Vat Savitri Vrat 2019ः इस व्रत से होती है सौभाग्य की प्राप्ति

Edited By Lata,Updated: 02 Jun, 2019 01:04 PM

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हर साल वट सावित्री का पर्व अमावस्या के दिन मनाया जाता है और इस बार यह त्यौहार ज्येष्ठ माह की अमावस्या यानि कि कल 03 जून को मनाया जा रहा है।

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हर साल वट सावित्री का पर्व अमावस्या के दिन मनाया जाता है और इस बार यह त्यौहार ज्येष्ठ माह की अमावस्या यानि कि कल 03 जून को मनाया जा रहा है। कहते हैं कि यह व्रत औरतें अपने पतियों की लम्बी उम्र के लिए रखती हैं। मान्यता है कि वट वृक्ष की जड़ों में ब्रह्मा, तने में भगवान विष्णु व डालियों व पत्तियों में भगवान शिव का निवास स्थान माना जाता है। इस व्रत में महिलाएं वट वृक्ष की पूजा करती हैं। सती सावित्री की कथा सुनने व पढ़ने से सौभाग्यवती महिलाओं की अखंड सौभाग्य की कामना पूरी होती है। आज जानते हैं इस व्रत की कथा के बारे में।
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पौराणिक कथा के अनुसार मद्र देश के राजा अश्वपति को पत्नी सहित सन्तान के लिए सावित्री देवी का विधिपूर्वक व्रत तथा पूजन करने के पश्चात पुत्री सावित्री की प्राप्त हुई। फिर सावित्री के युवा होने पर एक दिन अश्वपति ने मंत्री के साथ उन्हें वर चुनने के लिए भेजा। जब सत्यवान को वर रूप में चुनने के बाद आईं तो उसी समय देवर्षि नारद ने सभी को बताया कि महाराज द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान की शादी के 12 वर्ष पश्चात मृत्यु हो जाएगी। इसे सुनकर राजा ने पुत्री सावित्री से किसी दूसरे वर को चुनने के लिए कहा मगर सावित्री नहीं मानी। नारदजी से सत्यवान की मृत्यु का समय ज्ञात करने के बाद वह पति व सास-ससुर के साथ जंगल में रहने लगीं। 
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इसके बाद नारदजी की बताए समय के कुछ दिनों पूर्व से ही सावित्री ने व्रत रखना शुरू कर दिया। ऐसे जब यमराज उनके पति सत्यवान को साथ लेने आए तो सावित्री भी उनके पीछे चल दीं। उन्हें आता देख यमराज ने कहा कि हे पतिव्रता नारी! पृथ्वी तक ही पत्नी अपने पति का साथ देती है। अब तुम वापस लौट जाओ। उनकी इस बात पर सावित्री ने कहा- जहां मेरे पति रहेंगे मुझे उनके साथ रहना है। यही मेरा पत्नी धर्म है।
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इस पर यमराज ने उनकी धर्म निष्ठा से प्रसन्न होकर कहा कि, मैं तुम्हें तीन वर देता हूं। बोलो तुम कौन-कौन से तीन वर लोगी। सावित्री ने उन्होंने सबसे पहले अपने नेत्रहीन सास-ससुर के आंखों की ज्योति और दीर्घायु की कामना की। ससुर का खोया हुआ राज्य वापस मांगा एवं अपने पति सत्यवान के सौ पुत्रों की मां बनने का वर मांगा। सावित्री के यह तीनों वरदान सुनने के बाद यमराज ने उसे आशीर्वाद दिया और कहा- तथास्तु! ऐसा ही होगा। ऐसे सावित्री के पतिव्रत धर्म और विवेकशील होने के कारण उन्होंने न केवल अपने पति के प्राण बचाए, बल्कि अपने समस्त परिवार का भी कल्याण किया।

तभी से वट सावित्री अमावस्या और वट सावित्री पूर्णिमा के दिन वट वृक्ष का पूजा-अर्चना करने का विधान है। यह व्रत करने से सौभाग्यवती महिलाओं की मनोकामना पूर्ण होती है और उनका सौभाग्य अखंड रहता है।

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