वट सावित्री: इस विधि से करें व्रत, दांपत्य संबंध होंगे मधुर

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 14 May, 2018 09:44 AM

vat savitri method of fast

भारतीय समाज में अगर नारी किसी को सर्वाधिक महत्व देती है तो वह उसका पति है। पति की लम्बी आयु के लिए जिस प्रकार भारतीय नारी करवा चौथ का व्रत रखती है, उसी प्रकार पति की लम्बी आयु की कामना, उसकी सुख-समृद्धि, उसके जीवन और वैध्व्य दोष की शांति के लिए वट...

भारतीय समाज में अगर नारी किसी को सर्वाधिक महत्व देती है तो वह उसका पति है। पति की लम्बी आयु के लिए जिस प्रकार भारतीय नारी करवा चौथ का व्रत रखती है, उसी प्रकार पति की लम्बी आयु की कामना, उसकी सुख-समृद्धि, उसके जीवन और वैध्व्य दोष की शांति के लिए वट सावित्री व्रत रखती है। यह व्रत ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या को किया जाता है।


वटवृक्ष बरगद के पेड़ को बोलते हैं। बरगद का पेड़ काफी बड़ा होता है, उसमें बहुत सारी शाखाएं होती हैं, जो पृथ्वी को स्पर्श करती हैं। ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वास भी बरगद के पेड़ में माना जाता है। शास्त्रों और स्कन्दपुराण के अनुसार ‘अश्वत्थरूपी विष्णु : स्याद्रूपी शिवो यत:’ अर्थात् पीपल रूपी विष्णु एवं जटारूपी भगवान शिव होते हैं। विष्णु का पत्तों में, भगवान शिव का शाखाओं में और ब्रह्मा का बरगद की जड़ों में वास है। पाराशर मुनि के अनुसार "वट मूले तोपवासा’ वटवृक्ष" बरगद दीर्घायु और अमरत्व का प्रतीक है। इसके नीचे तप करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। भगवान बुद्ध को भी वट वृक्ष के नीचे ही ज्ञान प्राप्त हुआ था। 


बरगद के पेड़ का संबंध शनि से भी है और शनि न्यायप्रिय ग्रह है। बरगद, पीपल और शमी को शास्त्रों में पवित्र वृक्ष बताया गया है और इन वृक्षों का बहुत महत्व भी है। बरगद के वृक्ष से जो बड़ी-बड़ी लताएं निकलती हुई फैली रहती हैं, वे भगवान शिव की जटाएं ही मानी जाती हैं। 


भगवान श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण ने भी प्रयाग में वट वृक्ष के नीचे ही विश्राम किया, इसलिए इसका महत्व और अधिक बढ़ गया। विवाहित महिलाएं बरगद के पेड़ की पूजा अपने पति की लंबी आयु के लिए करती हैं और जिन कन्याओं के विवाह में बार-बार विघ्न आ रहा है, वे भी बरगद के पेड़ की पूजा कर सकती हैं उसको दूध चढ़ाकर अपने लिए वर की प्रार्थना कर सकती हैं।


सत्यवान और सावित्री की कथा ही वट सावित्री व्रत की कथा है, इस कथा को बरगद के पेड़ के नीचे ही करना चाहिए और साथ में मां सावित्री और यमराज की मिट्टी से मूर्ति बनाकर उनकी धूप-दीप, रोली-मौली, केसर, चंदन, पुष्पों आदि से पूजा करनी चाहिए। सावित्री की कथा कहें और सबको सुनाएं। यमराज की मिट्टी की प्रतिमा इसलिए बनानी चाहिए क्योंकि सावित्री ने यमराज से ही अपने पति सत्यवान को जीवित करने का वरदान प्राप्त कर, अपने पति को जीवित करवा लिया था। उस दिन ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष की ही तिथि थी। इस व्रत में विवाहित स्त्रियां प्रात: स्नान आदि से निवृत्त होकर स्वच्छ लाल वस्त्र या दुल्हन की तरह शृंगार करें, उसके बाद रोली-मौली,  फूल व फल अलग-अलग प्रकार के 5, मिष्ठान, पान के पत्ते, धूप, दीपक देसी घी का, हाथ वाला पंखा, अगरबत्ती, लीची, एक दिन पहले चने भिगो लें, सुपारी, सैंट, पताशे, एक पानी वाला नारियल, दूर्वा, सिंदूर, अक्षत, सवा मीटर लाल कपड़ा बिना सिला हुआ और शृंगार का सामान आदि एक स्टील अथवा कांसे की थाली में लें या एक लकड़ी की टोकरी में रख लें और साथ में एक लोटा जल भी तथा श्रद्धानुसार दक्षिणा लेकर बरगद के पेड़ के नीचे जाएं और पूजन करें एवं कथा कहें, उसके पश्चात् हाथ वाले पंखे से बरगद के पेड़ को हवा करें तत्पश्चात् मौली अथवा कच्चे सूत से बरगद की 7 बार परिक्रमा करते समय पति की लंबी आयु और परिवार में सुख-समृद्धि के लिए प्रार्थना करती हुई बांधें। पूजन के लिए सभी सामग्रियों को एक दिन पहले घर में ले आएं और बरगद को भोग लगाने के लिए घर का ही शुद्ध भोजन होना चाहिए। पूजा करने के पश्चात घर पर आकर पति के पैरों को जल से धोएं और आशीर्वाद प्राप्त करें। 

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