Edited By Niyati Bhandari,Updated: 12 Sep, 2025 02:00 PM

Top Popular Places for Pind Daan in India: हिंदू धर्म में जन्म से लेकर मृत्यु तक एक व्यक्ति को अपने जीवन में कई तरह के रीति-रिवाजों का पालन करना पड़ता है। सिर्फ मृत्यु तक ही नहीं, बल्कि हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार मृत्यु के बाद भी उसके साथ कई...
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Top Popular Places for Pind Daan in India: हिंदू धर्म में जन्म से लेकर मृत्यु तक एक व्यक्ति को अपने जीवन में कई तरह के रीति-रिवाजों का पालन करना पड़ता है। सिर्फ मृत्यु तक ही नहीं, बल्कि हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार मृत्यु के बाद भी उसके साथ कई रिवाज जुड़े रहते हैं। ऐसा ही एक रिवाज पिंडदान का भी होता है। कहा जाता है कि जब तक पितृपक्ष में परिवार के सदस्य अपने पितरों को तर्पण और पिंडदान नहीं करते, तब तक जीवन-मृत्यु के चक्र से उन्हें मुक्ति नहीं मिलती। हर साल पितृपक्ष के दौरान देश के कई शहरों में पिंडदान करने के लिए नदियों के किनारे लोग पहुंचते हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान श्रीराम ने अपने पिता राजा दशरथ का पिंडदान 3 जगहों पर किया था। पहला पिंडदान उन्होंने प्रयागराज में संगमतट पर, दूसरा काशी और तीसरा गया धाम में किया था। कहा जाता है कि इसके बाद से ही पितरों को पिंडदान करने का प्रचलन शुरू हुआ था।
पिंडदान के लिए महत्वपूर्ण तीर्थस्थल
गया
बिहार का एक महत्वपूर्ण शहर गया है। यहां पितृपक्ष मेले में पितरों को पिंडदान और तर्पण करने के लिए दूर-दूर से लोग पहुंचते हैं। गया में फल्गु नदी के तट पर पिंडदान की व्यवस्था की जाती है। लोग पहले फल्गु नदी में डुबकी लगाकर खुद को पवित्र करते हैं और उसके बाद ब्राह्मणों द्वारा बताए तरीकों से अपने पितरों को पिंडदान की प्रक्रिया संपन्न करते हैं। कहा जाता है कि यहां पिंडदान करते समय मरे हुए संबंधियों के अपने आस-पास होने का अहसास भी होता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान राम ने भी अपने पिता दशरथ का तीसरा पिंडदान गया में ही किया था।
बद्रीनाथ धाम
बद्रीनाथ में अलकनंदा का तट पिंडदान करने के लिए एक महत्वपूर्ण जगह माना जाता है। यहां ब्रह्म कपाल घाट पर पिंडदान समारोह का आयोजन किया जाता है। पहले लोग नदी के पवित्र जल में डुबकी लगाते हैं और फिर ब्राह्मणों द्वारा बताए गए तरीकों से मंत्र जाप करते हुए अपने पूर्वजों को पिंडदान करते हैं, ताकि उनकी दिवंगत आत्मा को शांति और मुक्ति मिल सके।

वाराणसी
पितृृपक्ष के दौरान पिंडदान करने की भारत में सबसे पवित्र जगह वाराणसी का गंगा घाट माना जाता है। पिंडदान के लिए यहां स्थानीय पंडित पूरे विधि-विधान के साथ अनुष्ठान आयोजित व संपन्न करवाते हैं। वाराणसी एक ऐसी जगह है, जहां जीवन और मृत्यु दोनों को ही पवित्र व शुभ माना जाता है।

पुष्कर
पुष्कर में भगवान ब्रह्मा का एकमात्र मंदिर है और पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान ब्रह्मा का जन्म भगवान विष्णु की नाभि से हुआ था। इस वजह से यह माना जाता है कि पुष्कर की पवित्र झील भी भगवान विष्णु की नाभि से ही निकली है। इस झील के आसपास कुल 52 घाट हैं और इनमें से कई घाटों पर आश्विन माह की कृष्णपक्ष से शुरू होने वाले पितृपक्ष में पिंडदान समारोह आयोजित किया जाता है।

