Edited By PTI News Agency,Updated: 17 Aug, 2022 08:42 PM
मुंबई, 17 अगस्त (भाषा) बंबई उच्च न्यायालय ने महाराष्ट्र के पालघर जिले में उपयुक्त सड़क नहीं होने के चलते एक गर्भवती आदिवासी महिला के समय पर अस्पताल नहीं पहुंच सकने और प्रसव से पहले उसके गर्भ में ही जुड़वा शिशु की मौत हो जाने पर बुधवार को...
मुंबई, 17 अगस्त (भाषा) बंबई उच्च न्यायालय ने महाराष्ट्र के पालघर जिले में उपयुक्त सड़क नहीं होने के चलते एक गर्भवती आदिवासी महिला के समय पर अस्पताल नहीं पहुंच सकने और प्रसव से पहले उसके गर्भ में ही जुड़वा शिशु की मौत हो जाने पर बुधवार को चिंता जताई।
मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति एम एस कार्णिक ने 2006 में दायर की गई जनहित याचिकाओं के एक समूह पर सुनवाई करते हुए यह कहा। याचिकाओं में इस बात का जिक्र किया गया था कि पूर्वी महाराष्ट्र के मेलघाट क्षेत्र में कुपोषण के चलते बच्चों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं की अधिक संख्या में मौत हो रही है।
सोमवार को, पालघर जिले मोखंडा से 26 वर्षीय एक आदिवासी महिला को एक पालकी(वैकल्पिक स्ट्रेचर) में अस्पताल ले जाना पड़ा।
महिला को सात महीने का गर्भ था और समय से पहले उसे प्रसव पीड़ा शुरू हो गई थी। उसे बाद में, मेन रोड से एक एंबुलेंस में खोडाला सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्र ले जाया गया। उसने मृत जुड़वा शिशु को जन्म दिया।
बुधवार को पीठ ने इस बात का जिक्र किया कि वह बच्चों, गर्भवती महिलाओं की मौत की संख्या और मृत शिशु के जन्म की संख्या नहीं घटने के तथ्य से चिंतित है।
मुख्य न्यायाधीश दत्ता ने कहा, ‘‘हमने आज अखबारों में पालघर की घटना के बारे में पढ़ा। महिला को एक पालकी में अस्पताल ले जाया गया और उसके अस्पताल पहुंचने से पहले शिशु की मौत हो चुकी थी।’’
उन्होंने कहा, ‘‘यह पालघर में हुआ...हम विषय की सुनवाई 2006 से कर रहे हैं और अब हम 2022 में हैं। 16 साल हो गये हैं...यह अदालत समय-समय पर निर्देश जारी करती रही है।’’
पीठ ने विषय की आगे की सुनवाई 12 सितंबर के लिए निर्धारित कर दी।
यह आर्टिकल पंजाब केसरी टीम द्वारा संपादित नहीं है, इसे एजेंसी फीड से ऑटो-अपलोड किया गया है।