भोलेनाथ से पहले की जाती है नंदी की पूजा, जानें कहां निभाई जाती है यह अनोखी परंपरा

Edited By Updated: 14 Jul, 2025 12:53 PM

nandi worship precedes bholenath discover this unique sawan tradition

सावन का पवित्र महीना भगवान शिव की भक्ति और उपासना का विशेष समय होता है। इस दौरान हर सोमवार को भक्त शिव मंदिरों में जाकर जल चढ़ाते हैं और उनकी पूजा-अर्चना करते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत के कुछ ग्रामीण इलाकों में सावन के पहले सोमवार को...

नेशनल डेस्क: सावन का पवित्र महीना भगवान शिव की भक्ति और उपासना का विशेष समय होता है। इस दौरान हर सोमवार को भक्त शिव मंदिरों में जाकर जल चढ़ाते हैं और उनकी पूजा-अर्चना करते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत के कुछ ग्रामीण इलाकों में सावन के पहले सोमवार को भगवान शिव की पूजा से पहले उनके प्रिय वाहन 'नंदी बैल' की पूजा की जाती है? यह एक अनूठी परंपरा है, जिसके पीछे गहरी मान्यताएं और सदियों पुराना विश्वास छिपा है।

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क्यों की जाती है नंदी की पूजा पहले?

इन ग्रामीण क्षेत्रों में यह मान्यता है कि जब तक नंदी प्रसन्न नहीं होते, तब तक भक्तों की प्रार्थनाएं सीधे भगवान शिव तक नहीं पहुंचतीं पौराणिक कथाओं में नंदी को शिव का सबसे प्रिय गण और उनके वाहन के रूप में वर्णित किया गया है। उन्हें ही वह माध्यम माना जाता है जिनके द्वारा भक्तों की मनोकामनाएं और अरदास भोलेनाथ तक पहुंचती है। इसी विश्वास के कारण सावन के पवित्र महीने के पहले सोमवार को ग्रामीण पूरी श्रद्धा और उत्साह के साथ नंदी की पूजा में लीन हो जाते हैं।

कहां निभाई जाती है ये खास परंपरा?

यह अनोखी परंपरा मुख्य रूप से उत्तर भारत के कुछ गांवों के साथ-साथ मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के कई हिस्सों में विशेष रूप से प्रचलित है। इन ग्रामीण क्षेत्रों में सावन के पहले सोमवार की सुबह से ही लोग नंदी बैल को विशेष सम्मान देना शुरू कर देते हैं।

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कैसे होती है नंदी की पूजा?

सावन के पहले सोमवार के दिन ग्रामीण सुबह-सुबह नंदी बैल को बड़े ही विधि-विधान से स्नान कराते हैं। स्नान के बाद उन्हें हल्दी और चंदन का पवित्र लेप लगाया जाता है जिसे शुभता और पवित्रता का प्रतीक माना जाता है। इसके बाद नंदी को मीठा भोजन कराया जाता है, जिसमें आमतौर पर गुड़, रोटी या अन्य पारंपरिक पकवान शामिल होते हैं। नंदी को भोग लगाने और उनकी पूजा करने के बाद ही ग्रामीण पास के शिव मंदिर में जाकर भगवान शिव को जल अर्पित करते हैं और उनकी विधिवत पूजा करते हैं। कई जगहों पर तो इस दिन नंदी की शोभायात्रा भी निकाली जाती है, जिसे ग्रामीण पूरे उत्साह और भक्ति से सजाते हैं. यह दृश्य बेहद मनमोहक होता है।

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इस परंपरा का क्या है महत्व?

यह परंपरा सिर्फ ग्रामीणों की भगवान शिव के प्रति अटूट आस्था को ही नहीं दर्शाती, बल्कि पशुधन के प्रति उनके गहरे सम्मान को भी उजागर करती है। भारतीय संस्कृति में नंदी को केवल एक वाहन नहीं, बल्कि एक पवित्र जीव और शिवगणों में प्रमुख स्थान प्राप्त है। उन्हें धर्म और शक्ति का प्रतीक माना जाता है। इस विशेष पूजा के माध्यम से ग्रामीण यह संदेश भी देते हैं कि प्रकृति और उसके सभी तत्वों का सम्मान करना भी आध्यात्मिक जीवन का एक अभिन्न अंग है। यह पूजा एक प्रकार से पशु-कल्याण और प्रकृति के प्रति आभार का प्रतीक भी है।

बदलते दौर में भी कायम है आस्था

आज के इस आधुनिक युग में भी ग्रामीण भारत में यह परंपरा पूरी निष्ठा और उत्साह के साथ निभाई जाती है। यह परंपरा केवल एक धार्मिक मान्यता नहीं, बल्कि ग्रामीण जीवनशैली का भी एक अभिन्न हिस्सा है। पशुधन, खासकर बैल, ग्रामीण अर्थव्यवस्था में सदियों से बहुत महत्वपूर्ण रहे हैं। नंदी बैल की यह पूजा एक ओर तो शिवभक्ति का मार्ग है वहीं दूसरी ओर यह हमें अपने आस-पास के जीव-जंतुओं और प्रकृति का सम्मान करने की सीख भी देती है।

 

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