महाशिवरात्रि: रात में क्यों किया जाता है भगवान शिव का पूजन

Edited By Updated: 13 Feb, 2018 10:22 AM

mahashivaratri why is worshiped lord shiva in the night

ब्रह्मा जी जब सृष्टि का निर्माण करने के बाद घूमते हुए भगवान विष्णु के पास पहुंचे तो देखा भगवान विष्णु आराम कर रहे हैं। ब्रह्मा जी को यह अपमान लगा। संसार का स्वामी कौन, इस बात पर दोनों में ठन गई। स्थिति युद्ध जैसी हो गई। जब दोनों देवता आमने-सामने हुए...

ब्रह्मा जी जब सृष्टि का निर्माण करने के बाद घूमते हुए भगवान विष्णु के पास पहुंचे तो देखा भगवान विष्णु आराम कर रहे हैं। ब्रह्मा जी को यह अपमान लगा। संसार का स्वामी कौन, इस बात पर दोनों में ठन गई। स्थिति युद्ध जैसी हो गई। जब दोनों देवता आमने-सामने हुए तो इसकी जानकारी देवाधिदेव भगवान शंकर को दी। भगवान शिव युद्ध रोकने के लिए दोनों के बीच प्रकाशमान लिंग के रूप में प्रकट हो गए। विष्णु एवं ब्रह्मा जी ने उस शिवलिंग की पूजा की। यह विराट लिंग ब्रह्मा जी की विनती पर बारह ज्योतिर्लिंगों में विभक्त हुआ। फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को शिवलिंग का पृथ्वी पर प्राकट्य दिवस महाशिवरात्रि कहलाया। ईशान संहिता के अनुसार इसी दिन ज्योतिर्लिंग का प्रादुर्भाव हुआ था जिससे शक्तिस्वरूपा पार्वती ने मानवीय सृष्टि का मार्ग प्रशस्त किया था।


जहां सभी देवी-देवताओं का पूजन दिन के समय होता है, तब भगवान शंकर को रात्रि ही क्यों पसंद है। वह भी फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी तिथि? जब भगवान शिव ने तांडव नृत्य किया तो उनकी लम्बी-लम्बी जटाएं हवा में लहराने लगीं, गंगा मैया की चंचल लहरें भीषण गर्जना करने लगीं। महादेव के तीसरे नेत्र के खुलने के साथ ही अग्रि वर्षा होने लगी एवं नागराज फुंकारने लगे। भगवान शिव के इस रूप को देखकर धरती कांप उठी। भगवान भोलेनाथ संहारक शक्ति एवं तमोगुण के अधिष्ठाता माने जाते हैं। इसीलिए त्रयोदशी रात्रि से स्नेह होना स्वाभाविक है। 


महाशिवरात्रि संहारकाल की प्रतिनिधि है। दिन के समय हमारा मन सृष्टि की ओर, भेदभाव की ओर, एक से अनेक की तरफ एवं कर्मकांड की तरफ भागता है और रात्रि को पुन: लौटता है अंधकार की ओर, तप की ओर भगवान की ओर। इसीलिए कहा जाता है कि दिवस सृष्टि का और रात्रि प्रलय की द्योतक है। इस दृष्टि से भगवान शिव का रात्रि प्रिय होना सहज है। यही कारण है कि भगवान भोले नाथ शिव की आराधना इस रात्रि में ही की जाती है।

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