Edited By Prachi Sharma,Updated: 19 Mar, 2024 07:53 AM
पुराने समय की बात है। एक ब्रह्मचारी ने कई विद्याओं का अध्ययन पूर्ण कर लिया था। अब वह आत्म विद्या का ज्ञान प्राप्त करना चाहता था। अपनी इस इच्छा की
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Motivational Story: पुराने समय की बात है। एक ब्रह्मचारी ने कई विद्याओं का अध्ययन पूर्ण कर लिया था। अब वह आत्म विद्या का ज्ञान प्राप्त करना चाहता था। अपनी इस इच्छा की पूर्ति के लिए वह एक प्रसिद्ध ऋषि के आश्रम में पहुंचा। उसे वहां कई तरह के सेवा कार्य करने को दिए गए। ब्रह्मचारी को वहां सेवा करते-करते कई दिन बीत गए, किन्तु उसका अध्ययन आरंभ नहीं हुआ। इससे उसके मन में कई तरह की शंकाएं पैदा होने लगीं।
कहां तो वह सर्वोच्च कही जाने वाली आत्मविद्या प्राप्त करने आया था और यहां सांसारिक कार्यों के झमेले में पड़ गया था। एक दिन जब वह घड़ा लेकर पानी भरने तालाब पर पहुंचा, तो पूरी तरह से गुस्से और संताप में जल रहा था।
उसने जोर से घड़ा रेत पर पटका और वहीं बैठ गया। तभी घड़े से आवाज आई, ‘‘तुम इतना क्रोध और उतावलापन क्यों दिखाते हो ? गुरु ने यदि तु हें शरण दी है तो निश्चित ही देर-सवेर तु हारी मनोकामना भी पूर्ण होगी।’’
यह सुनकर ब्रह्मचारी बोला, ‘‘मैं यहां दुनियादारी के काम करने नहीं, आत्मविद्या प्राप्त करने आया हूं मगर यहां तो मेरा समय दूसरों की सेवा में ही गुजर जाता है।’’
इस पर घड़े ने कहा, ‘‘सुनो मित्र, मैं पहले सिर्फ एक मिट्टी का डला था। पहले कु हार ने मुझे लेकर कूटा, गलाया और कुछ दिनों तक अपने पैरों तले भी रौदा। इसके बाद उसने मुझे आकार दिया और फिर भट्टी में तपाया। तब कहीं जाकर इस सबकी बदौलत आज मैं तु हारे सामने घड़े के रूप में मौजूद हूं। यदि तुम भी आगे बढऩा चाहते हो, तो परेशानियों से घबराना नहीं। बस अपने कर्म में लगे रहना।’’
यह सुनकर बह्मचारी का गुस्सा व संताप दूर हो गया। उसने संकल्प लिया कि वह गुरु के आदेश पर पूरे समर्पण भाव से चलेगा। उसके आचरण में आए इस बदलाव को ऋषि जी ने भी पहचान लिया।
चूंकि आत्मविद्या बुद्धि का विषय न होकर अनुभूति का विषय है, लिहाजा शिष्य द्वारा सच्चे समर्पण का पाठ सीखने के बाद ही उसकी शिक्षा आरंभ हुई और आगे चल कर वह एक प्रसिद्ध आत्म तत्ववेत्ता ऋषि बना।
शिक्षा : विपत्तियों से न घबराएं। पूर्ण समर्पण से कार्य करें। आपको सफलता अवश्य मिलेगी।