Edited By Prachi Sharma,Updated: 28 Apr, 2024 09:22 AM
पंडित महामना मदनमोहन मालवीय की बड़ी इच्छा थी कि काशी में एक विश्वविद्यालय बने। इसके लिए वह लोगों से धन के सहयोग की प्रार्थना करते थे।
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Motivational Story: पंडित महामना मदनमोहन मालवीय की बड़ी इच्छा थी कि काशी में एक विश्वविद्यालय बने। इसके लिए वह लोगों से धन के सहयोग की प्रार्थना करते थे। एक दिन वह अपने मित्र के साथ एक बड़े व्यापारी से सहयोग लेने उनके घर पहुंचे। तब तक अंधेरा छाने लगा था। सेठ जी ने अपने बेटे को बैठक में लालटेन जलाने को कहा।
पुत्र लालटेन और माचिस लेकर आया। उसने माचिस की तीन तीलियां जलाईं, पर तीनों लालटेन तक आते-आते बुझ गईं। सेठ जी लड़के पर नाराज होकर बोले, “तुमने माचिस की तीन तीलियां नष्ट कर दीं, कितने लापरवाह हो।”
सेठ जी अतिथियों के लिए नाश्ता पानी मंगवाने भीतर गए। मालवीय जी ने अपने मित्र से कहा, “इस कंजूस से कुछ पाने की आशा मत करो, वह तो माचिस की तीन तीलियों के नष्ट हो जाने पर लड़के को डांटता है।”
मित्र ने सहमति जताई। इतने में सेठ जी आ गए तो मालवीय जी और उनके मित्र उठ खड़े हुए। वह सेठ जी से बोले, “अब अनुमति दें।”
सेठ जी ने कहा, “आप लोग क्यों चल दिए ? आने का उद्देश्य तो बताया ही नहीं।” इस पर मालवीय जी के मित्र ने सेठ जी को संक्षेप में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के निर्माण के बारे में बताया।
सेठ जी ने कहा, “यह तो बड़ा अच्छा काम है। यह सुनकर सेठ जी ने तुरन्त पच्चीस हजार रुपए सामने रख दिए।”
अब चौंकाने की बारी इन लोगों की थी। मालवीय जी ने कहा, “अभी आपने लड़के को माचिस की तीन तीलियां नष्ट करने पर डांटा था, पर विश्वविद्यालय के लिए पच्चीस हजार रुपए दे दिए। इन दोनों व्यवहारों में इतना अंतर क्यों ?
” सेठ जी मुस्कुरा कर बोले, “महामना ! मेरा सोचना ऐसा है कि व्यर्थ तो माचिस की एक तीली भी नहीं जानी चाहिए, पर किसी बड़े काम में सामर्थ्य के अनुसार सहर्ष सहयोग देना चाहिए।