महर्षि वेदव्यास जयंती आज: जानें, भगवान विष्णु के अवतार से जुड़ी खास बातें

Edited By Punjab Kesari,Updated: 09 Jul, 2017 07:38 AM

maharishi vedavya jayanti today

महाभारत, अठारह पुराणों, ब्रह्मसूत्र, मीमांसा जैसे अद्वितीय वैदिक साहित्य दर्शन के रचयिता, ऋषि पराशर के पुत्र महर्षि वेद व्यास जी का जन्म आषाढ़ मास की पूर्णिमा को हुआ।

महाभारत, अठारह पुराणों, ब्रह्मसूत्र, मीमांसा जैसे अद्वितीय वैदिक साहित्य दर्शन के रचयिता, ऋषि पराशर के पुत्र महर्षि वेद व्यास जी का जन्म आषाढ़ मास की पूर्णिमा को हुआ। द्वीप में जन्म लेने और रंग के श्याम होने से व्यास जी महाराज ‘कृष्ण द्वैपायन’ कहलाए।


व्यासाय विष्णुरूपाय व्यासरूपाय विष्णवे।
नमो वै ब्रह्मनिधये वसिष्ठाय नमो नम:।।


अर्थात ‘वेद व्यास साक्षात विष्णु जी के रूप हैं तथा भगवान विष्णु ही वेद व्यास हैं, उन ब्रह्म ऋषि वसिष्ठ जी के कुल में उत्पन्न पराशर पुत्र वेद व्यास जी को नमन है।’


प्रारंभ में वेद एक ही था, व्यास जी द्वारा वेद का विभाग कर उनका व्यास किया। इसी से उनका नामकरण वेद व्यास हुआ। महर्षि वेद व्यास जी ने वेदों के ज्ञान को लोक व्यवहार में समझाने के लिए पुराणों की रचना की।


व्यास जी की गणना भगवान श्री हरि विष्णु जी के चौबीस अवतारों में की जाती है। वेद व्यास जी ने वेदों के सार रूप में महाभारत जैसे महान, अद्वितीय ग्रंथ की रचना की, जिसे पंचम वेद भी कहा जाता है। श्रीमद् भागवत जैसे भक्ति प्रधान ग्रंथ की रचना कर ज्ञान और वैराग्य को नवजीवन प्रदान किया। समस्त लोकों का कल्याण करने वाली हरिमुख की वाणी श्रीमद् भगवद् गीता को महाभारत जैसे महान ग्रंथ के माध्यम से संपूर्ण प्राणी मात्र को सुलभ कराया। 


भगवान वेद व्यास समस्त लोक, भूत-भविष्य वर्तमान के रहस्य, कर्म उपासना-ज्ञान रूप वेद, अभ्यास युक्त योग, धर्म, अर्थ और काम तथा समस्त शास्त्र तथा लोक व्यवहार को पूर्ण रूप से जानते हैं। जब उनके मन में लोक कल्याण की भावना से समस्त ग्रंथों का सार रूपी ‘महाभारत’ ग्रंथ रचने का विचार आया, तब स्वयं ब्रह्मा जी उनके पास आए तो महर्षि वेद व्यास जी ने ब्रह्मा जी से अपने इस श्रेष्ठ काव्य की रचना को लिखने के लिए मार्गदर्शन मांगा। तब ब्रह्मा जी के आदेशानुसार वेद व्यास जी ने अपने इस श्रेष्ठ काव्य के निर्माण के लिए गणेश जी का स्मरण किया। 


वेद व्यास जी के स्मरण करते ही विघ्नहर्ता गणेश जी ने उपस्थित होकर कहा कि अगर मेरी कलम एक क्षण के लिए भी न रुके तो मैं लिखने का कार्य कर सकता हूं। इस पर भगवान वेद व्यास जी ने कुछ ऐसे श्लोक बना दिए जिनका बिना विचार किए अर्थ नहीं खुल सकता था। जब सर्वज्ञ गणेश एक क्षण तक उन श्लोकों के अर्थ का विचार करते थे उतने समय में ही महर्षि व्यास दूसरे बहुत से श्लोकों की रचना कर डालते। 


