आज गणेश चतुर्थी: इस पाठ का जाप छ: मास में देगा इच्छित फल, एक वर्ष में पूर्ण सिद्धियां

Edited By ,Updated: 25 Apr, 2016 09:47 AM

ganesh chaturthi

आज गणेश चतुर्थी पर संकट नाशन गणेश स्तोत्रम् का पाठ करने से मनचाही सिद्धियों की प्राप्ति की जा सकती है। नारद जी कहते हैं," पार्वती

आज गणेश चतुर्थी पर संकट नाशन गणेश स्तोत्रम् का पाठ करने से मनचाही सिद्धियों की प्राप्ति की जा सकती है। नारद जी कहते हैं," पार्वती नंदन देव श्री गणेश जी को सिर झुकाकर प्रणाम करें और फिर अपनी आयु, कामना और अर्थ की सिद्धि के लिए उन भक्त निवास का नित्य प्रति स्मरण करें।"
 
प्रणम्य शिरसा देवं गौरीपुत्रं विनायकम्
भक्तावासं स्मरेन्नित्यमायु: कामार्थसिद्धये।।1।।
 
प्रथमं वक्रतुंड च एकदन्तं द्वितीयकम्।
तृतीयं कृष्णापिंङ्गाक्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम्।।2।।
 
लम्बोदरं पंचमं च षष्ठं विकटमेव च। 
सप्तमं विघ्नराजं च धूम्रवर्णं तथाष्टमम्।।3।।
 
नवमं भालचंद्र च दशमं तु विनायकम्।
एकादशं गणपङ्क्षत द्वादशं तु गजानम्।।4।।
 
पहला वक्रतुंड (टेढ़े मुख वाले), दूसरा एकदंत (एक दांत वाले), तीसरा कृष्णपिंगाक्ष (काली और भूरी आंखों वाले), चौथा गजवक्त्र (हाथी के से मुख वाले)।।2।।

पांचवां लम्बोदर (बड़े पेट वाले), छठा विकट (विकराल), सातवां विघ्नराजेंद्र (विघ्नों का शासन करने वाले राजाधिराज) तथा आठवां धूम्रवर्ण (धूसरवर्ण वाले)।।3।।
 
नौवां भालचंद्र (जिनके ललाट पर चंद्रमा सुशोभित है), दसवां विनायक, ग्यारहवां गणपति और बारहवां गजानन।।4।।

द्वादशैतानि नामानि त्रिसंध्यं य: पठेन्नर:। न च विघ्नभयं तस्य सर्वसिद्धकरं प्रभो।।5।।
 
इन बारह नामों का जो पुरुष (प्रात: मध्याह्न और सायंकाल) तीनों संध्याओं में पाठ करता है, हे प्रभो! उसे किसी प्रकार के विघ्न का भय नहीं रहता, इस प्रकार का स्मरण सब प्रकार की सिद्धियां देने वाला है।।5।।
 
विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम्।।
पुत्रार्थी लभते पुत्रान्मोक्षार्थी लभते गतिम्।।6।।
 
इससे विद्याभिलाषी विद्या, धनाभिलाषी धन, पुत्रेच्छु पुत्र तथा मुमुक्षु मोक्ष गति प्राप्त कर लेता  है।।6।।
 
जपेद् गणपतिस्तोत्रं षड्भिर्मासै: फलं लभेत्।
संवत्सरेण सिद्धिं च लभते नात्र संशय:।।7।।
 
 इस गणपति स्तोत्र का जप करे तो छ: मास में इच्छित फल प्राप्त हो जाता है तथा एक वर्ष में पूर्ण सिद्धि प्राप्त हो जाती है इसमें किसी प्रकार का संदेह नहीं है।।7।।
 
अष्टभ्यो ब्राह्मणेभ्यश्च लिखित्वा य:समर्पयेत्।
तस्य विद्या भवेत्सर्वा गणेशस्य प्रसादत:।।8।।
 

जो पुरुष इसे लिखकर आठ ब्राह्मणों को समर्पण करता है, गणेश जी की कृपा से उसे सब प्रकार की विद्या प्राप्त हो जाती है। 

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