Raksha Bandhan: कैसी शुरू हुई भाइयों को राखी बांधने की परंपरा, पढ़ें रक्षाबंधन की पौराणिक एवं चर्चित कथाएं

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 26 Aug, 2023 10:26 AM

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हम उनसे लड़ लें, चाहे कितना ही झगड़ लें लेकिन अंत में जितना प्यार हम उनसे करते हैं उसके सामने दुनिया की कोई भी मूल्यवान वस्तु बेकार है... यही कहता है हर भाई-बहन का दिल एक-दूसरे के लिए।

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Raksha Bandhan 2023: हम उनसे लड़ लें, चाहे कितना ही झगड़ लें लेकिन अंत में जितना प्यार हम उनसे करते हैं उसके सामने दुनिया की कोई भी मूल्यवान वस्तु बेकार है... यही कहता है हर भाई-बहन का दिल एक-दूसरे के लिए। बचपन से बड़े होने के बाद भी भाई-बहन का प्यार कम नहीं होता। रक्षाबंधन का त्यौहार भाई-बहन के इसी अटूट प्यार की निशानी है जिसे वर्षों से मनाया जा रहा है। भाई-बहन के विश्वास को बनाए रखने वाला यह त्यौहार श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है लेकिन इसे क्यों मनाते हैं इसके पीछे कई कहानियां प्रचलित हैं। हम यहां इनमें से ही कुछ चर्चित कथाएं दे रहे हैं। ये कथाएं भाई-बहन के प्रेम से लेकर राखी को रक्षा सूत्र के प्रतीक के रूप मे दर्शाने वाली हैं जिनसे इस अनोखे त्यौहार के महत्व के बारे में पता चलता है। 

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इंद्र और शचि की कथा
माना जाता है कि सबसे पहले राखी या रक्षा सूत्र देवी शचि ने अपने पति देवराज इंद्र को बांधा था। पौराणिक कथा के अनुसार जब वृत्तासुर नामक असुर से इंद्र युद्ध करने जा रहे थे तो उनकी रक्षा की कामना से देवी शचि ने उनके हाथ में कलावा या मौली बांधी थी। रक्षा सूत्र के प्रभाव से देवताओं की विजय हुई। 

देवी लक्ष्मी और राजा बलि की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार असुरों के दानवीर राजा बलि ने 100 यज्ञ पूरे करने का प्रण लिया था। यदि ये पूरे हो जाते तो वह तीनों लोकों का स्वामी बन जाता। इससे घबराकर इंद्र ने भगवान विष्णु से राजा बलि को यज्ञ पूरा करने से रोकने की प्रार्थना की।
भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया और ब्राह्मण वेश धारण कर राजा बलि के यहां जाकर भिक्षा में 3 पग भूमि में स्वर्ग तथा पृथ्वी को नापते हुए तीसरे पग के बदले में राजा बलि को पाताल लोक में बस जाने के लिए कहा। बलि ने भगवान को अपने अतिथि के रूप में साथ चलने को कहा जिससे वह मना नहीं कर सके। 

जब लंबे समय तक विष्णु जी अपने धाम नहीं लौटे तो लक्ष्मी जी को चिंता होने लगी। तब नारद मुनी ने उन्हें राजा बलि को अपना भाई बनाने की सलाह दी और उनसे उपहार में विष्णु जी को मांगने को कहा। मां लक्ष्मी ने ऐसा ही किया और इस संबंध को प्रगाढ़ बनाते हुए उन्होंने राजा बलि के हाथ पर राखी या रक्षा सूत्र बांधा।

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श्री कृष्ण और द्रौपदी की कथा
महाभारत में प्रसंग आता है कि राजसूय यज्ञ के समय भगवान श्री कृष्ण ने शिशुपाल का वध किया तो उनका हाथ भी इसमें घायल हो गया। उसी क्षण द्रौपदी ने अपनी साड़ी का एक सिरा उनकी चोट पर बांध दिया। भगवान ने द्रौपदी को इसके बदले रक्षा का वचन दिया। परिणामस्वरूप जब हस्तिनापुर की सभा में दुशासन द्रौपदी का चीरहरण कर रहा था तब भगवान ने चीर बढ़ा कर द्रौपदी के मान की रक्षा की थी। 

