Edited By Niyati Bhandari,Updated: 22 Jan, 2019 02:00 PM
भगवान कृष्ण ने महाभारत में अर्जुन के सारथी बनकर उसकी रक्षा की थी। उन्होंने वह सारे कर्म निभाए जो एक सारथी को निभाने चाहिए।
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भगवान कृष्ण ने महाभारत में अर्जुन के सारथी बनकर उसकी रक्षा की थी। उन्होंने वह सारे कर्म निभाए जो एक सारथी को निभाने चाहिए। एक सारथी की तरह वह सबसे पहले पांडुपुत्र अर्जुन को रथ में सम्मान के साथ चढ़ाते, फिर खुद चढ़कर अर्जुन के आदेश का इंतजार करते। हालांकि अर्जुन उन्हीं के आशीर्वाद एवं मार्गदर्शन के अनुसार चलते थे।
युद्ध के अंत में भी वह पहले अर्जुन को उतारते हैं और फिर स्वयं उतरते हैं। भगवान कृष्ण अर्जुन से युद्ध से पहले बोले थे, ‘‘हे अर्जुन! युद्ध में विजय चाहते हो तो सबसे पहले भगवती दुर्गा का आशीर्वाद लो। भगवती दुर्गा का आशीष लेने के बाद ही युद्ध प्रारंभ करना चाहिए।’’
सारथी के रूप में भगवान कृष्ण ने अर्जुन को एक और सलाह दी थी, ‘‘हे धनुर्धारी अर्जुन! मेरे प्रिय हनुमान का आह्वान करो। वह महावीर हैं, अजय हैं और धर्म के प्रतीक हैं। उन्हें अपने रथ की ध्वजा पर विराजित करने के लिए उनका आह्वान करो।’’
अर्जुन ने यही किया था। सारथी की भूमिका में ही भगवान कृष्ण ने कुरुक्षेत्र के मैदान में दोनों सेनाओं ने बीच परम रहस्यमयी गीता का गान किया था। द्वापर युग में जैसे भगवान कृष्ण ने सारथी बनकर हर कदम पर अर्जुन का साथ दिया था। आप भी ठीक वैसा ही साथ चाहते हैं तो इस कृष्ण स्तुति के पाठ से वैसा भी लाभ प्राप्त कर सकते हैं-
श्री कृष्ण चन्द्र कृपालु भजमन, नन्द नन्दन सुन्दरम्।
अशरण शरण भव भय हरण, आनन्द घन राधा वरम्॥
सिर मोर मुकुट विचित्र मणिमय, मकर कुण्डल धारिणम्।
मुख चन्द्र द्विति नख चन्द्र द्विति, पुष्पित निकुंजविहारिणम्॥
मुस्कान मुनि मन मोहिनी, चितवन चपल वपु नटवरम्।
वन माल ललित कपोल मृदु, अधरन मधुर मुरली धरम्॥
वृषुभान नंदिनी वामदिशि, शोभित सुभग सिहासनम्।
ललितादि सखी जिन सेवहि, करि चवर छत्र उपासनम्॥
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