श्रीराम ने किया आजीवन मर्यादाओं का पालन, इसलिए कहलाए मर्यादा पुरुषोत्तम

Edited By Punjab Kesari,Updated: 24 Mar, 2018 12:19 PM

maryada purushottam ram followed decorum of life for lifetime

रामनवमी का त्यौहार प्रत्येक वर्ष चैत्र माह की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि की मनाया जाता है। इस दिन को श्रीराम के जन्‍मदिन की स्‍मृति में मनाया जाता है। श्रीराम सदाचार के प्रतीक हैं, इन्हें "मर्यादा पुरुषोतम" कहा जाता है। शास्त्रों के अनुसार त्रेता युग...

रामनवमी का त्यौहार प्रत्येक वर्ष चैत्र माह की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि की मनाया जाता है। इस दिन को श्रीराम के जन्‍मदिन की स्‍मृति में मनाया जाता है। श्रीराम सदाचार के प्रतीक हैं, इन्हें "मर्यादा पुरुषोतम" कहा जाता है। शास्त्रों के अनुसार त्रेता युग में चैत्र शुक्ल नवमी के दिन रघुकुल शिरोमणि महाराज दशरथ एवं महारानी कौशल्या के यहां अखिल ब्रह्माण्ड नायक अखिलेश ने पुत्र के रूप में जन्म लिया था।


अगस्त्य संहिता के अनुसार
मंगल भवन अमंगल हारी, 
दॄवहुसु दशरथ अजिर बिहारि॥


अर्थातः अगस्त्यसंहिता के अनुसार चैत्र शुक्ल पक्ष की नवमी, के दिन पुनर्वसु नक्षत्र, कर्कलग्‍न में जब सूर्य अन्यान्य पांच ग्रहों की शुभ दृष्टि के साथ मेष राशि पर विराजमान थे, तभी साक्षात भगवान श्रीराम का माता कौशल्या के गर्भ से जन्म हुआ।


कौशल्या नंदन व अयोध्या के राजकुमार प्रभु श्री राम अपने भाई लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न से एक समान प्रेम करते थे। उन्होंने माता कैकेयी की 14 वर्ष वनवास की इच्छा को सहर्ष स्वीकार करते हुए संपूर्ण वैभव को त्याग कर चौदह वर्षों के लिए वन चले गए। उन्होंने अपने जीवन में धर्म की रक्षा करते हुए अपने हर वचन को पूर्ण किया।उन्होंने ‘रघुकुल रीत सदा चली आई, प्राण जाय पर वचन न जाय’ का पालन किया। भगवान श्री राम को मर्यादा पुरुषोत्तम इसलिए कहा जाता है क्योंकि इन्होंने कभी भी कहीं भी जीवन में मर्यादा का उल्लंघन नहीं किया। माता-पिता और गुरु की आज्ञा का पालन करते हुए वह ‘क्यों’ शब्द कभी मुख पर नहीं लाए। वह एक आदर्श पुत्र, शिष्य, भाई, पति, पिता और राजा बने, जिनके राज्य में प्रजा सुख-समृद्धि से परिपूर्ण थी।


केवट की ओर से गंगा पार करवाने पर भगवान ने उसे भवसागर से ही पार लगा दिया। श्रीराम सद्गुणों के भंडार हैं इसीलिए लोग उनके जीवन को अपना आदर्श मानते हैं। सर्वगुण सम्पन्न भगवान श्री राम असामान्य होते हुए भी आम ही बने रहे। युवराज बनने पर उनके चेहरे पर खुशी नहीं थी और वन जाते हुए भी उनके चेहरे पर कोई उदासी नहीं थी। वह चाहते तो एक बाण से ही समस्त सागर सुखा सकते थे लेकिन उन्होंने लोक-कल्याण को सर्वश्रेष्ठ मानते हुए विनय भाव से समुद्र से मार्ग देने की विनती की। शबरी के भक्ति भाव से प्रसन्न होकर उसे ‘नवधा भक्ति’ प्रदान की। वर्तमान युग में भगवान के आदर्शों को जीवन में अपना कर मनुष्य प्रत्येक क्षेत्र में सफलता पा सकता है। उनके आदर्श विश्वभर के लिए प्रेरणास्रोत हैं। 


रामनवमी के त्यौहार का महत्व हिंदू धर्म और सभ्यता में महत्वपूर्ण रहा है। इस पर्व के साथ ही देवी दुर्गा के नवरात्रों का समापन भी जुडा़ है। इस तथ्य से हमें ज्ञात होता है कि भगवान श्रीराम जी ने भी देवी दुर्गा की पूजा की थी और उनके द्वारा कि गई शक्ति-पूजा ने उन्हें धर्म युद्ध ने उन्हें विजय प्रदान की। इस प्रकार इन दो महत्वपूर्ण त्यौहारों का एक साथ होना पर्व की महत्ता को और भी अधिक बढा़ देता है।

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