बॉम्बे HC बोला-पत्नी के खिलाफ क्रूरता के लिए IPC की धारा को कंपाउंडेबल अपराध बनाने पर विचार करे केंद्र

Edited By Seema Sharma,Updated: 12 Oct, 2022 03:39 PM

center to consider making compoundable offenses bombay high court

बंबई हाईकोर्ट ने केंद्र से कहा कि वह पति या उसके संबंधियों द्वारा किसी महिला का उत्पीड़न या उसके साथ क्रूरता संबंधी भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 498ए के तहत मामलों को शमनीय अपराध

नेशनल डेस्क: बंबई हाईकोर्ट ने केंद्र से कहा कि वह पति या उसके संबंधियों द्वारा किसी महिला का उत्पीड़न या उसके साथ क्रूरता संबंधी भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 498ए के तहत मामलों को शमनीय अपराध (compoundable offense) बनाने पर विचार करे, ताकि संबंधित पक्ष अदालत में आए बिना समझौता कर सकें।

 

जस्टिस रेवती मोहिते डेरे और जस्टिस पृथ्वीराज चव्हाण की खंडपीठ ने 23 सितंबर को पारित एक आदेश में कहा कि IPC की धारा 498ए को शमनीय बनाने की महत्ता को ‘‘नजरअंदाज नहीं किया जा सकता''। उसने कहा कि यह अपराध अशमनीय होने के कारण सहमति के आधार पर मामलों को रद्द किए जाने का अनुरोध करने वाली न्यूनतम 10 याचिकाओं पर रोजाना सुनवाई होती है।

 

इस फैसले की प्रति बुधवार को उपलब्ध कराई गई। अदालत ने पुणे के एक थाने में 2018 में एक व्यक्ति, उसकी बहन एवं मां के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द किए जाने का अनुरोध करने वाली याचिका पर यह फैसला सुनाया। व्यक्ति की पत्नी ने अपने पति और ससुराल वालों पर उत्पीड़न का आरोप लगाया था। अशमनीय अपराध होने पर यदि पक्षकार मामले का निपटारा करना चाहते हैं, तो आरोपी को मामला खारिज कराने के लिए हाईकोर्ट जाना पड़ता है। आदेश में कहा गया है कि यदि धारा 498ए को अदालत की अनुमति से शमनीय अपराध बना दिया जाता है, तो इससे न केवल पक्षकारों को होने वाली समस्याओं से बचा जा सकेगा, बल्कि हाईकोर्ट का कीमती समय भी बचेगा।

 

हाईकोर्ट ने कहा कि धारा 498ए के तहत मामले इस प्रकृति के नहीं होते कि मजिस्ट्रेट उक्त अदालत की अनुमति से उनमें समझौता न करा सकें। पीठ ने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल अनिल सिंह को निर्देश दिया कि वह संबंधित केंद्रीय मंत्रालय के समक्ष इस मामले को जल्द से जल्द उठाएं। याचिकाकर्ता ने अदालत से कहा कि उन्होंने आपसी रजामंदी से मामला निपटा लिया है और शिकायतकर्ता को 25 लाख रुपए देने एवं तलाक लेने पर सहमति जताई है। शिकायतकर्ता ने भी अपने हलफनामे में कहा कि वह प्राथमिकी रद्द करने का अनुरोध करने वाली याचिका का विरोध नहीं करती। इसके बाद अदालत ने प्राथमिकी को खारिज कर दिया।

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