Jagannath Rath Yatra: भक्त की पुकार पर प्रकट हुए थे भगवान जगन्नाथ, बलराम जी और देवी सुभद्रा, पढ़ें अनोखे स्वरूपों की कथा

Edited By Updated: 25 Jun, 2025 03:41 PM

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Jagannath Rath Yatra 2025: जगत के नाथ भगवान जगन्नाथ जी श्री हरि विष्णु के एक रूप श्रीकृष्णचन्द्र का अवतार हैं। शास्त्रों में बताई गई कथाओं के अनुसार ब्रह्मांड के स्वामी जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र (बलराम) और बहन सुभद्रा राजा इंद्रद्युम्न की प्रेममयी...

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Jagannath Rath Yatra 2025: जगत के नाथ भगवान जगन्नाथ जी श्री हरि विष्णु के एक रूप श्रीकृष्णचन्द्र का अवतार हैं। शास्त्रों में बताई गई कथाओं के अनुसार ब्रह्मांड के स्वामी जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र (बलराम) और बहन सुभद्रा राजा इंद्रद्युम्न की प्रेममयी भक्तिमय पुकार पर प्रकट हुए थे। पुरी का जगन्नाथ मंदिर हिंदूओं के पवित्र 4 धामों में से एक है। जहां आज भी धड़कता है श्रीकृष्ण का दिल। प्रत्येक 12 साल के बाद भगवान जगन्नाथ, बलराम जी और देवी सुभद्रा के स्वरुप को बदला जाता है।

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उड़ीसा की राजधानी भुवनेश्वर से 8 किलोमीटर की दूरी पर बंगाल की खाड़ी के निकट स्थित यह स्थान दंतपुर के नाम से जाना जाता है। माना जाता है कि इस स्थान पर भगवान श्री गौतम बुद्ध का दांत गिरा था, इसी कारण इस स्थान का नाम दंतपुर पड़ा। सदियों से ही इस स्थान के अनेक नाम हैं, जिनमें से नीलगिरि, नीलांचल, नीलाद्री, श्रीक्षेत्र, शंखक्षेत्र, पुरषोत्तम, जगन्नाथ धाम तथा श्री जगन्नाथ पुरी आदि प्रसिद्ध हैं। श्री जगन्नाथ मंदिर से 2 किलोमीटर की दूरी पर स्थित गुण्डिचा मंदिर है, जिसका नाम राजा इन्द्रद्युमन की पत्नी के नाम पर रखा गया था। जब भगवान इस मंदिर में विश्राम करते हैं तो उन्हें वहां 56 भोग लगाए जाते हैं। उस प्रसाद को लाखों भक्त खाकर स्वयं को कृतार्थ हुआ मानते हैं।

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पौराणिक कथा के अनुसार मालव नरेश इन्द्रद्युमन जगन्नाथ जी को शबर राजा से लेकर आए थे। उन्होंने ही पुरी में मंदिर का निर्माण करवाया था। बाद में ययाति नरेश ने भी मंदिर का निर्माण करवाया, जो नष्ट हो गया था। कलयुग में जब इन्द्रद्युमन के मन में भगवान नीलमाधव के दर्शनों की इच्छा हुई तो आकाशवाणी हुई कि भगवान जल्दी ही दारू रूप में दर्शन देंगे। प्रभु दर्शनों की इच्छा से इन्द्रद्युमन अपने परिवार सहित नीलांचल पर बस गया जहां उसे समुद्र किनारे एक काष्ठ शिला मिली। 

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उस शिला से भगवान की मूर्ति बनवाने पर वह विचार कर ही रहा था कि विश्वकर्मा जी बूढ़े बढ़ई के रुप में वहां आ गए तथा उन्होंने एक बंद एकांत भवन में 151 दिन तक भगवान की मूर्ति बनाने की शर्त रखी। राजा ने शर्त से पहले ही दरवाजा खोलकर भगवान के दर्शन करने चाहे तो उसे 3 अर्धनिर्मित श्री विग्रह मिले। बनाने वाला बढ़ई भी गायब हो चुका था। तब नारद जी ने कहा कि भगवान इसी रूप में सबकी सेवा लेना चाहते हैं। तब पुरी स्थित भगवान श्री जगन्नाथ मंदिर में मूर्तियों की स्थापना की गई। 

इन मूर्तियों में भगवान श्री जगन्नाथ, भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा हैं। किसी भी प्रतिमा के चरण नहीं हैं, केवल भगवान जगन्नाथ और बलभद्र के बाजू हैं। किंतु कलाई और अंगुलियां नहीं हैं। अपने भक्तों पर पूरी कृपा लुटाने के लिए भगवान के अपने हाथ भी आगे की तरफ बढ़ाए हुए प्रतीत होते हैं। भगवान ने तो अपने विशाल नेत्रों पर पलकें भी धारण नहीं की क्योंकि भगवान सोचते हैं कि यदि उन्होंने अपनी आंखों को विश्राम देने के लिए पलकें भी झपकी तो बहुत से भक्त कहीं उनकी कृपा से वंचित न रह जाएं।

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