भारत को अगर ट्रंप के टैरिफ से बचना है तो करना होगा ये काम, ऐसे निकालना होगा तोड़

Edited By Updated: 28 Aug, 2025 03:02 PM

if india wants to avoid trump s tariffs it will have to do this

भारत और अमेरिका के बीच व्यापार को लेकर एक नई चुनौती सामने आई है। अमेरिका ने 27 अगस्त से भारत के कई उत्पादों पर 50 फीसदी टैरिफ यानी आयात शुल्क लगा दिया है। इसका सीधा असर भारत के कई छोटे-बड़े उद्योगों पर पड़ने वाला है। खासकर कपड़ा, ज्वेलरी और कालीन...

इंटरनेशनल डेस्क: भारत और अमेरिका के बीच व्यापार को लेकर एक नई चुनौती सामने आई है। अमेरिका ने 27 अगस्त से भारत के कई उत्पादों पर 50 फीसदी टैरिफ यानी आयात शुल्क लगा दिया है। इसका सीधा असर भारत के कई छोटे-बड़े उद्योगों पर पड़ने वाला है। खासकर कपड़ा, ज्वेलरी और कालीन जैसे उद्योगों पर। इन क्षेत्रों में लाखों लोग काम करते हैं और अगर यह टैरिफ लंबे समय तक लागू रहा तो लाखों नौकरियां खतरे में आ सकती हैं।

किन उद्योगों पर है सबसे ज्यादा असर

अमेरिका द्वारा भारत पर लगाए गए 50 फीसदी टैरिफ का सबसे बड़ा असर उन उद्योगों पर पड़ रहा है जो बड़ी मात्रा में निर्यात पर निर्भर हैं। कपड़ा उद्योग इसमें सबसे अहम है। तमिलनाडु जैसे राज्य में इस क्षेत्र में करीब 75 लाख लोग काम करते हैं। अगर भारतीय कपड़े अमेरिकी बाजार में महंगे हो गए तो वहां के व्यापारी ऑर्डर कम कर देंगे, जिससे करीब 30 लाख लोगों की नौकरियां खतरे में पड़ सकती हैं। इसके अलावा ज्वेलरी और कालीन उद्योग भी बड़ी मार झेलेंगे। उत्तर प्रदेश के भदोही और मिर्जापुर जैसे इलाके जहां कालीन निर्माण का हब हैं और राजस्थान व गुजरात के ज्वैलरी कारीगर जो मुख्य रूप से अमेरिकी ग्राहकों पर निर्भर हैं, उन्हें भी नुकसान का सामना करना पड़ सकता है। टैरिफ बढ़ने से अमेरिकी ग्राहक भारतीय सामान खरीदने से कतराएंगे, जिससे इन कारीगरों की आमदनी में सीधी गिरावट आएगी। इसी तरह, झींगा और मखाना उत्पादन से जुड़े किसानों के सामने भी संकट आएंगे। आंध्र प्रदेश में झींगा पालन और बिहार के मिथिलांचल क्षेत्र में मखाने की खेती, दोनों ही मुख्य रूप से निर्यात पर निर्भर हैं। अमेरिका से ऑर्डर घटने का मतलब है कि इन किसानों को बड़ा आर्थिक नुकसान उठाना पड़ेगा। कुल मिलाकर देखा जाए तो इन तीन प्रमुख क्षेत्रों में लाखों परिवारों की रोजी-रोटी पर संकट मंडरा रहा है।

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क्या है टैरिफ और इसका मतलब क्या है?

टैरिफ एक तरह का टैक्स होता है जो किसी देश में बाहर से आने वाले सामान पर लगाया जाता है। जब अमेरिका भारत से आने वाले सामान पर 50% टैक्स लगाएगा तो भारतीय सामान वहां महंगा हो जाएगा। इसका मतलब है कि अमेरिका के लोग या कंपनियां भारतीय उत्पाद कम खरीदेंगी और इससे भारत का निर्यात घटेगा।

सरकार क्या कर रही है?

भारत सरकार इस स्थिति को गंभीरता से ले रही है। सरकार नए बाजारों की तलाश कर रही है ताकि जहां अमेरिका में निर्यात कम हो रहा है वहां उसकी भरपाई की जा सके। इसके लिए अफ्रीका, खाड़ी देश, यूरोप जैसे बाजारों में भारतीय सामानों को पहुंचाने की कोशिश की जा रही है। लेकिन बता दें ये सारी प्रक्रिया काफी समय लगेगा।

‘स्वदेशी दिवाली’ से मिल सकती है राहत

इस संकट से उबरने का एक मजबूत रास्ता भारत के लोगों के हाथ में है। अगर हम इस दिवाली विदेशी सामान की जगह स्वदेशी उत्पादों को चुनें तो इससे उन उद्योगों को बड़ा सहारा मिल सकता है जो इस समय अमेरिका के टैरिफ से प्रभावित हैं। जब हम भारत में बने कपड़े, गहने, झींगे, कालीन या मिठाइयां खरीदते हैं तो यह सिर्फ खरीददारी नहीं होती बल्कि लाखों कारीगरों और किसानों की नौकरी बचाने का काम होता है। दिवाली के त्यौहार पर जब हर घर में खरीदारी बढ़ जाती है तब अगर हम थोड़ा सा सोच-समझकर निर्णय लें और स्वदेशी सामानो को प्राथमिकता दें तो यह न केवल देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत करेगा बल्कि जरूरतमंद परिवारों के लिए भी सहायक होगा।

कैसे मनाएं ‘स्वदेशी दिवाली’?

इस दिवाली पर हमें अपनी खरीदारी में लोकल दुकानों को प्राथमिकता देनी होगी और ऑनलाइन विदेशी ब्रांड्स से बचना होगा। इसके साथ ही हमें भारतीय हस्तशिल्प, हैंडलूम, खादी और अन्य स्थानीय उत्पादों को चुनना होगा ताकि हमारे देश के कारीगरों और छोटे व्यवसायियों को फायदा पहुंचे। वहीं मिठाइयों, दीयों और सजावट के सामान में भी स्वदेशी चीजें खरीदना जरूरी है क्योंकि इससे उन लोगों की मदद होगी जो इन उत्पादों को बनाते हैं और जिनकी आजीविका इससे जुड़ी है। इसके अलावा बच्चों के लिए खिलौने भी देश में बने हुए ही खरीदने होेंगे, न कि चाइनीज या अमेरिकी ब्रांड्स के ताकि हम हर स्तर पर स्वदेशी उत्पादों को बढ़ावा दे सकें और हमारे घरेलू उद्योग मजबूत हो सकें।

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अमेरिका का क्या कहना है?

हाल ही में अमेरिका के वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट ने कहा है कि भारत और अमेरिका के बीच बातचीत जारी है और उम्मीद है कि दोनों देश फिर से व्यापार समझौते पर एक साथ आ सकते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि टैरिफ केवल रूस से तेल खरीदने के कारण नहीं लगाया गया है बल्कि कई आर्थिक और रणनीतिक कारण हैं।

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