आप भी जानिए रावण की शिव भक्ति के ये दिलचस्प किस्से

Edited By Jyoti,Updated: 29 Jun, 2021 03:15 PM

religious story of ravana and shiv ji in hindi

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार रावण चाहे एक असुर था, पर उससे कई बढ़कर वह भगवान शिव का भक्त था। धर्म ग्रंथों में रावण से जुड़े ऐसे कई किस्से मिलते हैं

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धार्मिक मान्यताओं के अनुसार रावण चाहे एक असुर था, पर उससे कई बढ़कर वह भगवान शिव का भक्त था। धर्म ग्रंथों में रावण से जुड़े ऐसे कई किस्से मिलते हैं जिससे भगवान शिव के प्रति रावण की भक्ति स्पष्ट होती है। इनमें से सबस अधिक जो प्रसिद्ध है वो है कैलाश पर्वत को रावण द्वारा उठाना। इस प्रसंग के बारे में लगभग लोग जानते हैं।  परंतु इसके अलावा भी ऐसे कई किस्से भी शास्त्रों में उल्लेखित, जिसके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं, आज हम आपको रावण की असीम शिव भक्ति का अंदाजा लगाया जा सकता है। तो आइए जानते हैं ये रोचक किस्से- 

पहला प्रसंग- 
पौराणिक कथाओं के अनुसार प्राचीन काल में एक बार रावण ने शिव शंकर की घोर तपस्या की और हवन कर अपना सिर काटकर चढ़ाने लगा। धार्मिक ग्रंथों में उल्लेखित है रावण को वरदान में 10 सिर प्राप्त थे। जब वह हवन में रावण अपना दसवां सिर चढ़ाने लगा तो शिव जी उसके समक्ष प्रकट हो गए और उसका हाथ पकड़कर उसके समस्त सिर वापिस स्थापित कर उसे वर मांगने को कहा। जिस पर रावण ने कहा मैं आपके शिवलिंग स्वरूप को लंका में स्थापित करना चाहता हूं। शिव जी ने रावण को अपने शिवलिंग स्वरूप दो चिन्ह दिए और कहा कि इन्हें भूमि पर मत रखना अन्यथा ये वहीं स्थापित हो जाएंगे। लेकर रावण लंका की ओर जाने लगा, तब रास्ते में गौकर्ण क्षेत्र के दौरान एक जगह उसे लघुशंका लगी तो उसने बैजु नाम के एक गड़रिये को दोनों शिवलिंग पकड़ने को कहा और हिदायत दी कि इसे किसी भी हालत में जमीन पर मत रखना।

कथाओं के अनुसार भगवान शिव ने अपनी माया से उन दोनों का वजन बढ़ा दिया था, जिस कारण गड़रिये ने शिवलिंग नीचे रख दिए और वहां से चला गया था। जिस कारण दोनों शिवलिंग वहीं स्थापित हो गए। माना जाता है जिस मंजूषा में रावण के दोनों शिवलिंग रखे थे उस मंजूषा के सामने जो शिवलिंग था वह चन्द्रभाल के नाम से प्रसिद्ध हुआ और जो पीठ की ओर था वह बैजनाथ के नाम से प्राप्त हुआ। कहा जाता है कि इस के बाद रावण को भगवान शिव की चालाकी समझ में आ गई और वह बहुत क्रोधित हुआ। क्रोध के आवेश में आकर उसने अपने अंगूठे से एक शिवलिंग को दबा दिया जिससे उसमें गाय के कान (गौ-कर्ण) जैसा निशान बन गया। बता दें वर्तमान समय में हिमाचल के कांगड़ा से 54 किमी और धर्मशाला से 56 किमी की दूरी पर बिनवा नदी के किनारे बसा बैजनाथ धाम में वहीं यही शिवलिंग स्थापित है। 

दूसरा प्रसंग- 
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार महाभारत का युद्ध कुरुक्षेत्र नामक जगह पर हुआ था। कथाओं के अनुसार यहां त्रेतायुग में लंकाधिपति रावण और उसके पुत्र मेघनाद ने शिवजी की तपस्या करके अकाल मृत्यु पर विजय प्राप्त की थी। वर्तमान समय में यहां पर महाकालेश्वर नामक मंदिर स्थित। तो वहीं द्वापर युग में यहीं पर जयद्रथ ने भी तपस्या की थी। एक बार आकाश मार्ग से गुजरते वक्त रावण का विमान डगमगाने लगा था। नीचे शिवलिंग को देखकर रावण रुक गया और शिव जी की तपस्या की। लंबी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उसे वरदान मांगने को कहा तो रावण ने प्रार्थना की कि इस घटना का कोई साक्षी नहीं होना चाहिए। कथाओं के अनुसार उस समय भगवान शिव ने नंदी से अपने से दूर किया हुआ था। यही कारण है आज भी यहां शिवलिंग की पूजा बगैर नंदी के की जाती है।

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