Edited By Jyoti,Updated: 03 Sep, 2020 06:52 PM
भगवान महावीर ने राजा बिम्बिसार के कर्मों का अवलोकन करने के बाद उनसे कहा, ‘‘राजन, तुम्हारे पास भले ही राज्य और असीमित सम्पत्ति है
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भगवान महावीर ने राजा बिम्बिसार के कर्मों का अवलोकन करने के बाद उनसे कहा, ‘‘राजन, तुम्हारे पास भले ही राज्य और असीमित सम्पत्ति है परन्तु अपने कर्मों के कारण नरक तो जाना ही पड़ेगा।’’
भगवान के ये शब्द सुनते ही राजा बिम्बिसार बेचैन हो उठे। उन्हें रात भर नींद नहीं आई।
सवेरे वे भगवान महावीर के चरणों में जा पहुंचे। उनको प्रणाम कर विनीत भाव से बोले, ‘‘प्रभो! समस्त साम्राज्य और कोष आपके चरणों में समॢपत करता हूं। मुझे नरक जाने की संभावना से मुक्त होने का उपाय बताएं।’’
महावीर समझ गए कि बिम्बिसार साम्राज्य और सम्पत्ति के अहंकार से ग्रस्त है। उन्होंने कहा, ‘‘तुम अपने राज्य के ‘पुण्य’ नामक श्रावक के पास जाओ। उससे किसी तरह सामयिक फल प्राप्त कर लो। सामयिक ही तुम्हें नरक से बचा सकता है।’’
राजा भागे-भागे श्रावक की शरण में पहुंचे और कहा, ‘‘महात्मन्, मुझे सामयिक फल चाहिए। उसके बदले सब कुछ देने को तैयार हूं।’’
श्रावक ने कहा, ‘‘राजन, ‘सामयिक’ समता को कहते हैं। धन और सम्पत्ति का अहंकार रहते समता कैसे प्राप्त हो सकती है? सत्ता व सम्पत्ति के अहंकार में किए गए गलत कर्म ही तो नरक का कारण बनते हैं।’’
श्रावक के शब्द सुनते ही राजा बिम्बिसार की आंखें खुल गईं। उन्होंने राजपाट त्यागकर अपना जीवन सेवा और साधना में लगाने का संकल्प ले लिया।