Ramanujacharya Jayanti 2020: गुरु की व्याख्या में भी दोष निकाल देते थे

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 28 Apr, 2020 12:44 PM

ramanujacharya jayanti 2020

श्रीरामानुजाचार्य के पिता का नाम केशव भट्ट था। वह दक्षिण तेंरुकुदूर क्षेत्र में रहते थे। जब श्रीरामानुजाचार्य की अवस्था बहुत छोटी थी, तभी इनके पिता का देहावसान हो गया। इन्होंने काञ्ची में यादव प्रकाश नामक गुरु से

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श्रीरामानुजाचार्य के पिता का नाम केशव भट्ट था। वह दक्षिण तेंरुकुदूर क्षेत्र में रहते थे। जब श्रीरामानुजाचार्य की अवस्था बहुत छोटी थी, तभी इनके पिता का देहावसान हो गया। इन्होंने काञ्ची में यादव प्रकाश नामक गुरु से वेदाध्ययन किया। इनकी बुद्धि इतनी कुशाग्र थी कि ये अपने गुरु की व्याख्या में भी दोष निकाल दिया करते थे। फलत: इनके गुरु ने इन पर प्रसन्न होने के बदले ईर्ष्यालु होकर इनकी हत्या की योजना बना डाली, किन्तु भगवान की कृपा से एक शिकारी और उसकी पत्नी ने इनके प्राणों की रक्षा की।

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श्रीरामानुजाचार्य बड़े ही विद्वान, सदाचारी, धैर्यवान और उदार थे। चरित्रबल और भक्ति में तो यह अद्वितीय थे। इन्हें योगसिद्धियां भी प्राप्त थीं। यह श्रीयामुनाचार्य की शिष्य-परम्परा में थे। जब श्रीयामुनाचार्य की मृत्यु सन्निकट थी, तब उन्होंने अपने शिष्य द्वारा श्रीरामानुजाचार्य को अपने पास बुलवाया, किन्तु इनके पहुंचने के पूर्व ही श्रीयामुनाचार्य की मृत्यु हो गई।वहां पहुंचने पर इन्होंने देखा कि श्रीयामुनाचार्य की तीन उंगलियां मुड़ी हुई थीं।

श्रीरामानुजाचार्य ने समझ लिया कि श्रीयामुनाचार्य इनके माध्यम से ‘ब्रह्मसूत्र’,  ‘विष्णु सहस्रनाम’ और अलवंदारों के ‘दिव्य प्रबंधम्’ की टीका करवाना चाहते हैं। इन्होंने श्रीयामुनाचार्य के मृत शरीर को प्रणाम किया और कहा ‘‘भगवान! मैं आपकी यह अंतिम इच्छा अवश्य पूरी करूंगा।’’

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श्रीरामानुजाचार्य गृहस्थ थे, किन्तु जब इन्होंने देखा कि गृहस्थी में रह कर अपने उद्देश्य  को पूरा करना कठिन है, तब इन्होंने गृहस्थ आश्रम को त्याग दिया और श्रीरंगम् जाकर यतिराज नामक संन्यासी से संन्यास धर्म की दीक्षा ले ली। इनके गुरु श्री यादव प्रकाश को अपनी पूर्व करनी पर बड़ा पश्चाताप हुआ और वह भी संन्यास की दीक्षा लेकर श्रीरंगम् आकर श्रीरामानुजाचार्य  की सेवा में रहने लगे।

श्रीरामानुजाचार्य ने भक्ति मार्ग का प्रचार करने के लिए सम्पूर्ण भारत की यात्रा की। इन्होंने भक्ति मार्ग के समर्थन में गीता और ब्रह्मसूत्र पर भाष्य लिखा। वेदांत सूत्रों पर इनका भाष्य ‘श्री भाष्य’ के नाम से प्रसिद्ध है। इनके द्वारा चलाए गए सम्प्रदाय का नाम भी ‘श्री सम्प्रदाय’ है। इस सम्प्रदाय की आद्यप्रवर्तिका श्री महालक्ष्मी जी मानी जाती हैं।

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श्रीरामानुजाचार्य ने देश भर में भ्रमण करके लाखों नर-नारियों को भक्ति मार्ग में प्रवृत्त किया। इनके 74 शिष्य थे। इन्होंने महात्मा पिल्ललोकाचार्य को अपना उत्तराधिकारी बनाकर 120 वर्ष की अवस्था में इस संसार से प्रयाण किया। इनके सिद्धांत के अनुसार भगवान विष्णु ही पुरुषोत्तम हैं। वे ही प्रत्येक शरीर में साक्षी रूप में विद्यमान हैं। भगवान नारायण ही सत् हैं, उनकी शक्ति महालक्ष्मी चित् हैं और यह जगत उनके आनंद का विलास है। भगवान श्री लक्ष्मी नारायण इस जगत के माता-पिता हैं और सभी जीव उनकी संतान हैं।

 

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