ब्रिटेन के स्कूल में नमाज के लिए अलग कमरा उपलब्ध कराने की मांग अदालत में खारिज

Edited By Prachi Sharma,Updated: 17 Apr, 2024 07:48 AM

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ब्रिटेन के उत्तरी लंदन के वैम्बली में स्थित लड़कों व लड़कियों के माध्यमिक मिशेला स्कूल की एक मुस्लिम छात्रा द्वारा दायर केस यू.के. हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया। मुस्लिम छात्रा ने स्कूल में नमाज पढ़ने के लिए

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लंदन (सर्बजीत बनूड़, एजैंसी): ब्रिटेन के उत्तरी लंदन के वैम्बली में स्थित लड़कों व लड़कियों के माध्यमिक मिशेला स्कूल की एक मुस्लिम छात्रा द्वारा दायर केस यू.के. हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया। मुस्लिम छात्रा ने स्कूल में नमाज पढ़ने के लिए अलग कमरा उपलब्ध कराने की मांग स्कूल की ओर से रद्द कर दिए जाने को चुनौती दी थी। स्कूल में आधे छात्र मुस्लिम हैं। यहां बड़ी संख्या में सिख, हिंदू व ईसाई छात्र भी हैं।

न्यायमूर्ति थॉमस लिंडेन ने जनवरी में हुई सुनवाई के बाद 80 पन्नों में स्कूल के पक्ष में फैसला सुनाया। उन्होंने अपने निर्णय में लिखा-“मेरे फैसले में प्रारंभिक बिंदु यह है कि स्कूल का यह दृष्टिकोण सही है कि क्या स्कूल में प्रार्थना के लिए अलग सुविधा प्रदान की जाए ?

 वास्तव में प्रार्थना कक्ष प्रदान किए जाने से स्कूल की दीर्घकालिक नीति पलट जाती।’ अदालत ने टिप्पणी की कि छात्रा जानती है कि स्कूल धर्मनिरपेक्ष है तथा उसका सबूत यह है कि उसकी मां चाहती थी कि वह वहां पढ़े क्योंकि यह कठोर अनुशासन वाला स्कूल माना जाता है। मां की बात से पता चलता है कि उसकी प्राथमिकता क्या थी पर अब छात्रा कुछ और मानने लगी है।

स्कूल की भारतीय मूल की प्रिंसीपल कैथरीन बीरबल सिंह, जिन्हें ‘ब्रिटेन की सबसे कठोर प्रधानाध्यापिका’ के रूप में जाना जाता है, ने हाईकोर्ट के निर्णय का स्वागत किया। भारतीय-गुयाना वंशज की कैथरीन बीरबल सिंह ने अदालत में अपना पक्ष रखते हुए कहा था कि मिशेला स्कूल एक धर्मनिरपेक्ष विद्यालय है जहां समावेशी वातावरण को बढ़ावा देने के अपने लोकाचार को ध्यान में रखते हुए धार्मिक प्रार्थनाओं की अनुमति नहीं जाती।

प्रिंसीपल को यू.के. सरकार का समर्थन प्राप्त हुआ। शिक्षा सचिव गिलियन कीगन ने कहा कि मैं सदैव से स्पष्ट रहा हूं कि प्रधानाध्यापक अपने स्कूल में निर्णय लेने के लिए सबसे अधिक सक्षम व्यक्ति होते हैं। मिशेला स्कूल एक उत्कृष्ट स्कूल है और आशा है कि यह निर्णय सभी स्कूलों के प्राधिकारियों को अपने विद्यार्थियों के लिए सही निर्णय लेने का आत्मविश्वास देगा। 

मुस्लिम छात्रा, जिसका नाम कानूनी कारणों से नहीं बताया जा सकता, ने तर्क दिया था कि स्कूल के प्रतिबंध ने उसके विश्वास को प्रभावित किया है। उसने कहा कि वह केस हार गई परंतु उसे लगा कि उसने सही काम किया है पर अब वह अपनी पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित करना चाहती है।

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