गणेश जी की पूजा के बाद जगद गुरु बन गए कछुआ

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 04 Apr, 2019 01:45 PM

religious story of lord vishnu

पुराने समय की बात है देवताओं और राक्षसों में आपसी मतभेद के कारण शत्रुता बढ़ गई। आए दिन दोनों पक्षों में लड़ाई होती रहती थी। एक दिन राक्षसों के आक्रमण से सभी देवता भयभीत हो गए। वे भागते-भागते ब्रह्मा जी के पास गए।

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पुराने समय की बात है देवताओं और राक्षसों में आपसी मतभेद के कारण शत्रुता बढ़ गई। आए दिन दोनों पक्षों में लड़ाई होती रहती थी। एक दिन राक्षसों के आक्रमण से सभी देवता भयभीत हो गए। वे भागते-भागते ब्रह्मा जी के पास गए। ब्रह्मा जी की राय से सभी लोग जगद गुरु श्री हरी विष्णु की शरण में जाकर प्रार्थना करने लगे।

PunjabKesariदेवताओं की प्रार्थना से प्रसन्न होकर भगवान श्री हरी विष्णु ने कहा, ‘‘देवताओं! तुम लोग दानव राज बलि से प्रेमपूर्वक मिलो। उनको ही अपना नेता मान कर समुद्र मथने की तैयारी करो। समुद्र-मंथन के अंत में अमृत निकलेगा। उसे पीकर तुम लोग अमर हो जाओगे।’’ 

PunjabKesariयह कह कर भगवान श्री हरी विष्णु अंतर्ध्यान हो गए। इसके बाद देवताओं ने बलि को नेता मान कर वासुकि नाग को रस्सी और मंदराचल को मथानी बना कर समुद्र मंथन शुरू किया परंतु जैसे ही मंथन शुरू हुआ कि मंदराचल ही समुद्र में डूबने लगा। सभी लोग परेशान हो गए। अंत में निराश होकर लोगों ने भगवान का सहारा लिया। 

PunjabKesariभगवान तो सब जानते ही थे। उन्होंने हंस कर कहा, ‘‘सब कार्यों के प्रारंभ में गणेश जी की पूजा करनी चाहिए। बिना उनकी पूजा के कार्य सिद्ध नहीं होता।’’ 

PunjabKesariयह सुन कर वे लोग गणेश जी की पूजा करने लगे। उधर गणेश जी की पूजा हो रही थी, इधर लीलाधारी भगवान ने कच्छप रूप धारण कर मंदराचल को अपनी पीठ पर उठा लिया।

PunjabKesariतत्पश्चात समुद्र मंथन शुरू हुआ। मथते-मथते बहुत देर हो गई। अमृत न निकला। तब भगवान ने सहस्रबाहु होकर स्वयं ही दोनों तरफ से मथना प्रारंभ किया। उसी समय हलाहल विष निकला, जिसे पीकर भगवान शिव नीलकंठ कहलाए। इसी प्रकार कामधेनु, उच्चै: श्रवा नामक घोड़ा, ऐरावत हाथी, कौस्तुभमणि, कल्पवृक्ष, अप्सराएं, भगवती लक्ष्मी, वारुणी, धनुष, चंद्रमा, शंख, धन्वंतरि और अंत में अमृत निकला।

PunjabKesariअमृत के लिए देवता और दानव दोनों झगडऩे लगे। तब भगवान ने अपनी लीला से अमृत देवताओं को ही दिया। अमृत पीकर देवता लोग अमर हो गए। वे युद्ध में विजयी हुए। विजयी देवता बार-बार कच्छप भगवान की स्तुति करने लगे। उनकी स्तुति से प्रसन्न होकर भगवान ने कहा, ‘‘देवताओ! जो लोग भगवान के आश्रित होकर कर्म करते हैं, वे ही देवता कहलाते हैं। उन्हें ही सच्ची सुख-शांति और अमृत या अमृत तत्त्व की प्राप्ति होती है किन्तु जो अभिमान के सहारे कर्म करते हैं, उन्हें कभी भी अमृत की प्राप्ति नहीं हो सकती।’’ 

यह कह कर भगवान कच्छप अंतर्ध्यान हो गए।

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