कर्णवती-हुमायूं की कहानी
यह मध्यकालीन इतिहास की घटना है। चित्तौड़ की रानी कर्णवती ने दिल्ली के मुगल बादशाह हुमायूं को अपना भाई मानकर उनके पास राखी भेजी थी। हुमायूं ने राखी स्वीकार की और समय आने पर रानी के सम्मान की रक्षा के लिए गुजरात के बादशाह से युद्ध किया।

यम और यमुना की कथा 
मृत्यु के देवता यम और यमुना भाई-बहन थे। हालांकि, 12 वर्षों तक उन्होंने अपनी बहन से मुलाकात नहीं की थी। दुखी यमुना मदद के लिए देवी गंगा के पास गई जिन्होंने यम को उनकी बहन के बारे में याद दिलाया और उनसे जाकर मिलने के लिए कहा। यमुना बहुत खुश हुई। उसने यम का भव्य स्वागत किया और उनकी कलाई पर राखी भी बांधी। यम अपनी बहन के प्रेम से इतना प्रभावित हुए कि उन्हें अमरता प्रदान कर दी। यह भी घोषणा की कि कोई भी भाई जिसने राखी बंधवाई है और अपनी बहन की रक्षा करने का वायदा किया है, वह भी अमर हो जाएगा।

संतोषी मां के जन्म की कथा 
भगवान गणेश की बहन मनसा उन्हें राखी बांधने के लिए आती हैं, यह देख कर गणेश जी के पुत्र भी बहन होने की जिद करने लगते हैं। उनकी जिद को पूरा करने के लिए ही गणेश जी ने अपनी पत्नियों रिद्धि-सिद्धि की दिव्य ज्वालाओं से देवी संतोषी को तैयार किया। 

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रोक्साना और राजा पोरस की कहानी
एक कहानी यह भी सुनने को मिलती है कि जब सिकंदर महान ने भारत पर आक्रमण किया तो उसकी पत्नी रोक्साना ने पोरस को एक पवित्र धागा भेज कर युद्ध के मैदान में अपने पति को नुक्सान नहीं पहुंचाने के लिए कहा। उनके अनुरोध का सम्मान करते हुए पोरस ने सिकंदर से सामना होने पर उसे मारने से इंकार कर दिया। आखिरकार पोरस लड़ाई हार गया लेकिन बाद में सिकंदर ने भी उसका राज्य उसे लौटा दिया।

पन्ना की कहानी
एक बार राजस्थान की दो रियासतों में गम्भीर कलह चल रही थी। उनमें से एक रियासत पर मुगलों ने आक्रमण कर दिया। अवसर पाकर दूसरी रियासत के राजपूत मुगलों का साथ देने के लिए सेना तैयार कर रहे थे। पन्ना मुगलों के घेरे में थी। उसने दूसरी रियासत के शासक को, जो मुगलों की सहायतार्थ आ रहा था, राखी भेजी। राखी पाते ही उसने उलटे मुगलों पर आक्रमण कर दिया और मुगल पराजित हुए। इस तरह रक्षाबंधन के कच्चे धागे ने दोनों रियासतों के शासकों को पक्की मैत्री के सूत्र में बांध दिया।

अलग-अलग नाम
देश के कई क्षत्रों में रक्षाबंधन को अलग-अलग नामों तथा रूप में मनाया जाता है। जैसे उत्तरांचल में इसे श्रावणी नाम से मनाया जाता है। राजस्थान में इस दिन रामराखी और चूड़ा राखी बांधने की परम्परा है। राम राखी केवल भगवान को ही बांधी जाती है व चूड़ा राखी केवल भाभियों की चूडिय़ों में बांधी जाती है। यह रेशमी डोरी से बनाई जाती है। तमिलनाडु, केरल जैसे दक्षिणी राज्यों में इसे ‘अवनि अवितम’ के रूप में मनाया जाता है। 

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