Air Pollution: सांस लेना हुआ मुश्किल! दिल्ली की हवा फेफड़ों के लिए कितनी घातक, एक्सपर्ट्स ने किया चौंकाने वाला खुलासा

Edited By Updated: 21 Dec, 2025 06:51 PM

breathing has become difficult how dangerous is delhi s air for the lungs

दिल्ली में रिकॉर्ड स्तर पर वायु प्रदूषण का संकट लगातार गहराता जा रहा है। राजधानी में एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) 400 के आसपास बना हुआ है, जो ‘बेहद गंभीर’ श्रेणी में आता है। इस स्तर पर सांस लेना मुश्किल हो जाता है, खांसी, आंखों में जलन और फेफड़ों से...

नेशनल डेस्क: दिल्ली में रिकॉर्ड स्तर पर वायु प्रदूषण का संकट लगातार गहराता जा रहा है। राजधानी में एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) 400 के आसपास बना हुआ है, जो ‘बेहद गंभीर’ श्रेणी में आता है। इस स्तर पर सांस लेना मुश्किल हो जाता है, खांसी, आंखों में जलन और फेफड़ों से जुड़ी गंभीर बीमारियों का खतरा कई गुना बढ़ जाता है। भले ही सरकार यह कह रही हो कि AQI और फेफड़ों की बीमारियों के बीच सीधा संबंध साबित करने वाले ठोस आंकड़े नहीं हैं, लेकिन मेडिकल और वैज्ञानिक रिपोर्ट्स इस दावे को पूरी तरह खारिज करती हैं।

रिपोर्ट्स क्या कहती हैं?
मेडिकल जर्नल ऑफ एडवांस्ड रिसर्च इंडिया के मुताबिक खराब हवा फेफड़ों की कार्यक्षमता को धीरे-धीरे कमजोर कर रही है। वहीं, द लैंसेट और ICMR की 2019 की रिपोर्ट ‘इंडिया स्टेट-लेवल डिजीज बर्डन इनिशिएटिव’ बताती है कि भारत में उस साल हुई कुल मौतों में करीब 18 प्रतिशत यानी लगभग 16.7 लाख मौतें वायु प्रदूषण से जुड़ी थीं। स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर रिपोर्ट 2024 के आंकड़े और भी चिंताजनक हैं, जिनके अनुसार भारत में हर साल करीब 21 लाख लोगों की मौत का कारण वायु प्रदूषण बन रहा है।


उम्र पर भी पड़ रहा है असर
वायु प्रदूषण सिर्फ बीमारियां ही नहीं बढ़ा रहा, बल्कि लोगों की उम्र भी कम कर रहा है। ICMR के आंकड़ों के अनुसार औसत भारतीय की उम्र लगभग 1.7 साल घट रही है। शिकागो यूनिवर्सिटी की रिपोर्ट इससे भी आगे जाती है, जिसमें दावा किया गया है कि प्रदूषण के कारण औसत भारतीय की उम्र 3.5 साल तक कम हो सकती है। दिल्ली-NCR में रहने वालों पर इसका असर सबसे ज्यादा है, जहां लोगों की औसत आयु 7.8 से 10 साल तक घटने की आशंका जताई गई है। इसके अलावा, प्रदूषण से होने वाली बीमारियों के चलते भारत को अपनी GDP का करीब 1.36 प्रतिशत आर्थिक नुकसान भी उठाना पड़ रहा है।


सरकारी आंकड़े और जमीनी हकीकत
हालांकि पर्यावरण राज्य मंत्री कीर्ति वर्धन सिंह का कहना है कि प्रदूषण और फेफड़ों की बीमारियों के बीच संबंध पर ठोस डेटा उपलब्ध नहीं है, लेकिन केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़े अलग कहानी बताते हैं। 3 दिसंबर को राज्यसभा में दी गई जानकारी के अनुसार, 2022 से 2024 के बीच दिल्ली के छह बड़े सरकारी अस्पतालों में सांस से जुड़ी बीमारियों के 2,04,758 मामले सामने आए। इनमें से करीब 35 हजार मरीजों को अस्पताल में भर्ती करना पड़ा, और मंत्रालय ने वायु प्रदूषण को इसका प्रमुख कारण माना है।


हेल्थ एक्सपर्ट्स की चेतावनी
हेल्थ एक्सपर्ट्स भी इस खतरे को लेकर आगाह कर रहे हैं। वरिष्ठ रेडियोलॉजिस्ट डॉ. संदीप शर्मा का कहना है कि प्रदूषण धीरे-धीरे फेफड़ों को खराब कर रहा है और इससे जीवन प्रत्याशा 5 से 10 साल तक कम हो सकती है। वहीं वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. नीतू जैन बताती हैं कि अब सिर्फ बीमार लोग ही नहीं, बल्कि स्वस्थ लोगों को भी सांस लेने में दिक्कत हो रही है और दिल्ली में रहने वालों के फेफड़े लगातार कमजोर हो रहे हैं।


सरकार की कोशिशें, लेकिन सवाल बरकरार
दिल्ली भले ही गैस चैंबर जैसी स्थिति में पहुंच गई हो और अस्पतालों में सांस से जुड़ी बीमारियों के मरीजों की भीड़ बढ़ गई हो, फिर भी सरकार प्रदूषण पर नियंत्रण के लिए प्रयास करती दिख रही है। हाल के दिनों में उठाए गए कुछ कदमों से थोड़ी राहत जरूर मिली है, लेकिन ये प्रयास कितने कारगर साबित होंगे, यह आने वाला वक्त ही बताएगा। फिलहाल, विशेषज्ञों की राय साफ है। दिल्ली की हवा फेफड़ों और जिंदगी दोनों के लिए बेहद खतरनाक बन चुकी है।

 

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