Edited By Niyati Bhandari,Updated: 25 Dec, 2025 09:03 AM

Madan Mohan Malaviya Jayanti 2025: असाधारण व्यक्तित्व और निष्कलंक चरित्र के कारण ‘महामना’ की उपाधि से विभूषित हुए मदन मोहन मालवीय का जन्म 25 दिसम्बर, 1861 को प्रयागराज में पंडित ब्रजनाथ एवं मूना देवी के यहां हुआ। सत्य, दया और न्याय पर आधारित सनातन...
Madan Mohan Malaviya Jayanti 2025: असाधारण व्यक्तित्व और निष्कलंक चरित्र के कारण ‘महामना’ की उपाधि से विभूषित हुए मदन मोहन मालवीय का जन्म 25 दिसम्बर, 1861 को प्रयागराज में पंडित ब्रजनाथ एवं मूना देवी के यहां हुआ। सत्य, दया और न्याय पर आधारित सनातन धर्म उनके जीवन का मूल आधार था। उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन भारत माता की सेवा को समर्पित कर दिया। वह काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के प्रणेता थे, जो आज भी भारतीय शिक्षा, संस्कृति व राष्ट्रनिर्माण का एक महान केंद्र है।
देश की स्वतंत्रता के लिए मालवीय जी ने अपनी ओजस्वी वाणी, प्रखर विचारों और सशक्त लेखनी के माध्यम से जनमानस का आत्मबल बढ़ाया। उनकी जीवन दृष्टि के दो प्रमुख आधार थे- ईश्वर भक्ति और देशभक्ति।
वह सच्चे अर्थों में तपस्वी थे। व्यवहार में छल-कपट से दूर रहना उनका मानसिक तप था, मधुर और सत्य वचन बोलना उनका वाचिक तप था तथा समाज और राष्ट्र के लिए कष्ट सहना उनका शारीरिक तप था।
महात्मा गांधी उन्हें बड़े भाई के समान सम्मान देते थे और गांधी जी ने ही उन्हें ‘महामना’ की उपाधि प्रदान की थी। मालवीय जी ने अंग्रेजी साम्राज्य के विरुद्ध असहयोग आंदोलन और सविनय अवज्ञा आंदोलन में सक्रिय भागीदारी निभाई, जिसके कारण उन्हें कई बार गिरफ्तार भी किया गया।
उन्होंने संपूर्ण भारत का भ्रमण कर राष्ट्रीय चेतना जगाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। ‘सत्यमेव जयते’ को राष्ट्रीय आदर्श वाक्य के रूप में अपनाने का आह्वान सबसे पहले मालवीय जी ने ही किया था।

चौरी-चौरा कांड के बाद जब लगभग 170 लोगों को फांसी की सजा सुनाई गई, तब मालवीय जी ने मुकद्दमे की पैरवी कर 151 लोगों को मृत्युदंड से बचाया। उनकी न्यायप्रियता और योग्यता को अंग्रेजी शासन भी स्वीकार करता था।
वह गंगा की अविरलता और पवित्रता के रक्षक थे। 1913 में हरिद्वार में गंगा पर बांध बनाने की ब्रिटिश योजना का उन्होंने विरोध किया, जिसके परिणामस्वरूप सरकार को झुकना पड़ा। उनके द्वारा स्थापित ‘श्री गंगा सभा’ आज भी कार्यरत है।
उन्होंने मंदिरों से जातिगत भेदभाव समाप्त करने, गो-रक्षा, तीर्थों के जीर्णोद्धार और गोशालाओं की स्थापना में महत्वपूर्ण योगदान दिया। वह सनातन धर्म को सत्य और अहिंसा से अविभाज्य रूप से जोड़ते थे।
वह नारी शिक्षा को समाज की उन्नति का आधार मानते थे। 1906 में प्रयागराज कुम्भ के अवसर पर उन्होंने सनातन धर्म का विराट अधिवेशन आयोजित कर ‘सनातन धर्म-संग्रह’ नामक ग्रंथ तैयार कराया।
वर्ष 2014 में महामना पंडित मदन मोहन मालवीय जी को मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया गया। राष्ट्र सदा उनके जीवन, आदर्शों और मातृभूमि के प्रति किए गए महान कार्यों से प्रेरणा लेता रहेगा।
