Yogini Ekadashi Katha: योगिनी एकादशी व्रत कथा पढ़ने से मिलेगी जीवन के हर श्राप से मुक्ति !

Edited By Updated: 20 Jun, 2025 06:46 AM

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Yogini Ekadashi 2025: सनातन पंचांग के अनुसार आषाढ़ मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को योगिनी एकादशी का व्रत आता है। जो 88 ब्राह्मणों को भोजन कराने के समान पुण्य प्रदान करता है। जिस कामना से कोई भक्त संकल्प करके योगिनी एकादशी का व्रत करता है, उसकी...

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Yogini Ekadashi 2025: सनातन पंचांग के अनुसार आषाढ़ मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को योगिनी एकादशी का व्रत आता है। जो 88 ब्राह्मणों को भोजन कराने के समान पुण्य प्रदान करता है। जिस कामना से कोई भक्त संकल्प करके योगिनी एकादशी का व्रत करता है, उसकी वह कामना जहां बहुत जल्दी पूरी हो जाती है, वहीं जीव के सभी पापों एवं विभिन्न प्रकार के पातकों से भी छुटकारा मिलता है। किसी के दिए श्राप से मुक्ति पाने के लिए यह व्रत कल्पतरू के समान है। व्रत के प्रभाव से हर प्रकार के चर्म रोगों की निवृत्ति हो जाती है। एकादशी व्रत में रात्रि जागरण की अत्यधिक महिमा है। स्कंदपुराण के अनुसार जो लोग रात्रि जागरण करते समय वैष्णवशास्त्र का पाठ करते हैं, उनके करोड़ों जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं।     

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Yogini Ekadashi: अपनी एकादश इन्द्रियों को भगवत सेवा में लगाना ही वास्तव में एकादशी व्रत है। ‘शरणागति इज द सोल्यूशन ऑफ आल प्राब्लम्स’ इसलिए भगवान की शरण में जाना ही सच्ची प्रभु भक्ति एवं नियम है। एकादशी का व्रत तब तक सम्पूर्ण नहीं होता जब तक द्वादशी को उसका पारण विधिवत ढंग से न किया जाए। द्वादशी तिथि को अपनी क्षमता के अनुसार ब्राह्मणों को दान देकर व्रत का पारण करना शास्त्र सम्मत है। एकादशी के दिन भगवान विष्णु के रूप का धूप, दीप, नेवैद्य, फूल एवं फलों सहित पवित्र भाव से पूजन करना चाहिए। सारा दिन अन्न का सेवन किए बिना सत्कर्म में अपना समय बिताना चाहिए तथा भूखे को अन्न तथा प्यासे को जल पिलाना चाहिए। व्रत में केवल फलाहार का विधान है। रात को मंदिर में दीपदान करके प्रभु नाम का संकीर्तन करते हुए जागरण करें। 

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Yogini Ekadashi Katha योगिनी एकादशी व्रत कथा: पद्मपुराण के अनुसार स्वर्गलोक में इन्द्र की अलकापुरी में यक्षों का राजा कुबेर रहता था। शिवभक्त कुबेर के लिए प्रतिदिन हेम नामक माली अद्र्धरात्रि को फूल लेने मानसरोवर जाता और प्रात: राजा कुबेर के पास पहुंचाता था। एक दिन हेम माली रात्रि को फूल तो ले आया परंतु वह अपनी पत्नी विशालाक्षी के प्रेम के वशीभूत होकर घर विश्राम के लिए ही रुक गया। 

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प्रात: राजा कुबेर के पास भगवान शिव की पूजा करने के लिए फूल न पहुंचे तो राजा ने अपने सेवकों को कारण बताने के लिए हेम माली को बुलाकर लाने का आदेश दिया। 

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हेम माली को राजा कुबेर ने क्रोध में आकर श्राप दे दिया कि तुझे स्त्री वियोग सहन करना पड़ेगा तथा मृत्युलोक में जाकर कोढ़ी होना पड़ेगा। कुबेर के श्राप से हेम माली स्वर्ग से पृथ्वी पर जा गिरा और उसी क्षण कोढ़ी हो गया। भूख-प्यास से दुखी होकर भटकते हुए एक दिन वह मार्कंडेय ऋषि के आश्रम में पहुंचा तथा राजा कुबेर से मिले श्राप के बारे में उन्हें बताया। हेम माली की सारी विपदा को सुनते हुए मार्कंडेय ऋषि ने उसे आषाढ़ मास की योगिनी एकादशी का व्रत सच्चे भाव तथा विधि-विधान से करने के लिए कहा। हेम माली ने व्रत किया तथा उसके प्रभाव से उसे राजा कुबेर के श्राप से मुक्ति मिली।

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