Edited By Jyoti,Updated: 17 Sep, 2020 01:00 PM
महामहोपाध्याय पं. विद्याधर गौड़ परम धार्मिक तथा शिक्षा-सेवी थे। गरीब छात्रों को नि:शुल्क पढ़ाते तथा कई बार उनका शुल्क भी
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महामहोपाध्याय पं. विद्याधर गौड़ परम धार्मिक तथा शिक्षा-सेवी थे। गरीब छात्रों को नि:शुल्क पढ़ाते तथा कई बार उनका शुल्क भी अपने पास से विद्यालय में जमा करा देते थे। अपना शेष समय भगवान की पूजा-उपासना में व्यतीत करते। उनके पिता ने किसी को ऋण के रूप में कुछ हजार रुपए दिए थे। उसका मकान उनके यहां गिरवी रखा था।
पंडित जी का अंतिम समय आया तो उन्होंने उस कर्जदार को चुपचाप बुलाया और मकान के कागजात देते हुए बोले, ‘‘भइया मैं भगवान के यहां जा रहा हूं, मेरे बाद मेरे उत्तराधिकारी तुम्हारे मकान को शायद न लौटाएं, इसलिए मैं अपने सामने ऋण चुकता कर मकान लौटा रहा हूं।’’
पंडित जी की दया-भावना देखकर वह चकित हो उठा।
पंडित जी प्राय: कहा करते थे कि दया और करुणा भावना ही धर्म का मूल तत्व है। अपने अंतिम समय में उन्होंने इसी भावना का परिचय दिया। —शिव कुमार गोयल