Edited By Niyati Bhandari,Updated: 13 Aug, 2025 01:00 AM

Sri Sri Ravi Shankar: आज आवश्यकता है कि हम जीवन के प्रति अपने दृष्टिकोण को व्यापक करें और अपनी जड़ों को गहराई दें। जब हम स्वयं को बेहतर समझते हैं, अपने अतीत पर गर्व करते हैं तो अपने सांस्कृतिक मूल, भाषा, संगीत, भोजन और ज्ञान परंपराओं के प्रति...
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Sri Sri Ravi Shankar: आज आवश्यकता है कि हम जीवन के प्रति अपने दृष्टिकोण को व्यापक करें और अपनी जड़ों को गहराई दें। जब हम स्वयं को बेहतर समझते हैं, अपने अतीत पर गर्व करते हैं तो अपने सांस्कृतिक मूल, भाषा, संगीत, भोजन और ज्ञान परंपराओं के प्रति स्वाभाविक रूप से हमारे भीतर उत्तरदायित्व और अपनापन पैदा होता है।

भारत का आकार देखिए यह अमेरिका के एक-तिहाई भूभाग के बराबर है लेकिन इसकी जनसंख्या तीन गुना है। यहां बाईस आधिकारिक भाषाएं हैं और इनके अतिरिक्त अनेक बोलियां और उपबोलियां, असंख्य संस्कृतियां, परंपराएं और मान्यताएं हैं। इस अपार विविधता के बावजूद यह देश एक अविभाज्य इकाई के रूप में आगे बढ़ रहा है। इसका कारण है इस भूमि की आध्यात्मिकता। यहां के लोग अब भी मुस्कुराते और प्रसन्न रहते हैं। भारतीयों को इस बात पर गर्व होना चाहिए।
भारत की आध्यात्मिक परंपरा बहुत दीर्घ है और लोगों को जोड़ने का इसका इतिहास अद्वितीय है। पीढ़ी-दर-पीढ़ी, दुनिया भर के लोग यहां सच्चा सुख, ज्ञान और शांति की खोज में आते रहे हैं। कश्मीर से कन्याकुमारी तक, भारत आध्यात्मिक साहित्य और दर्शन की समृद्ध विरासत से संपन्न है। चाहे वह विज्ञान भैरव, शिव सूत्र, रस हृदय तंत्र जैसे कश्मीर शैवमत के ग्रंथ हों या फिर तिरुक्कुरल जैसे तमिल शास्त्र। हज़ारों पांडुलिपियां और ताड़पत्र ग्रंथ तो आज भी अपठित रह गये हैं। कुछ अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालयों के प्रयास से अनेक दुर्लभ और प्राचीन पांडुलिपियां संरक्षित और डिजिटाइज़ हो रही हैं।

हिमालय की बर्फ से ढकी चोटियों से लेकर केरल के समुद्र तटों और बैकवॉटर तक, तमिलनाडु, ओडिशा, मध्यप्रदेश और गुजरात के प्राचीन मंदिरों से लेकर वन्यजीव अभयारण्यों तक भारत में पर्यटन स्थलों में जो विविधता है वह शायद ही दुनिया में कहीं और मिले। यहां विश्वस्तरीय वैज्ञानिक और तकनीकी मस्तिष्क हैं और अपार जनसांख्यिकीय क्षमता है। पर्यटन, खानपान, सूचना प्रौद्योगिकी, वस्त्र, आभूषण, आयुर्वेद, योग और आध्यात्मिक साधनाएं, भारत के पास दुनिया को देने के लिए बहुत कुछ है।
देशभक्ति का अर्थ यह नहीं कि आप वैश्विक नागरिक नहीं हो सकते। ये दोनों एक-दूसरे के विपरीत नहीं हैं। हर व्यक्ति को अपने देश, भाषा और संस्कृति पर गर्व करने का अधिकार है जैसे एक कन्नड़ भाषा को कन्नड़ पर गर्व होना चाहिए, वैसे ही एक फ़्रांसीसी को फ्रेंच पर होता है। जब सेनेगल, मंगोलिया या किसी भी अन्य देश के लोग अपनी सुंदर सांस्कृतिक धरोहर के बारे में बताते हैं, अपनी परंपराएं साझा करते हैं, तो यह सभी को समृद्ध करता है। यह गर्व संकीर्ण राष्ट्रवाद नहीं, बल्कि अपनी जड़ों और विरासत के प्रति सम्मान है। जब आप अपनी संस्कृति का मूल्य समझते हैं, तभी आप दूसरों की संस्कृति का भी आदर और प्रशंसा कर पाते हैं।

आज आपस में जुड़े विश्व में तकनीक, ज्ञान और बुद्धि को सीमाओं में नहीं बांधा जा सकता। हम फ़िनलैंड का मोबाइल फोन केवल इसलिए अस्वीकार नहीं करते कि वह वहां बना है, न ही इटली का पिज़्ज़ा। उसी प्रकार, आध्यात्मिक ज्ञान, चाहे वह कहीं से भी आए, मन और आत्मा को ऊंचा उठा सकता है और उसे खुले मन से स्वीकार करना चाहिए, साथ ही उसका उचित श्रेय भी देना चाहिए। जैसे न्यूटन को गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत का श्रेय दिया जाता है, जबकि यह नियम उससे पहले भी अस्तित्व में था। उसी तरह, योग और आयुर्वेद का जन्म भारत में हुआ और इसे हमारे ऋषियों ने दुनिया को उपहार स्वरूप दिया। इस सत्य का सम्मान होना चाहिए।
आज योग को कई रूपों और नामों में ढाला जा रहा है। नवाचार का अपना स्थान है परंतु योग की परंपरा और सार का सम्मान होना चाहिए और इसे दुनिया को देने वाले ऋषियों को श्रेय अवश्य मिलना चाहिए। यही बात आयुर्वेद पर भी लागू होती है। यह प्राचीन विज्ञान हमारे ऋषियों ने स्वास्थ्य और उपचार की एक संपूर्ण पद्धति के रूप में दिया था। इसे ‘हर्बल मेडिसिन’ कहकर पुनः ब्रांड करना, इसकी गहराई को कमतर आंकना है और उन मनीषियों की दृष्टि का अनादर करना है, जिन्होंने इसे दुनिया को दिया। यह एक प्रकार की बौद्धिक चोरी है।
भारत सदैव विश्व में सम्मानजनक स्थान रखता आया है। लेकिन हम विश्व मंच पर अपनी गहरी जड़ों पर गर्व करने में संकोच करते थे। अब यह बदल रहा है। इस नये आत्मगौरव के साथ भारत के पास दुनिया को देने के लिए बहुत कुछ है। अभाव को आत्मसम्मान प्राप्त करके दूर करना होगा। आत्मसम्मान के साथ हमें अपनी उत्पादकता बढ़ानी होगी और देश में संपन्नता लानी होगी। अब समय है कि हम अपनी नींद से जागें, साहस जुटाएं, अपने पूर्वजों के बलिदान को याद करें और प्रगतिशील भारत के लिए कार्य करें।
