Durlabh Prasad Ki Dusri Shadi Review: हंसी, इमोशन और रिश्तों की सादगी से सजी कहानी

Updated: 20 Dec, 2025 05:31 PM

durlabh prasad ki dusri shadi review in hindi

यहां पढ़ें कैसी है फिल्म दुर्लभ प्रसाद की दूसरी शादी

फिल्म: दुर्लभ प्रसाद की दूसरी शादी (Durlabh Prasad Ki Dusri Shadi) 
कलाकार: संजय मिश्रा (Sanjay Mishra), महिमा चौधरी (Mahima Chaudhary), व्योम यादव (Vyom Yadav), पलक लालवानी (Palak Lalwani), श्रीकांत वर्मा (Shrikant Verma), प्रवीण सिंह सिसोदिया (Praveen Singh Sisodia)
निर्देशक: सिद्धांत राज सिंह (Siddhant Raj Singh)
रेटिंग: 3*


Durlabh Prasad Ki Dusri Shadi: रोमांस, सिचुएशनल कॉमेडी और पारिवारिक भावनाओं का खूबसूरत मेल है ‘दुर्लभ प्रसाद की दूसरी शादी’। यह फिल्म बिना किसी भारी-भरकम संदेश या उपदेश के दर्शकों को मुस्कुराने का मौका देती है। संजय मिश्रा और महिमा चौधरी की सधी हुई परफॉर्मेंस इस रोमांटिक कॉमेडी-फैमिली ड्रामा को खास बनाती है। बनारस की पृष्ठभूमि में बुनी गई यह कहानी रिश्तों, अकेलेपन और दोबारा जीवन को अपनाने की हिम्मत पर आधारित है।

कहानी
कहानी की शुरुआत बनारस के घाटों से होती है, जहां अधेड़ उम्र के नाई दुर्लभ प्रसाद (संजय मिश्रा) छतरी के नीचे बैठकर बच्चे का मुंडन करते नजर आते हैं। पत्नी को बेटे के जन्म के बाद खो चुके दुर्लभ ने दोबारा शादी नहीं की। उनके घर में सिर्फ तीन पुरुष हैं खुद दुर्लभ, उनका जवान बेटा मुरली (व्योम यादव) और साला मंचू (श्रीकांत वर्मा), जो मांगलिक होने के कारण अब तक कुंवारा है।

कहानी में मोड़ तब आता है जब मुरली का प्यार शहर के दबंग नेता ब्रज नारायण भारती उर्फ दद्दा (प्रवीण सिंह सिसोदिया) की बेटी महक (पलक लालवानी) से हो जाता है। दोनों शादी करना चाहते हैं, लेकिन शर्त सामने आती है जिस घर में औरत नहीं, वहां बेटी नहीं जाएगी।

यहीं से मुरली अपने पिता की दूसरी शादी कराने का फैसला करता है। 55 साल के दुर्लभ के लिए दुल्हन ढूंढने की कोशिशें पंडित, रिश्तेदार, अखबार के इश्तेहार सब कुछ कहानी को मजेदार मोड़ देते हैं। इसी दौरान दुर्लभ की मुलाकात होती है अमेरिका से लौटी, आत्मनिर्भर और आधुनिक सोच वाली बबिता (महिमा चौधरी) से। इसके बाद फिल्म कॉमेडी, इमोशन और रिश्तों के सवालों के बीच आगे बढ़ती है।

अभिनय
फिल्म की जान हैं संजय मिश्रा। दुर्लभ प्रसाद के किरदार में वे अपनी सहज कॉमिक टाइमिंग और भावनात्मक गहराई से हर सीन को जीवंत बना देते हैं। कई जगह उनका अभिनय हंसाता है तो कई जगह चुपचाप दिल को छू जाता है।

महिमा चौधरी बबिता के रोल में आत्मविश्वासी और सधी हुई नजर आती हैं। लंबे समय बाद उन्हें ऐसे मजबूत और परिपक्व किरदार में देखना सुखद अनुभव है। संजय मिश्रा और महिमा की केमिस्ट्री मासूम, संतुलित और प्रभावशाली है।

श्रीकांत वर्मा अपने चिर-परिचित अंदाज़ में ठहाके बटोरते हैं।
प्रवीण सिंह सिसोदिया दबंग लेकिन यथार्थवादी पिता के रूप में प्रभाव छोड़ते हैं।
व्योम यादव ने मुरली के किरदार में ईमानदार प्रयास किया है, हालांकि कुछ जगह अभिनय थोड़ा बनावटी लगता है।
पलक लालवानी अपने सीमित रोल में संतुलित दिखती हैं।

निर्देशन
निर्देशक सिद्धांत राज सिंह ने बनारस की आत्मा को बिना बनावटीपन के पर्दे पर उतारने की कोशिश की है। घाट, गलियां, बनारसी बोली और स्थानीय रंग-ढंग फिल्म को वास्तविक और विश्वसनीय बनाते हैं। सिनेमैटोग्राफी और कॉस्ट्यूम डिजाइन कहानी के माहौल को और मजबूत करते हैं। संगीत कहानी के साथ बहता है, हालांकि बैकग्राउंड स्कोर को और प्रभावी बनाया जा सकता था।

‘दुर्लभ प्रसाद की दूसरी शादी’ एक सादा, दिल से जुड़ने वाली और सुकून देने वाली फिल्म है, जो हंसी के साथ रिश्तों की अहमियत भी समझाती है। अगर आप हल्की-फुल्की, पारिवारिक और भावनात्मक फिल्म देखना चाहते हैं, तो यह फिल्म एक अच्छा विकल्प है।

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