महाभारत में वैदिक, लौकिक सभी विषय तथा श्रुतियों का तात्पर्य है। इसमें वेदांग सहित उपनिषद्, वेदों का क्रिया विस्तार, इतिहास, पुराण, भूत, भविष्य, वर्तमान के वृतांत, आश्रम और वर्णों का धर्म, पुराणों का सार, युगों का वर्णन, समस्त वेद ज्ञान, अध्यात्म, न्याय, चिकित्सा और लोक व्यवहार में धर्म का समुचित ज्ञान प्राप्त होता है। जो श्रद्धापूर्वक महाभारत का अध्ययन करता है उसके समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। इसमें सनातन पुरुष भगवान श्री कृष्ण का स्थान-स्थान पर कीर्तन है। अठारह पुराण, समस्त धर्म शास्त्र तथा व्याकरण, ज्योतिष, छंद, शास्त्र, शिक्षा, कल्प एवं निरुक्त इन छ: अंगों सहित चारों वेदों तथा वेदांग  के अध्ययन से जो ज्ञान प्राप्त होता है वह समस्त ज्ञान अकेले महाभारत के अध्ययन से प्राप्त होता है। महर्षि वेद व्यास जी का महाभारत की रचना का मूल उद्देश्य यही था कि कोई भी प्राणी वेदों के ज्ञान से वंचित न रह जाए चाहे वह किसी भी जाति, वर्ण अथवा संप्रदाय से संबंधित क्यों न हो। 


वेद विद्या के महासागर वेद व्यास जी ने स्वयं यह घोषणा की कि समस्त ग्रंथों  के ज्ञान के समतुल्य है महाभारत। जो महाभारत इतिहास को सदा भक्तिपूर्वक सुनता है उसे श्री, र्कीत तथा विद्या की प्राप्ति होती है। धर्म की कामना से महर्षि वेद व्यास जी ने सर्व प्रथम साठ लाख श्लोकों की महाभारत संहिता की रचना की। उसमें से तीस लाख श्लोकों की संहिता का देवलोक में प्रचार हुआ। पंद्रह लाख श्लोकों की संहिता पितृ लोक में प्रचलित हुई। चौदह लाख श्लोकों की तीसरी संहिता का पक्ष लोक में आदर हुआ तथा एक लाख श्लोक की चौथी संहिता मनुष्य लोक में प्रतिष्ठित हुई।


भगवान वेद व्यास जी अष्ट चिरंजीवियों में शामिल हैं। आदि शंकराचार्य जी को वेद व्यास जी के दर्शन हुए। वेद, पुराण के वक्ता जिस आसन पर सुशोभित होते हैं उन्हें व्यास गद्दी कहा जाता है और वेद व्यास जी का जन्म दिवस गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। गुरु ही हमारे भीतर अज्ञान रूपी अंधकार को नष्ट कर ज्ञान रूपी प्रकाश करते हैं। भगवान श्री कृष्ण स्वयं श्री गीता जी में कहते हैं, ‘‘मुनीनामप्यहं व्यास:।’’ 


अर्थात मुनियों में वेद व्यास मैं हूं। ‘नारायणं नमस्कृत्य नरं चैव नरोत्तम:। देवी सरस्वती व्यासं ततो जयमुदीरयेत।।’’


आदि पुरुष नारायण, नरों में उत्तम नर ऋषि, विद्या की देवी सरस्वती तथा महामुनि वेद व्यास जी को नमस्कार करके ही हमें महाभारत इत्यादि ग्रंथों का अध्ययन करना चाहिए।


‘कृष्णर्पणमस्तु।’    

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