Edited By Niyati Bhandari,Updated: 04 Jul, 2023 01:56 PM
‘उठो, जागो और तब तक न रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए’ का पूरी दुनिया को संदेश देकर अपने लक्ष्य के प्रति जुटने का जनता को आह्वान करने वाले महान देशभक्त संन्यासी एवं युवा
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Swami Vivekananda: ‘उठो, जागो और तब तक न रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए’ का पूरी दुनिया को संदेश देकर अपने लक्ष्य के प्रति जुटने का जनता को आह्वान करने वाले महान देशभक्त संन्यासी एवं युवा संत विवेकानंद जी को करोड़ों युवा आज भी अपना आदर्श मानते हैं। उनके विचार लोगों की सोच और व्यक्तित्व को बदलने वाले हैं।
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39 वर्ष के संक्षिप्त जीवन में स्वामी विवेकानंद जो काम कर गए, वे आने वाली अनेक शताब्दियों तक पीढ़ियों का मार्गदर्शन करते रहेंगे। उन्होंने 1893 में अमरीका के शिकागो, विश्व धर्म सम्मेलन में भारत की ओर से हिंदू धर्म का प्रतिनिधित्व किया और उसे सार्वभौमिक पहचान दिलवाई।
गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर ने एक बार कहा था ‘‘यदि आप भारत को जानना चाहते हैं तो स्वामी विवेकानंद को अवश्य पढि़ए।’’
12 जनवरी, 1863 को कलकत्ता में हाईकोर्ट के प्रसिद्ध वकील विश्वनाथ दत्त के घर धार्मिक विचारों वाली माता भुवनेश्वरी देवी की कोख से जन्मे विवेकानंद जी का घर का नाम वीरेश्वर रखा गया, परन्तु इनका औपचारिक नाम नरेन्द्रनाथ दत्त था। बचपन से ही ये अत्यंत कुशाग्र बुद्धि के थे। बड़े हुए तो 1881 में रामकृष्ण परमहंस जी से पहली मुलाकात हुई। उनकी प्रशंसा सुनकर नरेंद्र उनके पास पहले तो तर्क करने के विचार से ही गए थे परंतु परमहंस जी ने देखते ही पहचान लिया कि यह तो वही शिष्य है जिसका उन्हें काफी समय से इंतजार था। परमहंस जी की कृपा से इनको आत्म-साक्षात्कार हुआ तथा ये उनके शिष्यों में प्रमुख हो गए।
25 वर्ष की आयु में संन्यास लेने के बाद इनका नाम विवेकानंद हुआ और इन्होंने गेरुआ वस्त्र धारण कर लिए। उन्होंने पैदल ही पूरे भारत की यात्रा की। रामकृष्ण जी की मृत्यु के बाद विवेकानन्द जी ने बड़े पैमाने पर भारतीय उपमहाद्वीप की यात्रा कर भारत में तत्कालीन स्थितियों का प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्त किया।
31 मई, 1893 को इन्होंने अपनी विदेश यात्रा शुरू की और जापान के कई शहरों का दौरा किया फिर चीन और कनाडा होते हुए अमरीका के शिकागो पहुंचे। उनके शिकागो भाषण ने दुनिया का दिल जीत लिया।
एक बार विदेश में उनसे प्रभावित एक विदेशी महिला उनके पास आकर बोली कि मैं आपसे विवाह करना चाहती हूं, ताकि मुझे आपके जैसे गौरवशाली पुत्र की प्राप्ति हो।
स्वामी विवेकानंद बोले, ‘‘मैं एक सन्यासी हूं, मैं कैसे विवाह कर सकता हूं? आप चाहो तो मुझे अपना पुत्र बना लें, इससे मेरा संन्यास भी नही टूटेगा और आपको मेरे जैसा पुत्र भी मिल जाएगा।’’
सुनते ही महिला उनके चरणों में गिर पड़ी और बोली, ‘‘आप धन्य हैं जो किसी भी परिस्थिति में अपने धर्म के मार्ग से विचलित नहीं होते।’’
4 जुलाई, 1902 को रात्रि 9.10 पर ध्यानावस्था में ही आपने महासमाधि ले ली। बेलूर में गंगा तट पर आपकी अंत्येष्टि की गई। अनुयायियों ने इनकी स्मृति में वहां बेलूर मठ बनवाया और समूचे विश्व में विवेकानन्द तथा रामकृष्ण परमहंस के संदेशों के प्रचार के लिए 130 से अधिक केंद्रों की स्थापना की। 1984 में भारत सरकार ने इनके जन्मदिन 12 जनवरी को ‘राष्ट्रीय युवा दिवस’ घोषित किया।