Lohri: लोहड़ी की रात आग की लपटें, सूर्य तक पहुंचाती हैं ये संदेश

Edited By Updated: 11 Jan, 2025 07:09 AM

lohri

Lohri 2025: लोहड़ी पर्व पंजाब, हरियाणा और दिल्ली सहित उत्तर भारत के अन्य क्षेत्रों में भी धूमधाम से मनाया जाता है। यह पर्व सुख-समृद्धि व खुशियों का प्रतीक माना जाता है, जो प्रत्येक वर्ष मकर संक्रांति से एक दिन पूर्व 13 जनवरी को मनाया जाता है। इस...

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

Lohri 2025: लोहड़ी पर्व पंजाब, हरियाणा और दिल्ली सहित उत्तर भारत के अन्य क्षेत्रों में भी धूमधाम से मनाया जाता है। यह पर्व सुख-समृद्धि व खुशियों का प्रतीक माना जाता है, जो प्रत्येक वर्ष मकर संक्रांति से एक दिन पूर्व 13 जनवरी को मनाया जाता है। इस पर्व का उत्साह तब और बढ़ जाता है, यदि घर में नवविवाहित बहू हो या बच्चे का जन्म हुआ हो। लोहड़ी के त्यौहार का मौसम व फसल से भी जुड़ाव है।
इस मौसम में पंजाब के किसानों के खेत लहलहाने लगते हैं। रबी की फसल कटकर आ जाती है। ऐसे में नई फसल की खुशी और अगली बुवाई की तैयारी से पहले यह त्यौहार धूमधाम से मनाया जाता है।

PunjabKesari Lohri
ठंड की इस रात को परिवार के साथ उल्लासपूर्वक मनाने के लिए लकड़ी और उपलों की मदद से आग जलाई जाती है। उसके बाद अग्नि में तिल की रेवड़ी, चिवड़ा, मूंगफली व मक्का आदि से बनी चीजें अर्पित की जाती हैं। परिवार के सदस्य, मित्र व करीबी मिल-जुल कर अग्नि की परिक्रमा व नाच-गाना भी करते हैं।

कई जगह ढोल-नगाड़े बजाए जाते हैं व पुरुष तथा महिलाएं भंगड़ा-गिद्दा डालते हैं। परम्परागत गीत गाए जाते हैं। अग्नि के सामने नवविवाहित जोड़े अपना वैवाहिक जीवन सुखमय बनने की कामना करते हैं। पवित्र अग्नि में तिल डालने के बाद बड़े- बुजुर्गों से आशीर्वाद लिया जाता है।

इस पर्व का संबंध अनेक ऐतिहासिक कथाओं से जोड़ा जाता है, पर इससे जुड़ी प्रमुख लोक कथा दुल्ला भट्टी की है। कहा जाता है कि पंजाब में संदलबार नामक जगह पर एक ब्राह्मण की दो लड़कियों ‘सुंदरी’ व ‘मुंदरी’ के साथ स्थानीय शासक जबरन शादी करना चाहता था।

उनकी सगाई कहीं और हुई थी लेकिन शासक के डर से इन लड़कियों के ससुराल वाले शादी के लिए तैयार नहीं हो रहे थे। मुसीबत की घड़ी में दुल्ला भट्टी ने ब्राह्मण की मदद की तथा लड़के वालों को मनाकर एक जंगल में आग जलाकर सुंदरी और मुंदरी का विवाह करवाकर स्वयं दोनों का कन्यादान किया। कहा जाता है कि दुल्ले ने शगुन के रूप में उन दोनों को शक्कर दी।

PunjabKesari Lohri
इस कथानुसार लोहड़ी के पर्व को अत्याचार पर साहस व सत्य की विजय के पर्व के रूप में मनाते हैं। इसी कथा की हिमायत करता लोहड़ी का निम्न गीत भी इस अवसर पर गाया जाता है :
सुंदर मुंदरिए हो, तेरा कौन बेचारा हो...
दुल्ला भट्टी वाला हो, दुल्ली ने धी ब्याही हो, सेर शक्कर पाई हो...
साडे पैरां हेठ रोड़, सोनू छेती-छेती तोर,
साडे पैरां हेठ परात, सानू उत्तों पै गई रात,
दे माई लोहड़ी, जीवे तेरी जोड़ी...


दुर्भाग्य से यह त्यौहार केवल लड़कों के लिए महत्व रखने लगा और लड़कियों को हीन समझा जाने लगा।

श्री गुरु नानक देव जी ने कहा है- ‘सो क्यों मंदा आखिए, जित जम्मे राजान’ अर्थात राजा-महाराजाओं, संतों और मनीषियों को जन्म देने वाली स्त्री हीन कैसे हो सकती है ? स्त्री-पुरुष समानता को स्वीकार करते हुए आजकल अनेक संस्थाएंं व परिवार ‘कन्या लोहड़ी’ भी मनाने लग गए हैं, जहां कन्याओं को जन्म देने वाली माताओं को सम्मानित किया जाता है।

कई स्थानों पर लोहड़ी की रात को गन्ने के रस से खीर बनाई जाती है और अगले दिन माघी के दिन खाई जाती है, जिसके लिए ‘पोह रिद्धि माघ खाधी’ अर्थात ‘पोह (पौष) माह में बनाया व माघ माह में खाया’ कहा जाता है।

लोहड़ी से जुड़ी एक अन्य कथा के अनुसार, हमारे पूर्वजों ने एक पवित्र मंत्र सूर्य देव का आह्वान करने के लिए बनाया था, ताकि वे उन्हें इतनी गर्मी भेजें कि सर्दियों की ठंड का उन पर कोई प्रभाव न पड़े। सूर्य देव को धन्यवाद देने के लिए हमारे पूर्वजों ने पौष के आखिरी दिन अग्नि के चारों ओर इस मंत्र का जाप किया।

उनका मानना था कि आग की लपटें उनका संदेश सूर्य तक ले जाती हैं और यही कारण है कि लोहड़ी के बाद की सुबह नए महीने माघ का पहला दिन होता है, सूर्य की किरणें अचानक गर्म हो जाती हैं और ठंड को दूर ले जाती हैं।

PunjabKesari Lohri

Trending Topics

IPL
Royal Challengers Bengaluru

190/9

20.0

Punjab Kings

184/7

20.0

Royal Challengers Bengaluru win by 6 runs

RR 9.50
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!