कांग्रेस का हाथ छोड़ कर "दीदी" के साथ आए कई राज्यों के नेता, ट्रैंड से गांधी परिवार के सामने भी बड़ी चुनौती

Edited By Anil dev,Updated: 30 Nov, 2021 11:09 AM

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लंबे अरसे तक कांग्रेस के यूपीए गठबंधन का साथ देने वाली तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) अब कांग्रेस के लिए ही चुनौती बनती जा रही है। देश में एक नया ट्रैंड शुरू हुआ है कि जो नेता अब कांग्रेस छोड़ रहे हैं वे उनकी पहली पसंद टीएमसी है। रहे हैं।

नेशनल डेस्क: लंबे अरसे तक कांग्रेस के यूपीए गठबंधन का साथ देने वाली तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) अब कांग्रेस के लिए ही चुनौती बनती जा रही है। देश में एक नया ट्रैंड शुरू हुआ है कि जो नेता अब कांग्रेस छोड़ रहे हैं वे उनकी पहली पसंद टीएमसी है। कांग्रेस के जो भी नेता पार्टी छोड़ रहे हैं, उनमें से ज्यादातर ममता दीदी की पार्टी टीएमसी में ही जा रहे हैं। बंगाल में जब कांग्रेस के नेताओं ने टीएमसी ज्वाइन की तो यह माना जा रहा है कि यह ट्रैंड टीएमसी के सता में होने के कारण है, जबकि यह ट्रैंड पूर्वोत्तर राज्यों में भी सामने आया है। यही नहीं अपितु अब जब यूपी, बिहार, हरियाणा जैसे हिंदी भाषी राज्यों में जहां टीएमसी का कोई वजूद नहीं है, वहां के कांग्रेस नेताओं ने टीएमसी के साथ जाने पर राजनीतिक विशेषज्ञ भी हैरत में हैं। यही नहीं इस ट्रैंड से गांधी परिवार के सामने भी बड़ी चुनौती है।

यूपी का कांग्रेस का पुराना घराना भी टीएमसी में शामिल
कमलापति त्रिपाठी का परिवार यूपी में कांग्रेस का एक बहुत पुराना घराना हुआ करता था। कमलापति त्रिपाठी यूपी के सीएम रह चुके हैं और यह परिवार बनारस का बहुत नामचीन ब्राह्मण परिवार माना जाता है। इस परिवार ने पिछले दिनों अपनी सियासी वफादारी बदली। यूपी के लिहाज से उसके पास बहुत सारे विकल्प हो सकते थे, वे चाहते तो भाजपा, सपा या बसपा में जा सकते थे, लेकिन इस परिवार ने भी टीएमसी को चुना। इसी तरह हरियाणा में भी टीएमसी आज की तारीख में कांग्रेस के लिए ही सबसे बड़ी चुनौती बनती जा रही है। यूपी, बिहार, हरियाणा जैसे राज्यों में जहां टीएमसी मजबूत नहीं है, वहां के कांग्रेस नेताओं की पहली पसंद ममता की पार्टी है।

कांग्रेस पूर्व प्रदेशाध्यक्ष अशोक तंवर ने भी चुनी टीएमसी
एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक हरियाणा कांग्रेस पूर्व प्रदेशाध्यक्ष अशोक तंवर के पास भी राज्य की पॉलिटिक्स के लिए कई विकल्प थे, लेकिन उन्होंने भी टीएमसी चुना है। बिहार में कीर्ति आजाद ने भी टीएमसी का रास्ता अपनाया है। इससे पहले मेघालय में कांग्रेस के सीनियर लीडर मुकुल संगमा एक दर्जन विधायकों के साथ टीएमसी में आ गए हैं। विधायकों की संख्या के लिहाज से कांग्रेस को मुख्य विपक्षी दल का दर्जा प्राप्त था, जबकि अब टीएमसी के पास आ गया है। उससे पहले त्रिपुरा में भी सुष्मिता देव जैसा बड़ा चेहरा कांग्रेस छोड़कर टीएमसी में चला गया। गोवा में कांग्रेस के पूर्व सीएम लुईजिन्हो फलेरियो भी टीएमसी के साथ हो लिए। हैरान-परेशान कांग्रेस को यह कहना पड़ा कि ममता को अब सोनिया की नहीं, बल्कि मोदी की जरूरत है। कांग्रेस को तोड़ने की सुपारी उन्हें भाजपा से ही मिली है।

क्यों टीएमसी में जा रहे हैं कांग्रेस नेता
जानकारों का कहना है कि इसकी पहली वजह ममता बनर्जी के मोदी के खिलाफ विपक्ष का मुख्य चेहरा बनकर उभरना है। कांग्रेस के जिन नेताओं को अपनी पार्टी की कोई बड़ी उम्मीद नहीं दिख रही है, उन्हें अपने राज्यों में पहले से स्थापित किसी अन्य पार्टी में सीधे जाने पर तालमेल में कठिनाई आ सकती है। लेकिन ममता बनर्जी के माध्यम से इसमें आसानी होगी। ममता किसी भी राज्य में जिस भी पार्टी से चाहेंगी, अपने लोगों के लिए सीटों का बंटवारा करने में सक्षम होंगी। दूसरी बात कांग्रेस नेताओं को यह लगती है कि टीएमसी में रहने से कांग्रेस में उनकी वापसी आसान होगी। टीएमसी को कांग्रेस से बहुत अलग नहीं माना जाता, परिवार की ही पार्टी मानी जाती है। जिन बड़े चेहरों ने हाल के दिनों में कांग्रेस से पाला बदल कर टीएमसी का रुख किया है, उनमें से ज्यादातर खुद या उनके परिवार के सदस्य कभी न कभी ममता के साथ कांग्रेस में काम कर चुके हैं।

कांग्रेस और टीएमसी की कार्यशैली एक जैसी
इस वजह से उनकी ममता के साथ सहजता है। कांग्रेस छोड़कर टीएमसी में जाने वाले अशोक तंवर ने कहा कि टीएमसी में आकर घर जैसे अपनेपन का अहसास हुआ। उसकी वजह है कि कांग्रेस और टीएमसी की बुनियादी कार्यशैली और सोच काफी मिलती जुलती है। ममता बनर्जी कांग्रेस से निकली हैं तो उनकी स्कूलिंग, विचारधारा व प्रक्रिया भी मिलती-जुलती है। इसलिए कांग्रेस से आने वाले को यहां ज्यादा बदलाव नहीं लगता। तंवर कांग्रेस के केंद्रीय मंत्री रह चुके स्वर्गीय ललित माकन के दामाद हैं। ललित माकन और ममता राजीव गांधी के समय कांग्रेस में साथ-साथ काम कर चुके हैं। सुष्मिता के पिता संतोष मोहन देव भी राजीव सरकार में मंत्री रहे हैं। लुईजिन्हो फलेरियो भी ममता के समय में सक्रिय रहे हैं।

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