इन श्लोकों से जानें श्रीराम को मर्यादा पुरुषोत्तम कहने का असल महत्व

Edited By Updated: 25 Mar, 2018 01:08 PM

these shalok descirbes significance of shriram to be called maryada purushotam

नौमी तिथि मधुमास पुनीता। सुकल पच्छ अभिजित हरि प्रीता।। नवमी तिथि, पवित्र चैत्रमास, शुक्ल पक्ष, भगवान के प्रिय अभिजित मुहूर्त में, मध्यांहकाल में मर्यादा पुरुषोत्तम कृपालु, मां कौशल्या के हितकारी भगवान श्री राम प्रकट हुए। सुंदर नेत्र, मेघ के समान...

नौमी तिथि मधुमास पुनीता।
सुकल पच्छ अभिजित हरि प्रीता।।


नवमी तिथि, पवित्र चैत्रमास, शुक्ल पक्ष, भगवान के प्रिय अभिजित मुहूर्त में, मध्यांहकाल में मर्यादा पुरुषोत्तम कृपालु, मां कौशल्या के हितकारी भगवान श्री राम प्रकट हुए। सुंदर नेत्र, मेघ के समान शरीर, चारों भुजाओं में आयुध धारण किए हुए, आभूषण पहने, गले में कंठमाला धारण किए लक्ष्मीपति श्रीहरि के समक्ष हाथ जोड़े माता कौशल्या ने कहा कि माया से रचे अनेक ब्रह्मांड आपके रोम-रोम में हैं, ऐसा वेद कहते हैं। आप माया, गुण और ज्ञान से अतीत अर्थात परे हैं ऐसा वेद और पुराण कहते हैं। अत: आप यह चतुर्भुज रूप त्याग कर अत्यंत प्रिय बाल-लीला कीजिए। इस प्रकार साधु-पुरुषों के कल्याण के लिए माया, गुण और इन्द्रियों से परे भगवान ने मनुष्य रूप में अवतार धारण किया। 


काक भुशुंडि जी ने बालस्वरूप भगवान श्री राम चंद्र ध्यान का ज्ञान प्राप्त करने हेतु लोमश ऋषि को बाध्य किया। क्रोधवश जब ऋषि ने भगवान श्री राम की साकार भक्ति हेतु प्रतिबद्ध काक भुशुंडि जी को कौआ बनने का श्राप दिया, तब ऋषि को पछतावा हुआ। उन्होंने आदरपूर्वक काक भुशुंडि जी को प्रसन्नतापूर्वक राममंत्र दिया तथा भगवान शिव की कृपा से प्राप्त गूढ़ और रामचरितमानस को लोमश मुनि ने काक भुशुंडि जी को प्रदान किया और वरदान दिया कि तुम्हारे हृदय में अटल राम भक्ति बसेगी। 


काक भुशुंडि जी भगवान श्री हरि विष्णु जी के वाहन गरुड़ जी से कहते हैं कि मेरी आयु के 27 कल्प बीत चुके हैं। श्री सनातन धर्मरक्षक परब्रह्म भगवान श्री राम जब-जब भक्तों के हित के लिए अयोध्या में शरीर धारण करते हैं-


‘‘तब-तब जाइ राम पुर रहऊं।
सिसुलीला बिलोकि सुख लहऊं।।’’


तब-तब मैं जाकर अयोध्या में रहता हूं और प्रभु की बाल-लीला देखकर सुख पाता हूं। हे गरुड़ जी! श्री रामजी का बालक रूप अपने हृदय में रखकर अपने आश्रम में आ जाता हूं। 


‘‘जेहि दिन राम जनम श्रुति गावहिं।
तीरथ सकल जहां चलि आवहिं।।’’


जिस दिन श्री राम जी का जन्म होता है, वेद कहते हैं, उस दिन समस्त तीर्थ श्री अयोध्या जी में चले आते हैं। मानव जाति के कल्याण के लिए, वैदिक सनातन धर्म की रक्षा के लिए, असुरों के विनाश के लिए भगवान राम इस धरा पर अवतरित हुए। भगवान श्री कृष्ण स्वयं श्री गीता जी में कहते हैं-


‘‘राम:शस्त्र भृतामहम्।।’’
अर्थात शस्त्रधारियों में श्रीराम मैं हूं।
‘‘यसमात्क्षरमतीतोऽहम क्षरादपि चोत्तम:।
अतोऽस्मि लोके वेदे च प्रथित: पुरषोत्तम:।।’’

 

मैं नाशवान शरीर से तथा नाशवान जड़वर्ग से अतीत हूं तथा अविनाशी जीवात्मा से भी उत्तम हूं इसलिए लोक और वेद में भी पुरुषोत्तम नाम से प्रसिद्ध हूं। 
अहिल्या, केवट, शबरी, सुग्रीव तथा विभीषण भगवान की शरण प्राप्त कर कल्याण को प्राप्त हो गए। जटायु ने आदिशक्ति सीता जी की रक्षा हेतु रावण से युद्ध किया और घायल हो गए। तब अंत समय भगवान श्री राम जी की कृपा प्राप्त कर भगवान के धाम को प्राप्त किया। 


भगवान ने सदा अपने भक्तों को सम्मान दिया। रुद्रावतार हनुमान जी की अपने स्वामी प्रभु श्री रामजी के प्रति अटूट भक्ति ने उन्हें सभी लोकों में पूज्य बना दिया। कश्यप ऋषि और अदिति ने अपनी कठिन तपस्या के फलस्वरूप भगवान श्रीहरि को पुत्र रूप में प्राप्त किया। 


भारतीय जन मानस के समक्ष जीवन का जो आदर्श उन्होंने राजा के रूप में तथा आज्ञाकारी पुत्र के रूप में सबके सामने रखा तथा सबके प्रति स्नेह, करुणा और सेवा का भाव रखा, वह संपूर्ण भारतीय समाज तथा मानव जाति के लिए अनुकरणीय है। 
भगवान श्री राम की मर्यादित कत्र्तव्य-परायणता से भारतीय सनातन संस्कृति गौरवान्वित हुई है। समाज के कल्याण के प्रति संवेदनशीलता, वन में रह कर भी लोक कल्याण के कार्य करना, सनातन संस्कृति के ध्वजवाहक ऋषियों-मुनियों को समुचित सम्मान प्रदान करना, नारी के गौरव एवं सम्मान की रक्षा, ये सब प्रभु श्री राम जी की गौरवमयी गाथा के अनुपम उदाहरण हैं। 


भारतीय सनातन समाज सदैव उनके सद्-आचरण से प्रेरणा लेता रहेगा। तुलसीदास जी श्रीराम जी की स्तुति में कहते हैं, ‘‘जिनकी माया के वश में सम्पूर्ण जगत, ब्रह्मादिक देवता व असुर हैं, जिनकी सत्ता से भ्रम की भांति माया रूपी जगत सत्य-सा प्रतीत होता है एवं जिनके चरण ही संसार सागर से तर जाने की इच्छा करने वाले प्राणियों की एकमात्र नौकारूप हैं, उन आदि पुरुष परब्रह्म, माया से परे श्री राम रूपी भगवान श्री हरि को मैं नमस्कार करता हूं।’’

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