Religious Katha: क्या आप भी सेवा के बदले मेवे की इच्छा रखते हैं ?

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 27 Feb, 2024 07:44 AM

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राजा सुंदर सिंह के नगर से कुछ दूरी पर एक गांव के मंदिर में साधवी गौरी बाई रहती थीं। राजा ने जनता की सेवा के उनके कई किस्से सुन रखे थे। वह अपने गांव के लोगों का बहुत ध्यान रखती थीं और ईश्वर आराधना में व्यस्त रहती थीं।

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Religious Context: राजा सुंदर सिंह के नगर से कुछ दूरी पर एक गांव के मंदिर में साधवी गौरी बाई रहती थीं। राजा ने जनता की सेवा के उनके कई किस्से सुन रखे थे। वह अपने गांव के लोगों का बहुत ध्यान रखती थीं और ईश्वर आराधना में व्यस्त रहती थीं। इसके साथ ही वह समय निकालकर गांव वालों की मदद भी किया करती थीं।

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वह हर किसी के दुख-दर्द को अपना दुख-दर्द समझती थीं। गांव वाले भी उनके प्रति अत्यंत श्रद्धा रखते हुए उन्हें प्यार से ‘गौरी माई’ कहकर बुलाते थे। राजा सुंदर सिंह ने जब उनके बारे में सुना तो वह उनसे मिलने जा पहुंचे। गौरी बाई के दर्शन करके और उनकी बातें सुनकर राजा बहुत प्रभावित हुए।

उन्होंने सोचा कि उन्हें कुछ भेंट करना चाहिए। उन्होंने गौरी बाई को 50,000 स्वर्ण मुद्राएं दीं। पहले तो साधवी ने उन्हें लेने से इन्कार कर दिया, पर राजा के बार-बार अनुरोध करने पर उन्होंने उसे स्वीकार कर लिया किंतु उन्होंने राजा के सामने एक शर्त रख दी कि इन मुद्राओं को गरीबों के बीच बांट दिया जाना चाहिए।

राजा को बहुत आश्चर्य हुआ। उन्होंने कहा, ‘‘ये मुद्राएं आपके लिए हैं। इन पर तो आपका अधिकार है।’’

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इस पर साधवी ने मुस्कुराकर कहा, ‘‘राजन, आप ठीक कहते हो। इन मुद्राओं पर मेरा अधिकार है लेकिन मुझ पर तो गांव वालों का अधिकार है। मैं तो इनकी सेवक हूं इसलिए मुझसे पहले इस पर गांव वालों का हक बनता है।’’

इस पर राजा ने कहा, ‘‘आप धन्य हैं, पर आपकी भी तो कुछ आवश्यकता है।’’

गौरी बाई ने कहा, ‘‘राजन आप मेरी चिंता न करें। मैं तो अकेली हजारों गांव वालों का ध्यान रखती हूं और ये हजारों गांव वाले भी मेरा ख्याल रखते हैं। फिर मुझे भला किसी चीज की क्या आवश्यकता होगी, जिसकी पूर्ति न हो सके? मैं बस गांव वालों को सुखी देखना चाहती हूं। इनके सुख में ही मेरा सुख है इसलिए ये मुद्राएं सही जगह जा रही हैं। इससे आपका दान भी सफल हो रहा है।’’

गौरी बाई की इस बात का राजा पर इतना असर हुआ कि उन्होंने खुद भी आजीवन गरीबों की सेवा करने का प्रण ले लिया।

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