Edited By Jyoti,Updated: 02 Jun, 2021 05:06 PM
धार्मिक शास्त्रों में बताया गया है कि हर एक व्यक्ति के जीवन में उसके गुरु की सबसे अधिक अहमियत होती है। क्योंकि व्यक्ति अपने जीवन में जो भी मुकाम हासिल करता है
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धार्मिक शास्त्रों में बताया गया है कि हर एक व्यक्ति के जीवन में उसके गुरु की सबसे अधिक अहमियत होती है। क्योंकि व्यक्ति अपने जीवन में जो भी मुकाम हासिल करता है उसके पीछे सबसे बड़ा हाथ गुरु का होता है। रामायण के अनुसार श्री राम के गुरु वशिष्ठ जी थे तो महाभारत ग्रंथ में किए वर्णन के मुताबिक पांडवों के गुरु थे ऋषि द्रोण। यहां ये बताने का उद्देश्य ये है कि उस समय में साक्षात भगवान को भी अपने मार्गदर्शन के लिए गुरुओं की आवश्यकता थी। तो जाहिर सी बात है कि कलियुग में तो इसके अधिक आवश्यकता है। आगे दिए प्रसंग में गुरु दक्षिण का महत्व बताया गया है।
‘सर मुझे पहचाना...?’
स्कूल के प्रधानाचार्य ने पोते को स्कूल में दाखिला करवाने आए रिटायर अध्यापक गोविंद राम को पहचानते ही कहा।
‘‘अरे विक्रांत...तुम...यानी आप यहां के प्रिंसीपल...?’’
पहचानते ही गोविंद ने विक्रांत के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा। काफी देर बातों का सिलसिला चलता रहा तो विक्रांत बोला, ‘‘सर आपको याद है...मेरे बुरे दिनों में आपने एक बार न केवल मेरी स्कूल की फीस दी थी बल्कि कितने वर्ष ट्यूशन भी मुफ्त में पढ़ाते रहे थे। तभी तो आज मैं इस काबिल बन कर आपके सामने हूं...।
मुझे यह जानकर खुशी हुई कि आप इसी शहर में रह रहे हैं। थोड़ा अफसोस भी हुआ कि आज कल आप काफी तंगी से गुजर रहे हैं। आप निश्चिंत रहें...आपके पोते का दाखिला हो गया और एक बात कि जब तक मैं यहां हूं इसकी फीस और किताबों का खर्च मुझ पर छोड़ दीजिए... प्लीज...।’’
गोविंद राम की आखेंं छलक आईं कि आज भी ऐसे शिष्य हैं जो गुरुदक्षिणा देना नहीं भूलते, बस अवसर मिलने की देर भर है। —हरिन्द्र सिंह गोगना