Edited By Niyati Bhandari,Updated: 13 Jan, 2024 10:57 AM
लोहड़ी उत्तर भारत में फसल कटने के मौसम में मनायी जाती है। यह समय कृषकों के परिश्रम का लाभ मिलने का समय होता है। हम इस मौसम की पहली फसल को सभी के साथ बांट कर उत्सव मनाते हैं।
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Lohri 2024: लोहड़ी उत्तर भारत में फसल कटने के मौसम में मनायी जाती है। यह समय कृषकों के परिश्रम का लाभ मिलने का समय होता है। हम इस मौसम की पहली फसल को सभी के साथ बांट कर उत्सव मनाते हैं। प्राचीन प्रथाओं के अनुसार लोग जब गन्ने की या धान की पहली बोरी की कटाई करते थे तो इसे समाज में सभी के साथ साझा करते थे। संक्रांति ईश्वरीय विधान और मनुष्य के रूप में हमारे दायित्व की याद दिलाती है कि हमारे पास जो कुछ है उसे सबके साथ साझा करें।
लोहड़ी का सबसे सुंदर तत्व सबके साथ बांटने की संस्कृति है और इसे केवल फसल तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए। यह उस असीम उदारता की याद दिलाती है जिसकी वर्षा परमात्मा हर समय हम पर कर रहा है। इस अवसर पर हमें, स्वयं को दूसरों के उत्थान के लिए, पुन: प्रतिबद्ध होना चाहिए।
लोहड़ी जैसे भारतीय पर्वों के विषय में सबसे सुंदर बात यह है कि इन पर्वों को चिह्नित करने वाले अनुष्ठानों और उत्सवों के पीछे गहरा ज्ञान छिपा है। प्रत्येक पर्व मनुष्य में निहित दिव्य गुणों को पहचानने और उनका सम्मान करने का एक अवसर है। लोहड़ी पर तिल के साथ गुड़ बांटना एक प्रचलित अनुष्ठान है। तिल ब्रह्मांड की पृष्ठभूमि में मानव अस्तित्व के सबसे छोटे पहलू का प्रतिनिधित्व करता है, और गुड़ मिठास का प्रतिनिधित्व करता है। जब हम तिल और गुड़ देते हैं तो हम कामना करते हैं कि व्यक्ति विनम्र, प्रसन्न, मधुर और अहंकार रहित रहे।
अग्नि में मकई के फुल्ले चढ़ाने की भी परंपरा है। देखिये, मक्का सख्त होता है, लेकिन जब आप इसे गर्म करते हैं, तो मक्का फूल जाता है तथा हल्का व स्वादिष्ट हो जाता है। इसी तरह हर व्यक्ति के भीतर ऊर्जा विद्यमान है। आध्यात्मिक अभ्यास से ऊर्जा खिलती है, ऊपर उठती है और खुलती है। ऐसी कोई जगह नहीं है जो ऊर्जा से रहित हो। लेकिन कई स्थानों पर ये सुप्त अवस्था में है। जब हम ध्यान करते हैं तो यह ऊर्जा जागृत होती है। दिव्य ऊर्जा हम सभी के भीतर मौजूद है।
लोहड़ी वह समय है जो हमें यह सोचने पर विवश करता है कि हम कौन हैं। इस सृष्टि में हमारा क्या महत्व है और हम कब तक यहां रहेंगे ? हमारा जीवन क्या है ? इस विशाल सृष्टि में एक छोटे से तिल के बीज की तरह, लगभग कुछ भी नहीं।
यदि आप देखें तो तिल बाहर से काला होता है लेकिन भीतर से सफेद होता है, जो हमारी आंतरिक शुद्धता को बनाए रखने की याद दिलाता है और थोड़ा सा रगड़ने से ही तिल बाहर से भी सफेद हो जाता है। हमें बस नकारात्मकता और तनाव के इन बाहरी आवरणों को गिराना है और तब हम पाएंगे कि हर कोई शुद्ध है।
हम तिल के बीज की तरह विनम्र, मकई के फुल्ले की तरह हल्के और गुड़ की तरह मीठे हैं। जिस क्षण अहंकार या भ्रम होता है कि 'मैं कुछ हूं' या 'मैं शक्तिशाली हूं', पतन शुरू हो जाता है। यह एक अनुभव जन्य सत्य है। इसे पहचानना और स्वयं को इनसे बचाना आध्यात्मिक ज्ञान के सार में से एक है।
लोहड़ी तब मनाई जाती है जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है, जो अंततः सर्दियों के अंत का प्रतीक है और सर्दियों की कठोरता के बाद प्रचुर धूप की शुरुआत का प्रतीक है। यह सर्दी की कठोरता है जो वसंत के माधुर्य को प्रकाशित करती है। जीवन में विरोधी मूल्य भले ही विपरीत लगते हों लेकिन वे एक-दूसरे के पूरक होते हैं। जब सब कुछ सुखद हो तब भी अच्छाई का मूल्य होता है लेकिन यह उन स्थितियों में प्रमुखता से चमकती है, जब चीजें इतनी अनुकूल नहीं होती हैं। जब परिस्थितियां प्रतिकूल हों तो आपकी करुणा, धैर्य, सहनशक्ति और प्रेम का महत्व है और विपरीत परिस्थितियों में भी जब आप अपने विश्वास पर टिके रहते हैं तो वही सच्चा विश्वास होता है।
वर्ष में दो दिन ऐसे होते हैं- लोहड़ी या मकर संक्रांति और गुरु पूर्णिमा, जब कोई साधक पीछे मुड़कर देखता है और ईमानदारी से विचार करता है कि पिछले एक वर्ष में उसने आध्यात्मिकता के पथ पर कितनी प्रगति की है। एक बार जब कोई व्यक्ति दृढ़तापूर्वक मार्ग पर चल पड़ता है तो केवल दिन या वर्ष ही नहीं, बल्कि हर क्षण एक दिव्य और शुभ समय बन जाता है। इसे लोहड़ी का उपयोग परमात्मा के साथ अपने संबंध की समीक्षा करने और दृढ़ विश्वास के साथ आगे बढ़ने के लिए करें।