गोवा और अंटार्कटिका का पिन कोड कैसे हो सकता है एक जैसा? जानिए इसके पीछे की अनोखी कहानी

Edited By Ashutosh Chaubey,Updated: 17 Jun, 2025 12:53 PM

how can goa and antarctica have the same pin code

अगर कोई आपसे कहे कि भारत का खूबसूरत गोवा और बर्फ से ढंका अंटार्कटिका एक ही पिन कोड इस्तेमाल करते हैं, तो आप शायद हँस पड़ें, लेकिन यह पूरी तरह सच है। दो बिल्कुल अलग-अलग जगहों के लिए एक जैसा पिन कोड कैसे संभव है? इसके पीछे है भारत की विज्ञान और डाक...

नेशनल डेस्क: अगर कोई आपसे कहे कि भारत का खूबसूरत गोवा और बर्फ से ढंका अंटार्कटिका एक ही पिन कोड इस्तेमाल करते हैं, तो आप शायद हँस पड़ें, लेकिन यह पूरी तरह सच है। दो बिल्कुल अलग-अलग जगहों के लिए एक जैसा पिन कोड कैसे संभव है? इसके पीछे है भारत की विज्ञान और डाक सेवा की एक अनोखी योजना, जो आपको हैरान कर देगी। जी हाँ, गोवा और अंटार्कटिका दोनों का पिन कोड 403001 है। सुनने में ये अजीब लगे, लेकिन इसके पीछे एक बेहद दिलचस्प कारण है, जो भारतीय वैज्ञानिक अभियानों से जुड़ा है। ये सिर्फ पिन कोड का खेल नहीं बल्कि विज्ञान, डाक और रिसर्च से जुड़ी एक खास रणनीति का हिस्सा है।

कैसे जुड़ा भारत का रिश्ता अंटार्कटिका से?

यह कहानी शुरू होती है साल 1983 में, जब भारत ने अंटार्कटिका में अपना पहला रिसर्च स्टेशन शुरू किया जिसका नाम था 'दक्षिण गंगोत्री'। इसके एक साल बाद यानी 1984 में वहां एक छोटा-सा पोस्ट ऑफिस भी खोला गया। इसका उद्देश्य था कि भारत में बैठे लोग, वहां रिसर्च कर रहे वैज्ञानिकों को चिट्ठी भेज सकें।

लेकिन चिट्ठियां पहुंचेंगी कैसे?

अंटार्कटिका कोई ऐसा इलाका नहीं है जहां रोजाना डाकिए चिट्ठियां बांटने जाते हों। वहां की मौसम स्थितियां बेहद चुनौतीपूर्ण होती हैं। ऐसे में एक खास व्यवस्था बनाई गई अगर किसी को अंटार्कटिका में भारतीय रिसर्चर को चिट्ठी भेजनी हो, तो वह 403001 पिन कोड के साथ गोवा भेजे। चिट्ठी सीधे जाती है वास्को (गोवा) स्थित ‘नेशनल सेंटर फॉर पोलर एंड ओशन रिसर्च’ (NCPOR) में। गोवा में स्थित NCPOR ही अंटार्कटिका में भारत के सभी अभियानों का संचालन करता है। यहीं से रिसर्चर तैयार होकर अंटार्कटिका के लिए रवाना होते हैं। इसी वजह से अंटार्कटिका का डाक पता भी गोवा के पते और पिन कोड से जुड़ा हुआ है। यानी जब आप चिट्ठी पर अंटार्कटिका लिखते हैं, लेकिन पिन कोड गोवा का डालते हैं, तो चिट्ठी सही जगह पहुंच जाती है।

क्या होता है ‘रद्द करना’?

NCPOR में जो चिट्ठियां रिसर्चर्स के लिए आती हैं उन्हें एक प्रोसेस से गुजारा जाता है जिसे ‘रद्द करना’ या 'कैंसिलिंग' कहते हैं। इसमें डाक टिकट पर एक निशान लगाया जाता है ताकि वह दोबारा उपयोग में न आ सके। फिर इस डाक को रिसर्चर के साथ अंटार्कटिका भेजा जाता है, या कभी-कभी वहां से वापस भारत लाकर घरवालों को लौटाया जाता है।

भारत का पहला विदेशी पोस्ट ऑफिस

भारतीय उप-महाद्वीप के बाहर यह पहला पोस्ट ऑफिस था जिसे भारत ने अंटार्कटिका में शुरू किया। ये पोस्ट ऑफिस भारत और अंटार्कटिका के बीच एक अनोखे डाक संबंध का प्रतीक बन गया। हालांकि अब दक्षिण गंगोत्री स्टेशन निष्क्रिय हो चुका है, लेकिन उसका पिन कोड और डाक व्यवस्था आज भी जीवित है — गोवा के जरिए।

एक ही पिन कोड का मतलब क्या है?

PIN कोड यानी Postal Index Number, भारत में डाक व्यवस्था को सरल और तेज बनाने के लिए बनाया गया था। हर क्षेत्र का एक विशेष कोड होता है जिससे डाकिए को चिट्ठी सही जगह पहुंचाने में आसानी होती है। लेकिन अंटार्कटिका कोई स्थायी डाक क्षेत्र नहीं है, इसलिए उसे भारत के अंदर किसी एक जगह से जोड़ा गया और वह जगह बनी गोवा।

क्या अब भी भेजी जा सकती हैं चिट्ठियां?

आज भी अगर कोई अंटार्कटिका में भारत के किसी वैज्ञानिक को चिट्ठी भेजना चाहता है तो वह 403001 पिन कोड के साथ गोवा भेज सकता है। यह एक ऐतिहासिक और वैज्ञानिक जुड़ाव का जीता-जागता उदाहरण है।

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