Edited By ,Updated: 07 Mar, 2017 02:15 PM

प्रधानमंंत्री नरेंद्र मोदी ने आज कहा कि परमहंस योगानन्द ने क्रिया योग के माध्यम से भारत की आध्यात्मिक परंपरा को बढ़ाकर विश्व में प्रेम और शांति कायम करने में अहम भूमिका निभाई।
नई दिल्ली: प्रधानमंंत्री नरेंद्र मोदी ने आज कहा कि परमहंस योगानन्द ने क्रिया योग के माध्यम से भारत की आध्यात्मिक परंपरा को बढ़ाकर विश्व में प्रेम और शांति कायम करने में अहम भूमिका निभाई। मोदी ने योगदा सोसाइटी ऑफ इंडिया की 100वीं वर्षगांठ के अवसर पर यहां एक समारोह में सोसाइटी पर स्मारक डाक टिकट जारी करने के बाद कहा कि परमहंस योगानन्द ने योग की सहज प्रक्रिया क्रियायोग को चुना और पूरी दुनिया में उसे स्थापित किया। उन्होंने कहा कि अक्सर धर्म को ही अध्यात्म मान लिया जाता है जबकि अध्यात्म बिलकुल भिन्न है। इसका धर्म और सम्प्रदाय से कोई लेना देना नहीं है। अध्यात्म में भीतर की तरफ यात्रा होती है और योग इसका प्रवेश बिन्दु है लेकिन योग को ही परम मान लिया जाता है जबकि यह अध्यात्म की तरफ यात्रा की शुरुआत भर है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि भीतर की तरफ जाने के लिए आत्मबल की जरूरत होती है जबकि योग के लिए शारीरिक बल अनिवार्य है। उन्होंने कहा कि परमहंस योगानन्द कहा करते थे कि वह अस्पताल के बिस्तर पर मृत्यु नहीं चाहते हैं और उन्होंने कर्म करते हुए ही महाप्रयाण किया। उन्होंने कहा कि परमहंस योगानन्द को भारत से अगाध प्रेम था और वह कहा करते थे कि वह धन्य हैं कि उनके शरीर ने इस मातृभूमि को स्पर्श किया। मोदी ने कहा कि परमहंस योगानान्द ने कहा था कि ब्रह्म मुझमें समाया है और मैं ब्रह्म में समाया हूं। उनकी यह अनुभूति अद्वैत के सिद्धांत का ही सरल रूप है, जिसमें ज्ञान, ज्ञाता और ज्ञेय का भेद मिट जाता है, कोई द्वैत नहीं रहता यानी दूसरा दिखाई नहीं देता है।