उज्जैन
भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंग में से एक महाकाल की नगरी उज्जैन में पिंडदान करने का अपना अलग महत्व है। उज्जैन के भैरवगढ़ क्षेत्र में क्षिप्रा नदी के तट पर पिंडदान समारोह का आयोजन किया जाता है। इस स्थान पर एक बरगद का पेड़ है, जिसके बारे में कहा जाता है कि उसे माता पार्वती ने अपने हाथों से लगाया था। मुगल शासकों ने इस पेड़ को नष्ट करने का प्रयास भी किया था लेकिन विफल रहे। मान्यता है कि उज्जैन में ही भगवान कार्तिकेय का मुंडन हुआ था। पौराणिक कथाओं के अनुसार महाभारत के युद्ध के बाद ज्येष्ठ पांडव युधिष्ठिर ने उज्जैन में ही अपने कुल के सभी भाई-बंधुओं को पिंडदान किया था।

अयोध्या
रामजन्म भूमि होने की वजह से अयोध्या पिंडदान करने के सबसे पवित्र स्थानों में एक माना जाता है। अयोध्या में पवित्र सरयू नदी के किनारे भात कुंड में ब्राह्मणों की देख-रेख में पिंडदान समारोह का आयोजन किया जाता है। पूरे पिंडदान अनुष्ठान के दौरान ब्राह्मण ही अध्यक्ष की भूमिका निभाते हैं।

हरिद्वार
हरिद्वार भारत के सबसे पवित्र तीर्थ स्थलों में से एक है। यह गंगा के तट पर बसा हुआ एक खूबसूरत शहर है। शाम की आरती के समय तो इसकी खूबसूरती और भी ज्यादा बढ़ जाती है। एक सामान्य मान्यता है कि यहां गंगा में स्नान करने से सभी पाप धुल जाते हैं और यदि यहां किसी का अंतिम संस्कार किया जाता है, तो उसकी आत्मा स्वर्ग पधारती है। माना जाता है कि हरिद्वार के नारायणी शिला पर तर्पण करने से पितरों को मोक्ष प्राप्ति होती है, पुराणों में भी इसका वर्णन किया गया है। पिंडदान समारोह, यदि यहां आयोजित किया जाता है तो दिवंगत की आत्मा को स्थायी शांति मिलती है।
मथुरा
यह एक पवित्र तीर्थ शहर और पिंडदान समारोहों के लिए पसंदीदा स्थानों में से एक भी है। इस तरह के अनुष्ठान यमुना नदी के तट पर स्थित बोधिनी तीर्थ, विश्रंती तीर्थ और वायु तीर्थ पर आयोजित किए जाते हैं। सात पिंड या चावल में मिक्स गेहूं के आटे से बने गोले, शहद और दूध के साथ मृतक और पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए प्रसाद के रूप में तैयार किए जाते हैं और इन्हें मंत्रों के जाप के दौरान चढ़ाया जाता है। मथुरा में तर्पण कर लोग अपने पूर्वजों को प्रसन्न करते हैं।
प्रयागराज
यहां से जुड़ी एक लोकप्रिय धारणा है कि गंगा-यमुना-सरस्वती नदियों के संगम पर प्रयागराज, जिसे पहले इलाहाबाद के नाम से जाना जाता था, में पैतृक संस्कार करने से, मृत्यु के बाद एक आत्मा को जिन कष्टों से गुजरना पड़ता है, वे यहां पिंडदान करने से दूर हो जाते हैं। यहां के जल में स्नान करने मात्र से पाप धुल जाते हैं और आत्मा जन्म-मरण के चक्र से मुक्त हो जाती है।
जगन्नाथ पुरी
ओडिशा में बंगाल की खाड़ी के समुद्र तट पर स्थित पुरी जगन्नाथ मंदिर और वार्षिक रथ यात्रा के लिए बेहतर जानी जाती है। पुरी महानदी और भार्गवी नदी के तट पर स्थित है और इसलिए संगम को पवित्र और पिंडदान समारोह का आदर्श स्थान माना जाता है। जगन्नाथ पुरी इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह प्रमुख चार धाम तीर्थ स्थलों में से एक है। अत: सभी कोणों से यहां किया गया पिंडदान परिवार के सदस्यों को पुण्य और आत्मा को शांति प्रदान करता है। हालांकि, यहां के समुद्र तट, प्राचीन स्मारक और स्थानीय भोजन भी लोगों को बेहद पसंद आते हैं।
महालया के दिन का महत्व
यूं तो इन सभी जगहों पर पिंडदान पूरे साल चलता रहता है, लेकिन हिंदू कैलेंडर के अनुसार आश्विन कृष्णपक्ष की 1 तारीख से अमावस्या तक किया गया पिंडदान एवं पितृतर्पण काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। अमावस्या के दिन को महालया भी कहा जाता है, जिसके अगले दिन से पितृपक्ष समाप्त होकर देवीपक्ष (नवरात्रि) की शुरुआत होती है। खासतौर पर महालया के दिन किया गया पितृतर्पण विशेष महत्व रखता है।