सूर्य ग्रहण 2022: जानिए क्या सच में देवी देवता भी इस समय रहते हैं कष्ट में?

Edited By Jyoti,Updated: 29 Apr, 2022 06:47 PM

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जैसे कि सब जानते हैं  साल 2022 का पहला सूर्य ग्रहण 30 अप्रैल को लग रहा है। ये आंशिक ग्रहण होगा। इसका असर लगभग सभी के जीवन पर पड़ता है। लेकिन क्या आपको पता है कि ग्रहण क्यों लगता है। और इसका असर सिर्फ

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जैसे कि सब जानते हैं  साल 2022 का पहला सूर्य ग्रहण 30 अप्रैल को लग रहा है। ये आंशिक ग्रहण होगा। इसका असर लगभग सभी के जीवन पर पड़ता है। लेकिन क्या आपको पता है कि ग्रहण क्यों लगता है। और इसका असर सिर्फ इंसानों पर ही नहीं बल्कि देवताओं पर भी होता है। जी हां, इसलिए ग्रहण के दैरान मंदिर के कपाट भी बंद कर दिए जाते हैं। तो दोस्तों आज हम इस वीडियों में आपको बताएंगे ग्रहण लगने के पीछे का कारण और इससे जुड़ी पोराणिक कथा। तो आइए जानते हैं कैसे और क्यों लगता है ग्रहण।
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ग्रहण की घटना जहां खगोलीय और वैज्ञानिक दृष्टि से अति महत्‍वपूर्ण होती है। वहीं ज्‍योतिष के लिहाज से भी इसे फेरबदल वाली युति माना जाता है। हर वर्ष राहु और केतु सूर्य और चंद्रमा का ग्रास करने के लिए आते हैं, इसलिए हर साल चंद्र ग्रहण एवं सूर्य ग्रहण लगता है।

ज्योतिषशास्त्र के अनुसार, राहु और केतु को छाया ग्रह माना जाता है। तो अगर किसी की कुंडली में राहु-केतु बुरे भाव में बैठे हों तो उस व्यक्ति का जीवन परेशानियों से घिर जाता है। तो जब सूर्य और चंद्रमा पर भी राहु-केतु की छाया पड़ती है तो सूर्य और चंद्रमा को ग्रहण लगता है।
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धार्मिक दृष्टि से देखें तो ग्रहण के पीछे एक कथा प्रचलित है जिसके अनुसार, जब समुद्र मंथन के बाद अमृतपान को लेकर देवगण और दानवों के बीच विवाद शुरू हुआ तो भगवान विष्णु जी ने मोहिनी अवतार लिया था। भगवान के मोहिनी स्वरूप को देखकर सभी दानव मोहित हो गए। मोहिनी ने दैत्यों और देवगणों को अलग अलग बैठा दिया और पहले देवताओं को अमृतपान पिलाना शुरू कर दिया। मोहिनी की चाल को बाकी असुर समझ न सके, लेकिन एक असुर समझ गया और देवताओं के बीच चुपचाप जाकर बैठ गया। धोखे से मोहिनी ने उसे अमृतपान दे दिया। लेकिन तभी देवताओं की पंक्ति में बैठे चंद्रमा और सूर्य ने उसे देख लिया और भगवान विष्णु को बताया।
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इससे क्रोधित होकर भगवान विष्णु ने दानव का गला काटकर सुदर्शन चक्र से अलग कर दिया। चक्र से दानव के शरीर के दो टुकड़े तो हो गए लेकिन वो मरा नहीं क्योंकि तब तक वो अमृतपान पी चुका था। उसी दानव का सिर का हिस्सा राहू और धड़ का हिस्सा केतू कहलाया। राहू-केतू खुद के शरीर की इस हालत का जिम्मेदार सूर्य और चंद्रमा को मानते हैं, इसलिए राहू हर साल पूर्णिमा और अमावस्या के दिन सूर्यदेव और चंद्रदेव को ग्रहण लगाते हैं। इसे सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण कहा जाता है। इसलिए ग्रहण के समय हमारे देव कष्ट में होते हैं और ब्रहमांड में राहू अपना जोर लगा रहा होता है। इसलिए ग्रहणकाल के दौरान सूर्य और चंद्रमा के दर्शन और देवी-देवताओं को छूना मना होता है। ग्रहण काल के 20 घंटे पहले और ग्रहण के 20 घंटे बाद तक मंदिरों के कपाट भी बंद रहते हैं।

 

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