिकाधीश कहलाते हैं।
