क्या सच में श्रीकृष्ण के थे 99 बच्चे ? जानिए उनके वीर पुत्रों और रहस्यमयी पुत्रियों की अनकही कथा

Edited By Updated: 18 Dec, 2025 11:54 AM

shri krishna katha

श्रीकृष्ण का स्मरण करते ही मन में उनकी अनेक दिव्य छवियां उभर आती हैं। कभी माखन चुराने वाले नटखट बालक, कभी ग्वालों के सखा, तो कभी कुरुक्षेत्र में अर्जुन के सारथी और गीता का अमर ज्ञान देने वाले योगेश्वर। राधा के प्रियतम के रूप में भी उनकी पहचान अमिट...

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Shri Krishna katha: श्रीकृष्ण का स्मरण करते ही मन में उनकी अनेक दिव्य छवियां उभर आती हैं। कभी माखन चुराने वाले नटखट बालक, कभी ग्वालों के सखा, तो कभी कुरुक्षेत्र में अर्जुन के सारथी और गीता का अमर ज्ञान देने वाले योगेश्वर। राधा के प्रियतम के रूप में भी उनकी पहचान अमिट है। लेकिन इन सभी रूपों के बीच उनका एक मानवीय पक्ष अक्सर अनदेखा रह जाता है कृष्ण एक पिता भी थे।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान कृष्ण की 16,108 पत्नियां थीं और उनसे उत्पन्न संतानें असंख्य थीं। कहा जाता है कि उनके कुल पुत्रों की संख्या लगभग 1,80,000 थी, हालांकि हिंदू ग्रंथों में मुख्य रूप से 99 संतानों का ही उल्लेख मिलता है। आश्चर्य की बात यह है कि कृष्ण के पुत्र-पुत्रियों के जीवन और योगदान पर बहुत कम चर्चा होती है, जबकि वे भी अपने-अपने समय के वीर, विद्वान और प्रभावशाली व्यक्तित्व थे।

प्रद्युम्न – कृष्ण का पराक्रमी पुत्र
रुक्मिणी से जन्मे कृष्ण के ज्येष्ठ पुत्र प्रद्युम्न को कामदेव का अंशावतार माना जाता है। वे न केवल अत्यंत सुंदर थे, बल्कि एक कुशल योद्धा भी थे। यादव वंश की रक्षा में उनका योगदान महत्वपूर्ण माना जाता है। द्वारका को शत्रुओं से बचाने में उनकी भूमिका कृष्ण की दिव्य शक्ति के मानवीय रूप का प्रतीक थी।

सांबा- अहंकार और श्राप की कथा
जाम्बवती से जन्मे पुत्र सांबा अपने तेज और साहस के साथ-साथ अपने अहंकार के लिए भी जाने जाते थे। ऋषियों का उपहास करने के कारण उन्हें ऐसा श्राप मिला, जिसने आगे चलकर यादव वंश के विनाश का मार्ग प्रशस्त किया। सांबा का जीवन यह दर्शाता है कि देवपुत्र भी कर्म और परिणाम से ऊपर नहीं होते।

चारुदेश्न- अनुशासन और वीरता का प्रतीक
रुक्मिणी के एक अन्य पुत्र चारुदेश्न कृष्ण के युद्ध अभियानों में उनके निकटतम सहयोगियों में गिने जाते थे। महाभारत में उनका उल्लेख यादव सेना के एक साहसी राजकुमार के रूप में मिलता है। वे वीरता के साथ-साथ मर्यादा और अनुशासन के लिए भी प्रसिद्ध थे।

भानु-तेज और साहस का उदाहरण
रुक्मिणी से उत्पन्न भानु नामक पुत्र अपने नाम के अनुरूप तेजस्वी और साहसी थे। विष्णु पुराण में उन्हें कृष्ण के प्रमुख पुत्रों में गिना गया है, जिन्होंने अपने माता-पिता के वंश की गरिमा को बनाए रखा।

गदा- द्वारका का रक्षक
कृष्ण के पुत्र गदा को शक्ति और पराक्रम का प्रतीक माना जाता है। द्वारका की रक्षा में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण रही। उनमें अपने पिता से प्राप्त शौर्य और युद्ध कौशल स्पष्ट दिखाई देता था।

कृष्ण के वंशज और आगे की कहानी

कृष्ण के पुत्रों के साथ-साथ उनके पौत्र भी अत्यंत पराक्रमी थे। प्रद्युम्न के पुत्र अनिरुद्ध और उनके वंशजों में वज्र विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। द्वारका के विनाश के बाद वज्र जीवित बचे और पांडवों द्वारा मथुरा का शासक बनाए गए। इसी प्रकार कुछ वंशजों ने आगे चलकर कृष्ण की परंपरा को जीवित रखा।

रुक्मिणी, जाम्बवती और सत्यभामा के पुत्र
विष्णु पुराण के अनुसार रुक्मिणी से कृष्ण के 10 पुत्र और एक पुत्री थीं, जिनमें प्रद्युम्न, चारुदेश्न, सुचारु, चारुगुप्त और अन्य नाम शामिल हैं।
जाम्बवती से भी 10 पुत्र माने जाते हैं, जिनमें सांबा प्रमुख थे। सत्यभामा से उत्पन्न 10 पुत्रों का उल्लेख भी ग्रंथों में मिलता है, हालांकि उनके जीवन की कथाएं अपेक्षाकृत कम वर्णित हैं।

कृष्ण की पुत्रियां और राजनीतिक गठबंधन
ग्रंथों में यह भी संकेत मिलता है कि कृष्ण की कई पुत्रियां थीं, जिनका विवाह विभिन्न राजवंशों में हुआ। इन विवाहों का उद्देश्य राजनीतिक और सामाजिक गठबंधनों को सुदृढ़ करना था, जिससे यादव वंश का प्रभाव बढ़ा। दुर्भाग्यवश उनके नामों का विस्तृत विवरण उपलब्ध नहीं है।

99 संतानों का प्रतीकात्मक अर्थ
कृष्ण की 99 संतानों की संख्या को केवल ऐतिहासिक तथ्य नहीं, बल्कि एक प्रतीक भी माना जाता है। यह पूर्णता के निकट की अवस्था को दर्शाती है, जहां दिव्यता और मानवता एक-दूसरे से जुड़ती हैं। उनकी संतानें विभिन्न वंशों में धर्म और संस्कृति के प्रसार का माध्यम बनीं।

जब कृष्ण ने पृथ्वी से विदा ली और द्वारका समुद्र में विलीन हो गई, तब उनके अधिकांश वंशज भी नष्ट हो गए। फिर भी कुछ वंशजों के माध्यम से कृष्ण की परंपरा महाभारत काल के बाद भी जीवित रही। कृष्ण के ये 99 बच्चे हमें यह स्मरण कराते हैं कि ईश्वर भी मानव रूप में जीवन की सभी भूमिकाएं निभाते हैं, पिता के रूप में स्नेह देते हुए, मार्गदर्शन करते हुए, रक्षा करते हुए और कभी-कभी अपार क्षति को भी सहते हुए।

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