Varuthini Ekadashi 2022: ज़रूर सुनें वरुथिनी एकादशी व्रत कथा, व्रत होगा सफल

Edited By Jyoti,Updated: 25 Apr, 2022 05:33 PM

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वैशाख माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को वरुथिनी एकादशी का व्रत रखा जाता है। इस साल 26 अप्रैल को यानि कि आज वरुथिनी एकादशी का व्रत किया जाएगा। कहते हैं कि जो लोग किसी कारण

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वैशाख माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को वरुथिनी एकादशी का व्रत रखा जाता है। इस साल 26 अप्रैल को यानि कि आज वरुथिनी एकादशी का व्रत किया जाएगा। कहते हैं कि जो लोग किसी कारण से एकादशी का व्रत नहीं कर पाते। उन्हें एकादशी की व्रत कथा ज़रूर सुननी चाहिए। मान्यता है कि जो भी व्यक्ति इस दिन कथा को सुन या पढ़ भी लेता है।उस पर श्री हरि की कृपा बनी रहती है। साथ ही कष्टों से मुक्ति मिलती है। तो चलिए जानते हैं वरुथिनी एकादशी की व्रत कथा के बारे में-
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एक बार धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से कहा कि आप वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी के महत्व के बारे में बताएं और इस व्रत की कथा क्या है, इसके बारे में भी सुनाएं। तब भगवान श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर को वरुथिनी एकादशी व्रत की कथा के बारे में बताया। प्राचीन काल में मान्धाता नाम का एक राजा था। जो नर्मदा नदी के तट पर राज्य करता था। वह एक तपस्वी तथा दानशील राजा था। राजा की रुचि हमेशा धार्मिक कार्यों में लगी रहती थी साथ ही वह हमेशा पूजा-पाठ में लीन रहता था। एक दिन वह जंगल में तपस्या करने के लिए चला गया। वह जंगल में एक स्थान पर तपस्या करने लगा। तभी अचानक वहां एक भालू आया। वह राजा मान्धाता के पैर को चबाने लगा, लेकिन राजा तनिक भी भयभीत नहीं हुआ और तपस्या में लीन रहा। भालू राजा को घसीटने लगा और जंगल के अंदर लेकर चला गया।
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भालू के इस व्यवहार से राजा बहुत डर गया था। उसने मन ही मन भगवान विष्णु से रक्षा की प्रार्थना की। भक्त की पुकार सुनकर भगवान विष्णु वहां प्रकट हुए और भालू को मारकर राजा के प्राण बचाए। भालू ने राजा का पैर खा लिया था, जिस कारण राजा बहुत दुखी था। तब भक्त को दुखी देखकर भगवान विष्णु ने उससे कहा 'हे वत्स!' तुम दुखी मत हो। इसका एक उपाय है। तुम मथुरा जाओ और वहां वरूथिनी एकादशी का व्रत रखकर मेरी वराह अवतार मूर्ति की आराधना करो। उस व्रत के प्रभाव से तुम पुनः सुदृढ़ अंगों वाले हो जाओगे। तुम्हारे पूर्व जन्म के पाप कर्म के कारण ही भालू ने तुम्हारा पैर खा लिया। 
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प्रभु की बातें सुनकर राजा ने मथुरा जाकर श्रद्धापूर्वक वरूथिनी एकादशी का व्रत पूरा किया। वहां पर उसने वराह अवतार मूर्ति की विधि विधान से पूजा की और फलाहार करते हुए व्रत किया। वरूथिनी एकादशी व्रत के प्रभाव से राजा फिर से सुंदर और संपूर्ण अंगों वाला हो गया। मृत्यु के पश्चात उसे स्वर्ग की प्राप्ति हुई। इस प्रकार जिस तरह से वरुथिनी एकादशी व्रत के प्रभाव से राजा मान्धाता को कष्टों से मुक्ति प्राप्त हुई उसी प्रकार से यह व्रत भक्तों को कष्टों से मुक्ति दिलाने वाला और मोक्ष प्रदान करने वाला है। 

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