Shri Guru Nanak Dev Ji Suvichar: सीख देते हैं गुरु नानक देव जी के वचन

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 27 Nov, 2023 11:12 AM

shri guru nanak dev ji suvichar

गुरु नानक देव जी के ज्ञान के आलोक से प्रकाशित हृदय से सबसे पहले यही शब्द निकले ‘एक ओंकार सतनाम, कर्ता पुरख।’ इसके साथ जो उपदेश उनके मुख से निकला यह ‘जपुजी साहिब’ के नाम है। वह कर्ता पुरख है क्योंकि

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Guru Nanak Dev Quotes: गुरु नानक देव जी के ज्ञान के आलोक से प्रकाशित हृदय से सबसे पहले यही शब्द निकले ‘एक ओंकार सतनाम, कर्ता पुरख।’ इसके साथ जो उपदेश उनके मुख से निकला यह ‘जपुजी साहिब’ के नाम है। वह कर्ता पुरख है क्योंकि वह इस जगत को रखने वाला है। इसका कारण अन्य कोई नहीं है। वह परमात्मा निर्भय, निवैर, रागद्वेष रहित, अभय, अकालमूर्ति, देशकाल रहित तीनों कालों से परे, जन्मा और स्वयंभू है। उसका अन्य कोई कारण नहीं है। वह गुरु की कृपा से और गुरु की प्रसन्नता से प्राप्त होता है। अंत में ‘जपु’ कह कर यह निर्देश दिया कि यही मूलमंत्र है। इसका जप करो।

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श्री गुरु नानक देव जी ने परमात्मा के विषय में कहा कि परमात्मा अनादि है। ‘आदि सचु जुगादि सचु’ युगों-युगों से वही सत्य है। ‘है भी सच’ आज भी वही सत्य है। ‘नानक होसी भी सच’ नानक जी का वचन है कि भविष्य में वही सत्य रहेगा। छांदोग्य उपनिषद् के ऋषि का भी यही कथन है। ‘सदैव सौम्य’ इस जगत के उत्पन्न होने के पहले एक अद्वितीय सत्य ही था। ‘दूसर नहिं कोए’। वह अद्वितीय है। 

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जो कुछ इंद्रियगोचर है वह सब वही है, दूसरा कुछ भी नहीं। यही सर्वव्यापक सत्ता है। समस्त जगत उसी से परिपूर्ण है। वह निरंकार, निरंजन है। श्री गुरु नानक देव जी कोरे ज्ञान को महत्व नहीं देते, अपितु उन्होंने भक्ति की पराकाष्ठा को भी छुआ है। वह अपनी सुमधुर प्रेममयी वाणी से कहते हैं कि उस परमात्मा को हम दीन या दास्य भाव से ही पा सकते हैं। 

उनके चिंतन स्मरण में डूबकर, अपने को खोकर ही उसे पाया जाता है। अहंकार रहित सच्चे ज्ञानी होकर भी वह अपने को दासों का दास ही कहते हैं।

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