Edited By Niyati Bhandari,Updated: 08 Mar, 2024 06:58 AM
भगवान शिव के निराकार से साकार रूप में प्रकट होने का पर्व है महाशिवरात्रि। फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाया जाने वाला भगवान शिव का अत्यंत प्रिय दिवस महाशिवरात्रि पर्व भगवान भोलेनाथ जी के
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Mahashivratri 2024- भगवान शिव के निराकार से साकार रूप में प्रकट होने का पर्व है महाशिवरात्रि। फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाया जाने वाला भगवान शिव का अत्यंत प्रिय दिवस महाशिवरात्रि पर्व भगवान भोलेनाथ जी के भक्तों के लिए सौभाग्यशाली एवं महान पुण्य अर्जित करने वाला है। शिवरात्रि का अर्थ ही है कल्याण की रात्रि। पूरे दिन और रात्रि के चारों प्रहर भगवान भोलेनाथ जी के शिवलिंग का दुग्ध, गंगा जल, बिल्व पत्र से मंत्रोच्चारण के द्वारा रुद्राभिषेक किया जाता है।
ओम् नम: शम्भवाय च मयोभवाय च नम:। शंकराय च मयस्कराय च नम: शिवाय च शिवतराय च॥
शिवलिंग का अभिषेक भगवान शिव को शीघ्र प्रसन्न करके साधक को उनका कृपापात्र बना देता है। औषध जैसे रोगों का स्वभावत: शत्रु है, उसी प्रकार भगवान शिव सांसारिक दोषों से छुड़ाने वाले हैं। भगवान शिव आदि मध्य और अंत से रहित हैं। भगवान भोलेनाथ स्वभाव से ही निर्मल हैं तथा सर्वज्ञ एवं परिपूर्ण हैं। ओम् नम: शिवाय मंत्र उन्हीं शिव का स्वरूप है। लंका प्रवेश के लिए समुद्र पर सेतु निर्माण के समय भगवान श्री राम ने रामेश्वरम में महादेव जी को प्रसन्न करने के लिए स्वयं शिवलिंग की स्थापना की और भगवान शिव का आह्वान किया था, जोकि शम्भु स्तुति के नाम से ब्रह्म पुराण में वर्णित है।
नमामि शम्भुं पुरूषं पुराणं। नमामि सर्वज्ञमपार भावं॥
मैं पुराणपुरुष शम्भु को नमस्कार करता हूं, जिनकी असीम सत्ता का कहीं पार या अन्त नहीं है, उन सर्वज्ञ शिव को मैं प्रणाम करता हूं। अविनाशी प्रभु रुद्र को नमस्कार करता हूं। सबका संहार करने वाले शिव को मस्तक झुकाकर प्रणाम करता हूं।
समस्त चराचर विश्व के स्वामी विश्वेश्वर, नरकरूपी संसार सागर से उद्धार करने वाले, गौरी के अत्यन्त प्रिय, संसाररूपी रोग एवं भय के विनाशक, दुर्गम भवसागर से पार कराने वाले, काल के लिए भी महाकाल स्वरूप, मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम को अत्यन्त प्रिय, समस्त देवताओं से सुपूजित, दरिद्रता रूपी दु:ख के विनाशक भगवान शिव को मेरा नमस्कार है। समुद्र मंथन के समय जब कालकूट विष प्रकट हुआ, विश्व को विनाश से बचाने के लिए तब भगवान भोलेनाथ ने इसे अपने कंठ में धारण किया, जिससे आपका कंठ नीला पड़ गया और आप नीलकंठ कहलाए। भगवान श्री कृष्ण महाभारत में युधिष्ठिर से कहते हैं कि जिनका अन्त:करण पवित्र है, वे महापुण्यवान भक्त महादेव जी की शरण लेते हैं। ऋषि मृकण्डु जी के अल्पायु पुत्र मार्कण्डेय जी ने दीर्घायु वरदान की प्राप्ति हेतु शिवजी की आराधना के लिए महामृत्युंजय मंत्र की रचना की और शिव मंदिर में बैठ कर इसका अखंड जाप किया और अमरत्व प्राप्त किया।
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥
भगवान शिव भक्तों के कल्याण हेतु तथा उनके अनुरोध पर भारत वर्ष के विभिन्न तीर्थों में ज्योतिर्लिंगों के रूप में स्थायी रूप से निवास करते हैं। इन ज्योतिर्लिंगों के स्मरण मात्र से ही मनुष्य पाप रहित होकर आशुतोष भगवान भोलेनाथ जी का सान्निध्य प्राप्त कर लेता है। तुलसीदास जी भगवान शिव शंकर जी की स्तुति में कहते हैं-
भवानीशंकरौ वन्दे श्रद्धाविश्वासरूपिणौ। याभ्यां विना न पश्यन्ति सिद्धा: स्वान्त:स्थमीश्वरम्॥
श्रद्धा और विश्वास स्वरूप श्री पार्वती जी और श्री शंकर जी की मैं वंदना करता हूं, जिनके बिना सिद्धजन अपने अन्त:करण में स्थित ईश्वर को नहीं देख सकते।
पार्वतीनाथ भोलेनाथ जी, जिनके मस्तक पर गंगा जी, ललाट पर द्वितीया का चन्द्रमा, कंठ में हलाहल विष और वक्ष:स्थल पर सर्पराज शेषजी सुशोभित हैं, वे भस्म से विभूषित, देवताओं में श्रेष्ठ, सर्वेश्वर, संहारकर्ता, सर्वव्यापक, कल्याण रूप, चन्द्रमा के समान शुभ्रवर्ण श्री शंकरजी सदा मेरी रक्षा करें।