Inspirational Context: जब होती है सच की लड़ाई झूठ से...

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 05 Aug, 2023 10:52 AM

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मेरे विचार से अगर कोई वैचारिक क्रांति आएगी तो उसमें देश की महिलाओं का बड़ा हाथ होगा। सच और झूठ की लड़ाई में एक अदृश्य हाथ गृहिणी का होता है।

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Inspirational Context: मेरे विचार से अगर कोई वैचारिक क्रांति आएगी तो उसमें देश की महिलाओं का बड़ा हाथ होगा। सच और झूठ की लड़ाई में एक अदृश्य हाथ गृहिणी का होता है। महिला हमेशा सशक्त होती है, वह अपने अधिकारों का सदुपयोग करके घर में अच्छे संस्कार दे सकती है।

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वैसे तो घर की पाठशाला में हमेशा सच्चाई, ईमानदारी व भाईचारे का संदेश दिया जाता है, पर कभी सोचा है कि अच्छे संस्कारों की पौधशाला से कभी-कभी जो पौधा बनता है, वह भ्रष्ट आचरण क्यों करता है? नियमों व कानून का उल्लंघन करने में गर्व क्यों महसूस करता है? यह अधोपतन क्यों?

छोटी-छोटी बातों से बात शुरू होती है। किसी ने दरवाजे पर दस्तक दी। आप मिलना नहीं चाहते। बच्चों को कहते हैं- कह दो घर पर नहीं हैं। हो गई झूठ की पाठशाला की शुरुआत। पड़ोसी के सामने उसकी झूठी तारीफ के पुल बांधते हैं, परोक्ष में बच्चों के सामने उसे बड़ा घटिया आदमी है, ऐसा कहते हैं।

आप सोचते हैं यह एक मिथ्या झूठ है परन्तु युवा मस्तिष्क झूठ के पुलिंदे से जल्दी भरते हैं। अमिट छाप जो जिन्दगी भर रहती है।
मेरे पिता जी बड़े आदर्शवादी थे। ईमानदारी से वकालत करते थे। वकालत व ईमानदारी में कुछ विरोधाभास की बू आती है। उन्हें वकालत न करना मंजूर था किन्तु झूठा केस नहीं लेते थे लेकिन वह कहते थे कि सच्चाई जानने के बाद, सच्चे केस के लिए थोड़ा-बहुत झूठ चलता है।

वह अक्सर एक उदाहरण दिया करते थे- अश्वत्थामा द्रोणाचार्य का इकलौता बेटा था, वह उसे बहुत प्यार करते थे। द्रोणाचार्य को मारने के लिए एक षड्यंत्र रचा गया। अश्वत्थामा को एक अन्य स्थान पर लड़ने को ले गए और अश्वत्थामा नामक हाथी का वध कर दिया।

सत्यनिष्ठ युधिष्ठिर ने घोषणा की, ‘‘अश्वत्थामा मर गया-नर या हाथी ? पता नहीं।

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‘नर या हाथी? पता नहीं’, शब्दों के पहले शंखध्वनि करके द्रोणाचार्य को भ्रमित कर दिया गया और पुत्र वियोग में उनमें लड़ने की इच्छा नहीं रही, उनका वध कर दिया गया। यह बात मेरे दिमाग में छप गई कि सच की लड़ाई के लिए कभी-कभी झूठ का सहारा लेना पड़ता है। अच्छे लक्ष्य की प्राप्ति के लिए कभी-कभी गलत रास्ता पकड़ा जाता है।

दूसरी कहानी बहेलिया और हिरण की है। वह आखेट के लिए हिरण के पीछे दौड़ रहा था। हिरण एक जगह गायब हो गया।
बहेलिया पूछता है किधर गया। उत्तर मिलता है- पूर्व दिशा में जबकि वह पश्चिम दिशा में गया होता है। हिरण को बचाने के लिए झूठ का सहारा लिया गया। बस क्या था, दिमाग में यह बात भी छप गई कि थोड़ा-बहुत झूठ बोल सकते हैं, सच के लिए। आज तक यह याद है और कह नहीं सकता कि कितनी बार इसे मन ही मन रटा है।  

खैर सच व झूठ की लड़ाई हमेशा चलती रही है। पूर्व सेनाध्यक्ष वी.के. सिंह से किसी ने कहा कि सब चलता है। पहले भी चलता था। आप भी लीजिए। जैसे एक शाश्वत भ्रष्टाचार जो एक शाश्वत सत्य की श्रेणी में चला गया हो। ‘सब चलता है।’ यही तो हमारी अंतरआत्मा के आगे एक पर्दा डाल देता है।

एक उदाहरण देता हूं। घर के पास एक पार्क है। पार्क से लौटते हुए ट्रैफिक नियमों का उल्लंघन करके उल्टे आना होता है। शुरू में बड़ी झिझक लगी। मैं कभी ट्रैफिक नियम का उल्लंघन नहीं करना चाहता था। प्रारम्भ में डरता-डरता सारी बत्तियां जलाकर हॉर्न बजाता हुआ निकला था, परन्तु समय के साथ मैं शेर हो गया। पुलिस की गाड़ी को भी उल्टा आते देखकर तसल्ली हुई कि बेझिझक बेरोक-टोक ट्रैफिक अवज्ञा की जा सकती है। सब चलता है और भी करते हैं। क्या करें। भ्रष्ट तंत्र फंड्स देने के लिए पैसा मांगता है।

क्या करें? वही करो जो सब कर रहे हैं। गंगा नहा लेना पाप धुल जाएंगे। वैसे तो आप समाज कल्याण कर ही रहे हो, पुण्य कमा रहे हो। सब चलता है। बहेलिया से हिरण को बचाना है। यह धारणा कि सब चलता है और भी कर रहे हैं आप भी करिए, बड़ी खतरनाक स्थिति है। इससे हम सभी को बाहर निकलना ही होगा।  

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