सामने आया दिल्ली पुलिस का मानवीय चेहरा, बुजुर्ग कैंसर मरीज पिता की तरह रखा ख्याल, किया अंतिम संस्कार

Edited By Yaspal,Updated: 27 Apr, 2020 11:41 PM

he human face of delhi police came out

दिल्ली पुलिस के दो हेड कांस्टेबलों ने लॉकडाउन के दौरान लगभग एक हफ्ते तक कैंसर मरीज श्याम मुरारी कपूर (78) की बेटों की तरह सेवा की। उनकी रविवार को पश्चिमी दिल्ली के हरि नगर में मृत्यु हो गयी। दोनों पुलिसकर्मियों ने अकेले रहने वाले कपूर को इलाज के लिए...

नई दिल्लीः दिल्ली पुलिस के दो हेड कांस्टेबलों ने लॉकडाउन के दौरान लगभग एक हफ्ते तक कैंसर मरीज श्याम मुरारी कपूर (78) की बेटों की तरह सेवा की। उनकी रविवार को पश्चिमी दिल्ली के हरि नगर में मृत्यु हो गयी। दोनों पुलिसकर्मियों ने अकेले रहने वाले कपूर को इलाज के लिए अस्पताल जाने में मदद की, उन्हें दवाइयां दीं और उनके प्रियजनों की अनुपस्थिति में उनके अंतिम संस्कार में भी सहायता की। अधिकारियों के अनुसार हरि नगर थाने में तैनात दो हेड कांस्टेबल - रमेश और जितेन्द्र 19 अप्रैल से कपूर की देखभाल कर रहे थे।

थाना प्रभारी ने उन्हें कपूर के खराब स्वास्थ्य की जानकारी दी और उन्हें उनकी ज़रूरतों को पूरा करने का काम सौंपा। उन्होंने कहा कि कपूर हरिनगर में अपने घर में अकेले रहते थे। उनके दो पुत्र - आलोक कपूर और अमित कपूर - आईटी पेशेवर हैं और वे क्रमशः हैदराबाद और लंदन में रहते हैं। पुलिस उपायुक्त (पश्चिम) दीपक पुरोहित ने कहा कि उनकी तबियत खराब होने पर दो हेड कांस्टेबलों ने उन्हें डीडीयू अस्पताल में पहुंचाया जहां उनकी कोरोना वायरस की भी जांच की गयी। हालांकि उनकी रिपोर्ट नकारात्मक रही। दोनों कांस्टेबल ने उनके अस्पताल में भर्ती होने की जानकारी उनकी भतीजी मुक्ता कपूर को दी। बाद में कपूर को गंगा राम अस्पताल में भर्ती कराया गया और तबियत में सुधार के बाद वह घर लौट आए।

डीसीपी ने कहा कि इसके बाद भी दोनों पुलिसकर्मी नियमित रूप से उनसे मिलते रहे और यह सुनिश्चित करते रहे कि उनकी दवाएं और अन्य बुनियादी सुविधाएं मिलती रहें। उनकी तबियत सुधर रही थी लेकिन 26 अप्रैल को उनकी मृत्यु हो गई। उनका शव मुक्ता कपूर को सौंप दिया गया और उनका अंतिम संस्कार दो हेड कांस्टेबल की सहायता से पंजाबी बाग के श्मशान घाट में किया गया। इस मौके पर कपूर के तीन रिश्तेदार भी मौजूद थे।

मुक्ता कपूर ने कहा कि दोनों पुलिसकर्मियों ने हमारी काफी मदद की। उन्होंने दवाओं की व्यवस्था की, भोजन उपलब्ध कराया, पोस्टमार्टम और अंतिम संस्कार तक में मदद की। हमारे दो रिश्तेदार ही अंतिम संस्कार के लिए आ सके। लेकिन पुलिसकर्मियों ने वहां सभी औपचारिकताओं और व्यवस्थाओं में मदद की।

 

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