Mahavir Jayanti 2021: भगवान महावीर से जानें क्या है अहिंसा, क्यों है ये जरूरी

Edited By Jyoti,Updated: 25 Apr, 2021 12:11 PM

mahavir jayanti 2021

हमारे शास्त्रों में हिंसा को हमेशा बुरा बताया गया। फिर चाहे वो शास्त्र किसी भी धर्म के क्यों न हो। तो वहीं इन शास्त्रों में अहिंसा के भी कई सूत्र मिलते हैं। वेदों आदि में इसके नाजाने कितने

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
हमारे शास्त्रों में हिंसा को हमेशा बुरा बताया गया। फिर चाहे वो शास्त्र किसी भी धर्म के क्यों न हो। तो वहीं इन शास्त्रों में अहिंसा के भी कई सूत्र मिलते हैं। वेदों आदि में इसके नाजाने कितने सूत्र पढ़ने को मिलते हैं। प्राचीन समय में ऐसे अनेकों ही संत-साधु भी हुए जिन्होंने अहिंसा पर प्रवचन आदि दिए। इन्हीं में से एक थे महावीर स्वामी। जिन्हें जैन धर्म की मान्यताओं के अनुसापर 24वें तीर्थकार माना जाता है। इन्होंने भी अहिंसा पर अपनी धारणा रखी, पर शास्त्रों के अनसुार इनकी धारणा कहीं अधिक संवेदनशील हैं। कहा जाता है भगवान महावीर ने अहिंसा को अपने जीवन में बहुत ही गहरे अर्थों में समझा और जिया। भगवान महावीर को दुनिया के पहले ऐसे व्यक्ति माना गया है,  जो अहिंसा के रास्ते पर चलकर अरिहंत हुए। इनकी अहिंसा को समझना आसान नहीं है। कहा जाता है ये अहिंसकों में इस तरह हैं जैसे पर्वतों में हिमालय और समुद्रों में प्रशांत महासागर। जिसमें किन्हीं के बारे में हम आपको आज के इस शुभ अवसर यानि महावीर जयंती के पावन दिन बताने जा रहे हैं- 

भगवान महावीर कहते हैं कि हर व्यक्ति को इस बात को अपने अंदर रखना चाहिए कि सबके मंगल के साथ ही साथ हमारा अमंगल न हो, यही धर्म है। परंतु कौन सा है वह धर्म? इस बार में महावीर जी ने कहा है कि जो न दूसरों पर, न ही स्वयं पर हिंसा होने दें, वहीं अहिंसक धर्म ही मंगल है। 

महावीर जी कहते हैं कि त्याग करने में हिंसा है, परंतु त्याग होने में नहीं। साधारण शब्दों में कहें तो 'छोड़ने' औ 'छूट जाने' में एक बहुत बड़ा अतंर होता है। इनके जीवन की बात करें तो इन्होंने अपने कभी कुछ छोड़ा नहीं, बल्कि सब उनसे छूटता चला गया। यहां तक कि इन्होंने अन्न जल को भी छोड़ा नहीं, वे अपने ध्यान आदि में इतने मग्न व आनंदित रहते थे कि उन्हें किसी और चीज़ का भी ख्याल ही नहीं रहता था। इनसे जुड़ी एक प्रचलित कथा के अनुसार एक बार महावीर भगवान जंगल से गुजर रहे थे कि उनके तन का वस्त्र झाड़ियों में उलझ गया और शरीर से सरक कर छूट गया। जिस पर उनके शरीर न भी उन्हें इस बात का इजाजत दे दी कि अब आप मुझे बगैर वस्त्रों के भी देख सकते हैं। 

भगवान महावीर जी के अनुसार अहिंसा हिंसा का प्रतिलोम बिल्कुल नहीं है। इससे जुड़ी एक कथा के अनुसार एक समय वर्धमान उज्जयिनी नगरी के अतिमुक्तक नामक शमशान में ध्यान में विराजमान थे। उन्हें देखकर महादेव नामक रूद्र ने अपनी उनके धैर्य और तप की परीक्षा ली। उसने रात्रि के समय ऐसे अनेक बड़े-बड़े वेतालों का रूप बनाकर भयंकर ध्वनि उत्पन्न किया लेकिन वह भगवान को ध्यान से नहीं भटका पाया तब अन्त में उसने भगवान का ‘महति महावीर’ यह नाम रखकर अनेक प्रकार की स्तुति की। महावीर स्वामी का सिद्धांत यह नहीं है कि कोई आपको थप्पड़ मारे तो आप दूसरा गाल उसके सामन कर दो।इस संदर्भ में महावीर स्वामी की अहिंसा के जानकार कहते हैं कि अगर कोई व्यक्ति आपको थप्पड़ मार रहा है तो निश्‍चित ही वह आपसे किसी न किसी रूप से परेशान होता है। मतलब आपने प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष हिंसा की तभी तो उसे थप्पड़ मारने पर मजूबर होना पड़ा।

तो ये भगवान महावीर द्वारा बताए गए अहिंसा के कुछ खास व अहम सूत्र, जिन्हें जानना आज के मनुष्य के लिए कई हद तक जरूरी है। क्योंकि समाज में हर जगह किसी न किसी रूप में लोग हिंसा का शिकार हो रहे हैं, जिसे रोकने के लिए कही न कहीं इन सूत्रों की जानकारी होना बेहद आवश्यक है। 
 

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