Surya Tilak: अयोध्या राम मंदिर के अलावा कई मंदिरों में हो रहा है सूर्य तिलक

Edited By Prachi Sharma,Updated: 18 Apr, 2024 08:46 AM

surya tilak

महाराष्ट्र के कोल्हापुर में स्थित महालक्ष्मी मंदिर किरणोत्सव के लिए जाना जाता है। इस मंदिर का निर्माण सातवीं सदी में चालुक्य वंश के शासक कर्णदेव ने करवाया था। मंदिर में किरणोस्तव

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Surya Tilak: किरणोत्सव के लिए जाना जाता है कोल्हापुर स्थित महालक्ष्मी मंदिर          
महाराष्ट्र के कोल्हापुर में स्थित महालक्ष्मी मंदिर किरणोत्सव के लिए जाना जाता है। इस मंदिर का निर्माण सातवीं सदी में चालुक्य वंश के शासक कर्णदेव ने करवाया था। मंदिर में किरणोस्तव की घटना तब घटती है, जब सूर्य की किरणें सीधे देवी की मूर्ति पर पड़ती हैं। ऐसा साल में दो बार होता है। 31 जनवरी और 9 नवम्बर को सूर्य की किरणें माता के चरणों पर पड़ती हैं। 1 फरवरी और 10 नवम्बर को सूर्य की किरणें रश्मि मूर्ति के मध्य भाग पर गिरती हैं। 2 फरवरी और 11 नवम्बर को सूर्य की किरणें पूरी मूर्ति को अपनी रोशनी से नहला देती हैं। इस अद्भुत घटना को एलईडी स्क्रीन के जरिए लाइव स्ट्रीम किया जाता है। यह उत्सव मंदिर में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।  

गुजरात में मेहसाणा का सूर्य मंदिर 
जरात में मेहसाणा से लगभग 25 किलोमीटर दूर मोढेरा गांव में सूर्य मंदिर है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण(एएसआई) के अनुसार मंदिर का निर्माण 1026-27 ई. में चौलुक्य वंश के भीम प्रथम के शासनकाल के दौरान किया गया था। मंदिर को इस तरह से बनाया गया था कि 21 मार्च और 21 सितम्बर को सूर्य की किरणें सीधे मंदिर में प्रवेश करेंगी और सूर्य की मूर्ति पर पड़ेंगी। 

कोणार्क का सूर्य मंदिर
ओडिशा में स्थित कोणार्क सूर्य मंदिर अपनी वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध है। 13वीं शताब्दी के मध्य में इस मंदिर का निर्माण कराया गया था। इसकी वास्तुकला इस प्रकार है कि सूर्य की पहली किरण मंदिर के मुख्य द्वार पर पड़ती है। फिर सूर्य का प्रकाश इसके विभिन्न द्वारों के जरिए मंदिर में प्रवेश कर गर्भगृह को प्रकाशमान करता है।

बेंगलुरु का गवी गंगाधरेश्वर मंदिर
 बेंगलुरु के गवी गंगाधरेश्वर मंदिर को गवीपुरम गुफा मंदिर के रूप में भी जाना जाना जाता है। भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर अद्भुत वास्तुकला का प्रदर्शन करता है। इस गुफा मंदिर का आंतरिक गर्भगृह विशेष चट्टान में उकेरा गया है। इसकी वजह से मंदिर पर सीधे धूप पहुंचती है। ऐसा हर साल एक खास महीने, एक खास दिन होता है। इस दिन सूर्य की किरणें जादुई तरीके से मंदिर के गर्भगृह तक पहुंचती हैं। नंदी की प्रतिमा को पहले किरणों से प्रकाशित किया जाता है और फिर शिवलिंग के चरणों को स्पर्श करवाया जाता है और अंत में यह पूरे शिवलिंग को प्रकाशित कर देता है। इस दिन मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाता  है।
 

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